अटलबिहारी बाजपेयी: राजनीति के 'अजातशत्रु' का महाप्रयाण...

संदीपसिंह सिसोदिया
गुरुवार, 16 अगस्त 2018 (18:53 IST)
38 साल पहले दिसंबर 1980 में मुंबई में भारतीय जनता पार्टी के पहले अधिवेशन में अपने भाषण के अंत में अटलबिहारी बाजपेयी ने हुंकार भर कहा था कि भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं ये भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि 'अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा'... आज भारत के 19 राज्यों में कमल खिला है, लेकिन भाजपा का सूरज अब अस्त हो गया है...
 
पूर्व प्रधानमंत्री 'भारतरत्न' अटलबिहारी बाजपेयी अब हमारे बीच नहीं रहे। 2 से 282 सीटों तक भाजपा के रथ को भारतीय राजनीति के पटल पर दौड़ाने वाले अटल बिहारी अब महाप्रयाण को निकल चुके हैं।

93 वर्ष की उम्र में अटल जी ने एम्स में अंतिम सांस ली। अटल बिहारी बाजपेयी सिर्फ भारत के पूर्व प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि एक सरल ह्रदय इंसान, लोकप्रिय राजनेता, उम्दा कवि और बेहतरीन साहित्यकार थे... शायद इसलिए ही वे राजनीति में रहते हुए भी सामाजिक विषयों की गहनता को समझते हुए जनता के दिलों में जगह बना पाए...
 
प्रभावशाली वक्ता: भारतीय राजनीति में अटलजी पं जवाहरलाल नेहरूजी के समकक्ष एक अनूठे राजनीतिज्ञ थे। नियति को भांपकर एक बार अटलजी का भाषण सुनकर नेहरूजी ने कहा था कि मैं भारत के 'भावी प्रधानमंत्री' का भाषण सुन रहा हूं।
 
बेबाक छवि: राजनीति के अजातशत्रु कहलाने वाले अटलजी ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद इंदिराजी को 'दुर्गा' बताया और इस बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा भी, साथ ही उनमें यह कहने का भी नैतिक साहस था कि 'मैं कुंआरा हूं ब्रह्मचारी नहीं।'
 
अनूठा विरोध: 1973 में तेल संकट के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने तेल की कीमतों में 80 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी कर दी थी, उन दिनों इंदिरा गांधी लोगों के बीच पेट्रोल बचाने का संदेश देने के लिए बग्घी से यात्रा कर रही थीं। इसका अनूठा विरोध करते हुए तब जनसंघ नेता अटल बिहारी बाजपेयी बैलगाड़ी से संसद पहुंचे थे।

अमन-पसंद: कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की बात करने वाले बाजपेयीजी पर कश्मीरियों को 'अटल' भरोसा था। अमन पसंद अटलजी ने राजस्‍थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण करने का साहस दिखाया। रूठे पाकिस्तान को मनाने के लिए कारवां-ए-अमन से शांति का पैगाम देने वाले भारतीय प्रधानमंत्री को बदले में 'कारगिल युद्ध' मिला।  
 
भारतीय राजनीति के भीष्‍म पितामह: एक साक्षात्कार में 'अकेलेपन का दर्द' बताने वाले बाजपेयी ने 2005 में राजनीति से संन्‍यास ले लिया। उस समय राज्‍यसभा को संबोधित करते समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अटलबिहारी बाजपेयी को 'राजनीति का भीष्‍म पितामह' बताया था।

भारतीय राजनीति के एक आदर्श नेता अब नहीं रहे, भाजपा को साया देने वाला एक सघन वटवृक्ष अब धरा पर नहीं है। एक बड़े राजनीतिक युग का अंत हो गया है.... उनके ही शब्दों में उन्हें सादर श्रद्धांजलि... 
 
भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाईं से हारा,
अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
हम पड़ाव को समझे मंजिल, लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल,
वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
आहुति बाकी, यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा,
अंतिम जय का वज्र बनाने, नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
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