ध्यान की सुखद छांव में जो बैठता है, उसकी सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं। ध्यान में मन का मंथन होता है। इसीलिए ध्यान को कल्पवृक्ष माना गया है। मन की अस्त-व्यस्तता ही मानसिक विकृतियों का कारण होती है।
ध्यान द्वारा मन एकाग्र होता है और उसकी चंचलता धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। इसीलिए ध्यान के क्षणों में मिलने वाला आत्मिक सुख एवं गहन शक्ति मन की सारी ग्रंथियों को तोड़ देता है और व्यक्ति अपने आप को हल्का-फुल्का महसूस करने लगता है।
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