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आम आदमी पार्टी के जीत के दस कारण

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, मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015 (10:30 IST)
2013 में हुए विधानसभा चुनावों में बहुमत से कुछ दूर रह गए अरविंद केजरीवाल को इस बार जनता का पूरा साथ मिला। इस चुनाव में मतदाताओं ने न सिर्फ आप की ताजपोशी की बल्कि आठ माह पहले लोकसभा चुनावों में सातों सीटें जीतने वाली भाजपा को जमीन दिखा दी। 2013 से पहले दिल्ली में 15 साल राज करने वाली कांग्रेस का तो सूपड़ा ही साफ हो गया। आखिर क्या कारण रहे कि आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में जीत का डंका बजा दिया....


1. भाजपा के व्यक्तिगत हमले : उपद्रवी गोत्र इसने समाज से जोड़ दिया। इस प्रकार के हमले लगातार भाजपा ने केजरीवाल पर किए, लोगों को यह बात ज्यादा अच्छी नहीं लगी और इसका असर यह हुआ कि भाजपा अपनी छवि जनता की नजरों में खराब करती रही। ऐसा माना जा रहा है पूरे वैश्य समाज वोट केजरीवाल को मिले हैं।

लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने चुनावी सभाओं में अरविंद केजरीवाल का नाम तक नहीं लिया था, लेकिन दिल्ली में प्रचार के दौरान उन्होंने केजरीवाल पर लगातार अप्रत्यक्ष हमले किए। प्रधानमंत्री का चुनावी सभाओं में आप पर हमले करना करना आप आदमी पार्टी के लिए 'टॉनिक' सिद्ध हुआ और इसका फायदा उसे इस चुनाव में हुआ।
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2. केजरीवाल का जनता से जुड़ाव : लोकसभा चुनाव में हार के बाद केजरीवाल और उनके कार्यकर्ताओं ने जमकर समय का सदुपयोग किया। इस दौरान उन्होंने दिल्ली के घर-घर मोहल्ला-मोहल्ला जाकर लोगों से बातचीत की व उनकी समस्याएं सुनी।
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केजरीवाल का एक आम आदमी की तरह लोगों से मिलना, लोगों को खूब भाया। इसी का परिणाम दिल्ली चुनाव की कैंपेनिंग के दौरान भी देखने को मिला, लोग केजरीवाल के समर्थन में खुल कर सामने आए। आप कार्यकर्ताओं ने भी पिछले विधानसभाओं की तरह इस चुनाव प्रचार में भी जमीनी स्तर पर कार्य किया और इसका फायदा आप आदमी पार्टी को मिला। आप का दिल्ली डॉयलॉग भी इस चुनाव में उसकी जीत का एक प्रमुख कारण बना।  
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3. लोकसभा चुनाव की हार से सबक सीखा : लोकसभा चुनाव की हार से सबक लेते हुए आम आदमी पार्टी ने एक बड़े स्तर पर अपने चुनावी नजरिए में परिवर्तन किया। पिछले चुनावों के दौरान जो आम आदमी पार्टी बड़बोली नजर आई थी वह इस बार बड़ी शांत और सौम्य नजर आई। इस चुनाव में उनका मुख्य मुद्दा दिल्ली का विकास रहा और लोगों के बीच जाकर उन्होंने ज्यादा से ज्यादा विकास के बारे में चर्चा की। जनता केजरीवाल की बदली हुई चाल से प्रभावित हुई। इस बार केजरीवाल की बॉडी लैं‍ग्वेंज में भी फर्क नजर आया।
     
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4. एकजुटता : लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का बिखराव पार्टी को भारी पड़ा था और पूरे देश में आम आदमी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। लोकसभा चुनाव के विपरीत विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक सशक्त पार्टी के रूप में उतरी। पार्टी ने इस बार उन्हीं लोगों को टिकट दिया जो पार्टी में आकर पार्टी की प्रगति के बारे में सोचें ना कि खुद की प्रगति के बारे में। इसी का सीधा फायदा पार्टी को मिला और उन्होंने दिल्ली के लोगों का भरोसा जीता।
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5. व्यक्तिगत हमलों से दूरी : इस बार अरविंद केजरीवाल और आप के नेताओं ने विरोधी पार्टी के नेताओं पर व्यक्तिगत हमले नहीं किए। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली की विकास की बात की। लोकसभा चुनाव में मोदी और भाजपा के शीर्ष नेताओं पर उन्होंने खूब हमले किए थे। आम आदमी पार्टी के इस कदम ने भी उसके लिए टॉनिक का काम किया।
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6. बदली टीम : लोकसभा और 2013 के विधानसभा चुनावों में जो टीम थी उसके मुकाबले 2015 के चुनावों में आप की टीम भी बदली हुई नजर आई। इस चुनाव में आप की ओर से कई नए चेहरे इस चुनाव में नजर आए जिसका फायदा इस चुनाव में नजर आया।
अगले पन्ने पर, गुनाह नहीं किया गलती की है...
 

7. गलती की, गुनाह नहीं :  अरविंद केजरीवाल अपनी चुनावी सभाओं में यह कहते हुए नजर आए कि पिछली सरकार में जल्दी में इस्तीफा देना और लोकसभा चुनावों में कूदना उनकी गलती थी, लेकिन उन्होंने गलती की है, कोई जुर्म नहीं किया है और गलती माफ की जा सकती है। लोगों को केजरीवाल की यह गलती स्वीकारना उन्हें पसंद आया। शायद इसलिए उन्होंने केजरीवाल को दिल्ली में एक और मौका दिया।

8. मजबूत टीम : पिछले दिल्ली विधानसभा के मुकाबले इस बार आम आदमी पार्टी के स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ी। लगभग तीस हजार नए स्वयंसेवक आप पार्टी से जुड़े। इसका सीधा फायदा पार्टी को इस चुनाव में हुआ। पार्टी ने अपना पूरा ध्यान दिल्ली चुनाव में लगा दिया।
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9. भाजपा का 'ब्रह्मास्त्र' बना वरदान : कभी अन्ना आंदोलन में केजरीवाल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली किरण बेदी को भाजपा ने दिल्ली में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर इस चुनाव में अपना मास्टर स्ट्रोक खेला, लेकिन भाजपा का 'ब्रह्मास्त्र' आम आदमी पार्टी के लिए वरदान साबित हुआ।
 

10. भाजपा की अर्तंकलह का फायदा : भाजपा ने दिल्ली चुनाव में किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया। इससे भाजपा के कई नेताओं को भाजपा का यह कदम पसंद नहीं आया। दूसरी पार्टी से भाजपा में शामिल हुए नेताओं को भी भाजपा ने हाथोंहाथ टिकट दे दिया। जैसे कृष्णा तीरथ भाजपा में शामिल हुईं और उन्हें चुनाव में उम्मीदवार बना दिया गया। कहीं न कहीं दिल्ली में भाजपा कार्यकर्ता इन फैसलों से असंतुष्ट रहे और इसका फायदा भाजपा को हुआ।

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