भारत-पाक के बीच समग्र वार्ता के दौर जारी हैं। अभी चर्चा का विषय है सर क्रीक विवाद, जिसे हल करना ही है। जिस तेजी से इस पर काम किया जा रहा है और जिस तरह से सकारात्मक प्रयास किए जा रहे हैं उन्हें देखकर लगता है कि विवाद का हल शीघ्र ही मिल जाने की संभावना है।
वैसे तो भारत-पाक समग्र वार्ता के कुल मिलाकर आठ विषय हैं जिनमें जम्मू-कश्मीर, वुल्लर बैराज/तुलबुल नौवहन परियोजना, सियाचिन, सर क्रीक, शांति सुरक्षा बहाली, मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान, आर्थिक व वाणिज्यिक सहयोग तथा आतंकवाद एवं मादक पदार्थों की तस्करी जैसे मुद्दे शामिल हैं।
पर इनमें से सिर्फ सर क्रीक विवाद के ही जल्दी हल होने की संभावना है। आखिर ऐसी क्या बात है जो इतने वर्षों से अटका विवाद अचानक ही हल होने की राह पर चल पड़ा है। दोनों देश इस बारे में द्रुत गति से काम क्यों कर रहे हैं? असल में कारण कुछ अलग है। भारत व पाकिस्तान दोनों ही देशों ने अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर कर रखे हैं। इस संधि के नियमों के अनुसार विवादित क्षेत्र के सीमांकन विवाद को 2009 तक नहीं निपटाया गया तो इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र घोषित कर दिया जाएगा। भारत-पाक के बीच गुजरात के कच्छ के रन और सिंध प्रांत के बीच का यह क्षेत्र तेल, प्राकृतिक गैस व खनिज संसाधनों से संपन्न है।
अरब सागर में कच्छ की खाड़ी में 60 मील लंबाई में फैले इस ज्वारनदमुख पर भारत और पाक के अलग-अलग दावे हैं। इन दावों से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था लेकिन सवाल अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर का आ गया और पूरे क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र घोषित करने और दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा उठाने की कहावत को चरितार्थ होते देख डर के मारे इस पर तेजी से काम होने लगा। मामले को किसी भी कीमत पर 2009 तक निपटाना है अन्यथा सब कुछ हाथ से निकल जाने का खतरा है।
कोई भी विवाद जल्दी हल हो इसमें कोई बुराई नहीं है, विवाद तो जितना जल्दी हल हो जाए उतना ही अच्छा है। दोनों देशों के बीच सर क्रीक के अलावा जम्मू-कश्मीर और सियाचिन विवाद भी हैं और ये दोनों विवाद ही सबसे अधिक गंभीर हैं फिर भी इनकी राह में कोई प्रगति नहीं दिखाई देती। जब सर क्रीक विवाद का हल निकाला जा सकता है तो अन्य विवादों का क्यों नहीं? कारण बिलकुल स्पष्ट है कि जब तक सिर पर तलवार न लटके तब तक कोई मामला हल नहीं होता।
विवादों को पाला-पोसा जाता है, उन पर राजनीति की जाती है और उनके नाम पर ऋण माँगे जाते हैं। सर क्रीक विवाद का मामला प्रमाण दे रहा है कि यदि ठान लिया जाए और इच्छाशक्ति दिखाई जाए तो ऐसा कौन-सा विवाद है जो हल नहीं हो सकता? आज विश्व में मॉरीशस जैसे देश भी हैं जिनका सेना खर्च शून्य है और वे अपना सारा धन आंतरिक व्यवस्था पर लगा रहे हैं। जबकि तमाम गरीबी के बावजूद भारत और पाकिस्तान सेना पर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं।
भारत-पाक जिस तरह की पहल सर क्रीक विवाद निपटाने में कर रहे हैं वैसी ही पहल अन्य विवादों के लिए भी करना चाहिए। कहा गया है कि 'भय बिनु होय न प्रीत'। भय भले ही तीसरे पक्ष का हो लेकिन प्रीत बढ़नी चाहिए। उम्मीद है कि यह प्रीत और बढ़े और सारे विवादों का हल निकल आए।