हिंदी पत्रकारिता के जाने-माने पत्रकार और स्तंभकार राजकिशोर का ब्लॉग विचारार्थ पढ़ते हुए जो बात सबसे पहले ध्यान खींचती है वह है छोटे-बड़े मुद्दों पर उनका लगातार चिन्तन करते हुए विचारशील बने रहना। कई लोग विचारवादी होते हैं और उसी की लकीर पीटते हुए हर मुद्दों पर कलम घसीटते रहते हैं। कुछ लोग विचारशील होते हैं जो हर मुद्दे को अपने विचार के उजाले में एक नई निगाह से देखते हैं और यही खासियत उन्हें विचारशील बनाती है। ...और मुझे लगता है यही विचारशीलता इसीलिए पठनीय भी होती है। हिंदी के बेहतरीन कवि श्रीकांत वर्मा की बहुत ही ख्यात कविता है- कौसल गणराज्य। इसकी पंक्तियाँ हैं- महाराज, कौसल ज्यादा दिन नहीं टिक सकता, क्योंकि कौसल में विचारों की कमी है। मुझे राजकिशोर का ब्लॉग पढ़ते हुए ये पंक्तियाँ इसलिए याद आईं कि यहाँ विचारों की कतई कमी नहीं है और तमाम तरह के अच्छे-बुरे ब्लॉग्स में यह ब्लॉग इसीलिए टिका रहेगा क्योंकि यह भाव और विचार दोनों से ही संपन्न और समृद्ध है। इसमें विषयों की विविधता भी है और लिखने की भिन्न-भिन्न शैलियाँ भी। अपनी एक पोस्ट्स माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही में उन्होंने अपनी माँ को याद करते हुए बहुत ही मार्मिक संस्मरण लिखा है जो इन पंक्तियों के साथ शुरू होता है -दुनियाभर में जिस व्यक्ति का मैं सबसे ज्यादा गुनहगार हूँ, वह मेरी माँ है। जिस स्त्री ने मेरे सारे नखरे उठाए, जिसने मुझे सबसे ज्यादा भरोसा दिया, जिसने मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं की, उसे मैंने कोई सुख नहीं दिया। दुःख शायद कई दिए। अब जब वह नहीं है मेरा हृदय उसके लिए जार-जार रोता है...यह एक बानगीभर है और इस पूरे संस्मरण में उन्होंने पारिवारिकता औऱ परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने रिश्ते को जानने-समझने की एक ईमानदार कोशिश की है। |
हिंदी पत्रकारिता के जाने-माने पत्रकार और स्तंभकार राजकिशोर का ब्लॉग विचारार्थ पढ़ते हुए जो बात सबसे पहले ध्यान खींचती है वह है छोटे-बड़े मुद्दों पर उनका लगातार चिन्तन करते हुए विचारशील बने रहना। कई लोग विचारवादी होते हैं। |
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यह संस्मरण बताता है कि कैसे आधुनिक साहित्य को पढ़ने, किसी छोटी सी बात से आहत होकर घर छोड़ने, फिर अपनी बीमार माँ की सेवा करने से लेकर, पिता, भाई और भौजी को याद करने तक एक व्यक्ति कितना अकेला और दुःखी हो सकता है। यह एक पत्रकार के बिलकुल नए पहलू को सामने लाता है और बताता है कि तमाम व्यस्तताओं के बीच माँ की याद कितनी गहरी बनी रहती है। इसे पढ़ना एक पत्रकार के भीतरी और सबसे भावुक कोने को महसूस करने जैसा है।
लेकिन ऐसा नहीं है कि यह भावुकपन हर जगह मौजूद है। राजकिशोर ने एक पोस्ट्स में आया चुनाव, आया चुनाव में तीखा व्यंग्य भी किया है। उन्होंने बहुत मजे लेकर और तीखा व्यंग्य करने के लिए एक दलित की तरफ से खड़े होकर चुनाव के मौसम में नेताओं के उनके गाँव-घर आने पर लिखा है। कांग्रेस के महासचिव राहुल गाँधी की यात्राएँ खासकर किसी दलित और आदिवासी गाँव में यात्राएँ खासी सुर्खियों में रही हैं।
इसी पर राजकिशोर ने व्यंग्य करते हुए राजीव गाँधी से लेकर मायावती तक, सबको लपेटे में लिया है। खास बात यह है कि इसमें करुणा भी है। व्यंग्य के जरिए एक प्रतिरोध पैदा करने की कोशिश की है और स्थूल व्यंग्य से बचने का भरसक प्रयास भी।
अमिताभ बच्चन का अरमान पोस्ट्स में उन्होंने अमिताभ बच्चन की इस इच्छा पर कलम चलाई है कि अमिताभ अपने पिता और महान कवि हरिवंशराय बच्चन की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए कुछ करना चाहते हैं। लेकिन इस लेख में राजकिशोर ने पूरे हिंदी समाज लेखकों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। उनका मानना है कि हिंदी के अधिकांश लेखक कारों में चलते हैं, इनमें से आधे एसी में रहते हैं लेकिन कोई भी इस बात की चिंता नहीं करता कि लेखकों की स्मृति को बचाने के लिए कुछ सार्थक कदम उठाए जाएँ। निश्चित ही इसमें कोई दो मत नहीं कि हमारा हिंदी समाज एक कृतघ्न समाज है और यह अपने लेखकों से वैसा प्यार नहीं करता जैसा बंगाली, मराठी या मलयालम में होता है। यह ब्लॉग सचमुच इस गहरी चिंता को जताता है।
राजकिशोर ने विविधता का पूरा ध्यान रखा है और इसमें किरण बेदी से लेकर करीना कपूर, महात्मा गाँधी से लेकर वीएस नायपाल औऱ आईपीएल से लेकर उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा और तस्लीमा नसरीन पर विचारपरक टिप्पणियाँ लिखी हैं। उदाहरण के लिए स्त्रियों के नए हेडमास्टर में उन्होंने कर्नाटक के एक न्यायाधीश द्वारा एक कार्यक्रम में स्त्रियों के पहनावे पर दिए बयान पर दिलचस्प ढंग से लिखा है औऱ उतना ही दिलचस्प वह लेख, जिसमें डेनमार्क के स्विमिंग पुल में महिलाओं को टॉपलेस-नहाने औऱ उसके किनारे घूमने की अनुमति दी है।
इन बातों पर टिप्पणी करते हुए वे दिलचस्प बात कहते हैं कि इससे यह समाज आदिवासियों का आधुनिक संस्करण होने की दिशा में आगे बढ़ेगा। एक तरफ जहाँ उन्होंने अपने इस ब्लॉग पर कलम के अर्थशास्त्र में निब वाले पेनों की तरफदारी की है वहीं तस्लीमा के भारत छोड़ने को इस महान लोकतांत्रिक देश के लिए शर्म करार दिया है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक वीएस नायपाल पर भी कलम चलाई है जिसमें उनके अपनी पत्नी को पीटने औऱ वेश्यागमन होने की बात स्वीकारने का उल्लेख है।
आईपीएल को राजकिशोर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखते हुए गुलामी का नया दौर साबित करते हैं तो शहर में किताब की जगह सिकुड़ती जाने पर दुःख भी जाहिर करते हैं।
उन्होंने आमिर खान की चर्चित फिल्म तारे जमीं पर बहुत ही खूबसूरती से लिखा है औऱ बताया कि यह फिल्म इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें अपने बचपन में लौटने का मौका देती है। वे स्वीकार करते हैं कि इस फिल्म को देखकर वे भी रो पड़े थे।
कहा जाना चाहिए कि राजकिशोर के ब्लॉग विचारार्थ को जरूर पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि यह विचारशील औऱ विचारोत्तेजक है।
ये रहा उनके ब्लॉग का पताः
http://raajkishore.blogspot.com/