Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

दम तोड़ती नदियां, जिम्मेदार आप और हम...

जल है तो कल है...

हमें फॉलो करें दम तोड़ती नदियां, जिम्मेदार आप और हम...

संदीपसिंह सिसोदिया

यह तो सब जानते हैं कि जल ही जीवन है लेकिन भौतिक संपदा की अंधी दौड़ में मुफ्त में मिले इस बहुमूल्य संसाधन का इतना नुकसान किया जा रहा है कि आज भारत में बहने वाली अधिकतर नदियों के प्रवाह क्षेत्र और उनकी जल गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। भारत में प्राकृतिक जल संसाधन के अंधाधुंध दोहन और मानव निर्मित फैक्ट्रियों और उद्योगों से निकले प्रदूषण की शिकार होकर अधिकतर नदियां अब बीमार हो चली हैं।


FILE


जीवनदायिनी और धरती को उर्वर बनाने की वजह से ही प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रंथों में नदियों को मां स्वरूप माना गया है, सिर्फ हिंदू नहीं बल्कि मेसोपोटामिया से लेकर चीन के प्राचीन राजवंशों ने भी कुदरत के इस अनमोल खजाने को सहेजने के संदेश दिए हैं। ध्यान रहे कि पृथ्वी पर कुल 71 प्रतिशत जल उपलब्ध है, जबकि इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी खरा होने के कारण पीने के योग्य नहीं है। बचा 2.7 प्रतिशत मीठा जल हमें नदियों, झीलों, तालाबों जैसे संसाधनों से प्राप्त होता है।

दुनिया के बहुत से बड़े शहर नदियों के किनारे ही आबाद है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि साफ और ताजा पानी जीवन के लिए सबसे जरूरी तत्वों में से एक है, लेकिन नदियों का यही गुण उनके विनाश का कारण बन रहा है।

भारत में तो नदियों तथा अन्य जलक्षेत्रों की स्थिति बेहद खराब है। नदियों से लेकर जल के दूसरे प्रमुख स्रोतों जैसे झील, तालाब और मौसमी नदियों पर भी अतिक्रमण कर उन्हें पाटा जा रहा है। फिलहाल जल संकट की दिनोदिन गंभीर होती स्थिति को लेकर उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकारों को उनके क्षेत्रों के कुंड एवं तालाबों के पाटे जाने पर नाराजगी जताई है। लेकिन जिम्मेदारों के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी। गौरतलब है कि आज से कुछ साल पूर्व न्यायालय ने आदेश दिया था कि वर्ष 1952 के बाद पाटे गए तालाबों एवं पोखरों को खुदवाकर पुरानी स्थिति में लाया जाए जिस पर राज्य और जिलों के नगरीय प्रशासन द्वारा अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

अगले पेज पर : क्या कहती है विश्व बैंक की रिपोर्ट



देश में 14 बड़ी, 55 लघु व 100 सौ छोटी नदियों में मानव मल, मूत्र, दूषित जल व औद्योगिक कचरा उड़ेला जा रहा है। इंसान सहित धरती के प्राणी दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में तकरीबन 60 प्रतिशत बीमारियों का कारण अशुद्ध पानी है। जल प्रदूषित होने का मुख्य कारण मानव द्वारा औद्योगिक कचरे को जलधाराओं में प्रवाहित करना है।

webdunia
FILE


केंद्रीय जल आयोग द्वारा की गई जांचों में पता चला है कि फैक्टरियों से निकलने वाले अपशिष्ट जल प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं। रासायनिक तत्व पानी में मिलकर जलजनित बीमारियों को जन्म देते हैं। कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीज, क्लोराइड, सल्फेट, कार्बोनेट, तेल, फिनोल, वसा, ग्रीस, मोम, घुलनशील गैसें आदि जल के वास्तविक गुण को प्रभावित करती हैं।

यहीं बात खत्म नहीं होती शहरों को रौशन करने के लिए भी नदियों का दोहन किया जाता है। नदियों के प्राकृतिक रास्ते पर बांध बनाकर ऊर्जा उत्पादन किया जाता है। भारत की सबसे पवित्र और पूजनीय नदी गंगा भी ऊर्जा उत्पादन के इन महत्वाकांक्षी मंसूबों का शिकार बन गई है। कुछ विशेषज्ञों का तो मानना है कि डूब क्षेत्र में आए या जल ग्रहण क्षेत्र से बहकर आए जैविक पदार्थ के जलाशय में सड़ने से उसमें ग्रीन हाउस गैसों का निर्माण काफी अधिक होता है जो ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारक बनता है।

अगले पेज पर : गंगा में प्रदूषण से हो रही बीमारियां


गंगा में हो रहे जल-प्रदूषण के चलते उत्तरप्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में गंगा के किनार बसने वाले लोगों में भारी संख्या में आर्सेनिक से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं। डब्ल्यूएचओ ने अकेले पश्चिम बंगाल में ही 70 लाख लोगों के आर्सेनिक जनित बीमारियों से ग्रस्त होने का आकलन किया है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने 2012 में राज्यों को जारी एडवाइजरी में कहा है कि गंगाजल को शुद्ध किए बगैर पीने के लिए उपयोग में नहीं लाया जाए।

webdunia
FILE


* मोक्षदायिनी कही जाने वाली गंगा का पानी लाख सरकारी प्रयासों के बावजूद बनारस सहित अनेक स्थानों पर न स्नान करने लायक रह गया न आचमन के। गंगा एक्शन प्लान, जेएनएनयूआरएम तथा विश्वबैंक द्वारा करीब 20 हजार करोड की लागत से विभिन्न योजनाओं के बावजूद गंगा साफ होने के बजाय और मैली हो गई। 1992 में बनारस में गंगा जल में बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) 5 मिलीग्राम प्रति लीटर थी जो 2014 में बढ़कर 7.2 और जिंस फिकल कोलीफार्म की संख्या 10000 प्रति मिलीलीटर थी, वह अब बढ़कर 41000 हो गई।

अगले पेज पर : शवों का 300 टन अधजला मांस गंगा नदी में


* सिर्फ बनारस में 33 नालों के जरिए तकरीबन 350 एमएलडी सीवेज तथा कचरा गंगा नदी में प्रवाहित हो रहा है। इसके अलावा मणिकर्णिका व हरिश्चन्द्र घाट पर साल भर में 33 हजार शव जलाए जाते हैं, जिनसे करीब 800 टन राख निकलती है। यही राख गंगा में प्रवाहित कर दी जाती है। इसके अलावा शवों का 300 टन अधजला मांस, 3056 बच्चों व आदमियों के शव के साथ 6000 जानवरों की लाशें गंगा में जाती हैं।

webdunia
FILE

* आसन्न संकट : जल संकट सिर्फ भारत ही नहीं समूचे विश्व में अपना असर दिखाने लगा है। ग्लोबल वॉर्मिंग से पिघलते ग्लेशियरों से जहां बाढ़ का प्रकोप बना हुआ है वहीं आने वाले सालों में बारहमासी नदियों को मिलने वाले साफ पानी में भी कटौती होने का अंदेशा है।

दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी (लगभग 5 अरब लोग) आज भी ताजे पानी के लिए गंगा, ब्रह्मपुत्र, यलो, मीकांग, नील, टाइबर, राइन, डेन्यूब और अमेजन जैसी प्रमुख नदियों पर निर्भर है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इन नदियों पर लगातार पड़ रहे दबाव व नदीतंत्र के अत्यधिक दोहन के परिणामस्वरूप इन नदियों पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। नदी के पर्यावरण के साथ हो रही छेड़छाड़, खेती और मानव उपयोग के लिए खींचे जा रहे पानी और प्रदूषण के कारण ये नदियां अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी हैं।

हालांकि इस समय विश्व स्तर पर नदियों को बचाने की कई मुहिम चल रही हैं, लेकिन हाल में प्रकाशित एक अनुसंधान रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि दुनिया के सबसे आबादी वाले क्षेत्रों जैसे उत्तरी चीन में यलो नदी, भारत में गंगा, पश्चिम अफ्रीका में नाइजर में बहने वाली नदियां बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारणों के कारण तेजी से पानी खो रही हैं। असंख्य छोटी नदियां तो प्रकृति और मानव की इस मार के आगे कब से ही अपना अस्तित्व खो चुकी हैं।

webdunia
FILE


विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों का नदियों पर असर पड़ने से निकट भविष्य में करोड़ो लोगों के लिए भोजन और पीने के पानी का भयावह संकट उत्पन्न हो जाएगा।

अगले पेज पर : 8 नदियां 'जल सुरक्षा' की दृष्टि से खतरे में



नेचर जर्नल के एक अंक में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे विश्व में नदियों पर निर्भर 65 प्रतिशत जैव विविधता अत्यंत खतरे में है। रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व की 47 सबसे बड़ी नदियों में से 30 जो विश्व के ताजे पानी की लगभग आधी मात्रा प्रवाहित करती हैं, मध्यम खतरे की श्रेणी में हैं।

webdunia
FILE


इसी प्रकार 8 नदियां 'जल सुरक्षा' की दृष्टि से बहुत अधिक खतरे में आंकी गई हैं, जबकि 14 नदियां की 'जैव विविधता' की दृष्टि से बहुत अधिक खतरे में होने के रूप में पहचान की गई हैं। स्कैंडेनेविया, साइबेरिया, उत्तरी कनाडा और अमेजन क्षेत्र और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की नदियों को सबसे कम खतरे में माना गया है।

इस अनुसंधान में न्यूयॉर्क सिटी विश्वविद्यालय, विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय और सात अन्य संस्थानों के कॉलेज से कई वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञ शामिल थे। अनुसंधान दल ने एक विकसित कंप्यूटर आधारित मॉडल का उपयोग करते हुए इन नदियों पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को एक मानचित्र के रूप में बताया है, जिसमें नदियों पर दुष्प्रभाव डालने वाले 23 प्रकार के कारकों को दर्शाया गया है। इसमें ताजे पानी की नदियों पर कृषि उपयोग, खनन, रासायनिक तथा औद्योगिक प्रदूषण जैसे कई कारणों से होने वाले पर्यावरण ह्रास का मापन किया गया है।

अनुसंधान दल ने पाया कि विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में बहने वाली नदियों पर एक जैसे ही दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। चाहे वे नदियां विकसित देशों की हो या विकासशील देशों की।

बारहमासी प्रवाह वाली नदियां मानव जीवन के लिए तो जरूरी है ही, साथ ही प्राकृतिक चक्र को सुचारु बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व 'पानी' का मुख्य स्रोत है पर नदियों में होते लगातार क्षरण के कारण अब धरती की इस अमूल्य संपदा का भी तेजी से क्षय हो रहा है।

webdunia
FILE


विडंबना है कि अपने घरों में तो हम पीने के पानी के लिए जल शुद्धिकरण यंत्रों का उपयोग करते हैं लेकिन गिरते जलस्तर और प्रदूषण की चिंता किसी को नहीं है। जब बात नदियों जैसी बहुमूल्य संपदा की होती है तो क्यों लोग इससे किनारा कर लेते हैं। 'जल है तो कल है' जैसी बातें सिर्फ जल संवर्धन के नारे नहीं है इनमें बहुत बड़ी बात छुपी है तो आप के और मेरे, सबके काम की है...

webdunia
FILE

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi