हिंदी में फिल्मों पर बेहतर साहित्य का अभाव है। यदि आप हिंदी पत्रिकाओं-अखबारों पर सरसरी निगाह ही डालेंगे तो पाएँगे कि यहाँ किसी भी फिल्म पर औसत दर्जे के चलताऊ किस्म के लेख ज्यादा मिलेंगे। इनका स्वाद भी कुछ-कुछ चटखारेदार होता है। उसमें फूहड़ किस्म की टिप्पणियाँ होती हैं और जो जानकारियाँ दी जाती हैं उनमें अधिकांश में गॉसिप होते हैं।
फिल्म समीक्षाओं का लगभग टोटा है। जो समीक्षाएँ छपती हैं उनमें आधी से ज्यादा जगह कहानी घेर लेती है। बचे हिस्से में कुछ सतही पंक्तियाँ भर होती हैं जैसे- संगीत मधुर है और फोटोग्राफी सुंदर है।
अभिनय ठीक-ठाक है। लेकिन इस परिदृश्य में कुछ फिल्मी पत्रकार हैं, जो फिल्मों पर औसत दर्जे से थोड़ा ऊपर उठकर कुछ बेहतर लिखने की कोशिश करते हैं। यदि फिल्मों पर आपको ठीकठाक लेख या टिप्पणियाँ पढ़ना हो तो आपके लिए अजय ब्रह्मात्मज का ब्लॉग चवन्नी चैप एक बेहतर विकल्प हो सकता है। कई लोग उनके इस ब्लॉग का नाम चवन्नी छाप लिखते हैं लेकिन इसकी पोस्ट्स पढ़कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कतई चवन्नी छाप नहीं है।
फिल्मों में दिलचस्पी रखने वाले प्रेमियों को इस ब्लॉग में हर तरह की टिप्पणियाँ, जानकारियाँ, नई-पुरानी फिल्मों की समीक्षाएँ, नए-पुराने निर्देशकों और अभिनेता-अभिनेत्रियों पर लेख मिल जाएँगे। फिल्म संगीत और गीत पर रोचक टिप्पणियाँ मिल जाएँगी और अच्छी कहानी के लिए तरसती हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बारे में भी पठनीय सामग्री हाथ लग सकती है। यही नहीं, अमिताभ बच्चन से लेकर ऐश्वर्या राय और आशुतोष गोवारिकर से बेहतर साक्षात्कार भी पढ़ने को मिल जाएँगे।
चवन्नी चैप पर बीस जून की एक पोस्ट समांतर सिनेमा के दिग्गज फिल्मकार श्याम बेनेगल पर केंद्रित है। बेनेगल को बैंकॉक में नौवें आईफा अवार्ड समारोह में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। बेनेगल पर एक टिप्पणी में कहा गया है कि अक्सर बिमल राय से लेकर श्याम बेनेगल तक को महान फिल्मकार बताते रहे हैं लेकिन क्या हमने इन महान फिल्मकारों को निजी तौर पर परखा, देखा और समझा है? आप आसपास पूछकर देख लें, संभव है अधिकांश ने उनकी फिल्में देखी भी न हों। अजयजी अपनी इस टिप्पणी में श्याम बेनेगल को कोट करते हैं-
कई दूसरे निर्देशकों के साथ मैं भी फिल्में निर्देशित कर रहा था। हम सभी यही चाहते थे कि सिनेमा सिर्फ पलायन और मनोरंजन का माध्यम नहीं बना रहे। देश के प्रमुख समीक्षक चिदानंद दासगुप्ता ने अपने एक लेख में कहा है कि अगर सत्यजीत राय की फिल्में टैगोर के प्रबोधन का चित्रण करती हैं, तो श्याम बेनेगल की फिल्मों में हम नेहरू के भारत को देख सकते हैं, क्योंकि लोकतंत्र, धर्म निरपेक्षता, अवसर की समानता, मानव अधिकार और नारी अधिकार आदि मामलों में श्याम बेनेगल ने ही नेहरू की सोच को फिल्मों में प्रतिस्थापित किया। हिंदी फिल्मों में सामाजिक दृष्टि से इतना सचेत और जागरूक दूसरा कोई फिल्मकार शायद नहीं है।
यह सही है यदि हम श्याम बेनेगल की अंकुर, मंथन, मंडी, त्रिकाल, कलयुग फिल्में देखें तो कहा जा सकता है कि इस फिल्मकार ने हिंदी सिनेमा को नई सिनेमा भाषा और तेवर दिए हैं।
इस ब्लॉग पर मंदा ही रहा धंधा टिप्पणी में कहा गया है कि सरकार राज से लेकर समर फिल्म के बावजूद बॉलीवुड का धंधा ठंडा रहा है। एक टिप्पणी अभिनेत्री करीना कपूर बनाम ब्रांड बेबो में करीना के विभिन्न प्रोडक्ट्स के लिए विज्ञापन करने पर की गई है और जानकारी दी गई है कि वे विज्ञापनों से सबसे ज्यादा आय कमाने वाली अभिनेत्री बन गई हैं।
फिल्म समीक्षाओं के तहत इसमें एकदम नई फिल्म मेरे बाप पहले आप और सरकार राज से लेकर साँवरिया और ओम शांति ओम पर समीक्षाएँ हैं। सरकार राज पर रामगोपाल वर्मा के फिल्मों में एक खास तरह के माहौल रचने की कुशलता की तारीफ की गई है लेकिन साथ ही यह कहा गया है कि बतौर एक पूरी फिल्म यह उनकी एक और असफल फिल्म है।
मेरे बाप पहले आप के बारे में कहा गया है कि इसमें प्रियदर्शन दोहराव के शिकार हुए हैं जबकि फराह खान निर्देशित फिल्म ओम शांति ओम के बारे में अजयजी ने लिखा है कि फिल्म इंटरवल तक रोचक है लेकिन इसके बाद पुनर्जन्म और फालतू ड्रामेबाजी में उलझकर रह गई है। हाँ, उन्होंने समर को एक सामाजिक सरोकार वाली फिल्म बताकर तारीफ की है। किशोर कुमार की फिल्म हॉफ टिकट के बहाने किशोर कुमार पर एक अच्छी टिप्पणी है जिसमें उनकी बहुमुखी प्रतिभा के गुण गिनाते हुए उनका प्रशस्ति गान किया गया है।
चवन्नी चैप की फिल्म की हर नई बातों पर नजर है। यह इससे साफ होता है कि उन्होंने दो नए सितारों पर एक लेख दिया है जिसमें लव स्टोरी २०५० में हरमन बावेजा और जाने तू या जाने ना फिल्म में इमरान खान की संभानाओं पर बात की है।
जहाँ तक साक्षात्कार का सवाल है, अधिकांश साक्षात्कार बहुत ही सतही सवालों से भरे होते हैं और उनके उत्तर भी लगभग उतने ही सतही होते हैं। लेकिन चवन्नी चैप में साक्षात्कार पढ़ने का मजा है क्योंकि यहाँ अभिनेता-अभिनेत्रियों और निर्देशक से कुछ अच्छे और बेहतर सवाले पूछे गए हैं। लिहाजा उनके उत्तर भी अच्छे और बेहतर हैं। इसलिए अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्या राय और आशुतोष गोवारिकर के इंटरव्यू रोचक और पठनीय हैं। अमिताभ बच्चन का इंटरव्यू तो अमिताभ के ब्लॉग पर पढ़ा जा सकता है।
अच्छी कहानी के लिए तरसती हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इसके लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं, इसकी जानकारी दी गई है। बिग बी, आमिर खान और सलमान खान के ब्लॉग लिखे जाने को लेकर भी अच्छे लेख हैं। यही नहीं, जापानी लोक कला, एकेडमी अवार्ड आदि विषयों पर लेख पढ़ने को मिलेंगे।
उनका यूआरएल है
http://chavannichap.blogspot.com/