और थम गई जिंदगी की रफ्तार...
आज फिर पूरे देश में पहियों को रुकने पर मजबूर किया गया...वही पहिए जो हमारी आधुनिक जिंदगी के कणर्धार हैं। उनकी साँसें रोक ली गईं और थम गई जिंदगी की रफ्तार। देश की हर गली-हर चौराहे पर पर आम लोगों की आवाजाही बंद कर दी गई... कारण रामसेतु को नष्ट करने से रोका जाए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर तक रामसेतु को नष्ट करने पर रोक लगा दी है। चूँकि यह दिन नजदीक है इसलिए श्री रामेश्वरम रामसेतु रक्षा मंच ने निर्णय लिया कि रामसेतु को बचाने के लिए पूरे देश में सुबह 8 से 11 बजे तक चक्काजाम किया जाएगा। व्यक्तिगत तौर पर मैं भी चाहती हूँ कि पुरातात्विक महत्व के रामसेतु को आनन-फानन में नष्ट न किया जाए। उसके पुरातात्विक महत्व को सही सम्मान मिले। लेकिन विरोध का यह तरीका मुझे सख्त नापसंद है।
देश और दुनिया की खबर दिखाने वाले टीवी चैनलों में जो ‘ लाइव’ दिखाया जा रहा था वो बेहद शर्मनाक था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सुबह भगवा ब्रिगेड के हाथों दम तोड़ती नजर आ रही थी। भारत की जीवन रेखा रेल सेवाओं को ठप करने की कोशिशें जारी थीं।
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आखिर आम लोगों को जो खुद ही ऐसे मौकों पर बेहद बेबस हो जाते हैं, को परेशान करके रामसेतु को कैसे बचाया जा सकेगा। यह बात मेरी समझ से परे है। फिर अभी कुछ दिनों पहले ही दो राजनीतिक दलों की आपसी भिड़ंत के कारण हुए जाम में एक मासूम अपनी जान खो चुका है। लेकिन यही तो राजनीति है जो आम लोगों के हित से परे सिर्फ अपने हित के बारे में सोचती है। राजनेताओं ने अपने राजनीतिक स्वार्थ की सिद्धी के लिए रामसेतु पर भी रोटियाँ सेकनी शुरू कर दी है।
आज सुबह मन किया कि क्यों न एक बार चक्काजाम की स्थिति देख ली जाए... शहर की हर गली-हर चौराहे पर कथित हिन्दूवादी दल के कार्यकर्ता रास्ता रोककर खड़े थे...कहीं-कहीं तो लाठियों का डर दिखाकर लोगों को रोका जा रहा था। पत्रकार होने के कारण मुझे रोका नहीं गया...अभी कुछ आगे ही बढ़ी थी कि एक महिला चिकित्सक आगे जाने के लिए विनती कर रही थी। उसके कपड़े और वाहन पर लगा प्लस का निशान उसके डॉक्टर होने का सबूत दे रहा था। लेकिन कार्यकर्ता थे कि उसकी बात सुनने को ही तैयार नहीं थे...। वे उससे उसके डॉक्टर होने का सबूत माँग रहे थे। वहीं चौराहे पर खड़े खाकी वर्दी के सिपाही चुपचाप यहाँ का नजारा देख रहे थे। उन्होंने पास आकर वस्तुस्थिति जानने की कोशिश भी नहीं की। आखिर वह महिला चिकित्सक कच्चे रास्ते की ओर मुड़ी शायद इन्हीं रास्तों से होकर वह अस्पताल पहुँचेगी...या शायद वक्त पर न पहुँच पाए। लेकिन वहाँ उसका मरीज? उसकी स्थिति क्या होगी? इसकी किसे चिंता थी।
इस महिला डॉक्टर की तरह कई लोगों से इन छुटभैया नेताओं ने हू-हुज्जत की और ऐसा दर्शाया जैसे आम लोगों के मन में भगवान राम के प्रति कोई श्रद्धा ही नहीं है। ये चंद लोग ही हैं जो राम के सही अनुयायी हैं... और इस बंद से ही रामसेतु नष्ट होने से बच जाएगा।
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आखिर यह कैसी विडंबना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में एक डॉक्टर से छुटभैया नेता (जिसका कोई वजूद नहीं) उसके डॉक्टर होने का प्रमाण माँगते हैं ...रास्ता रोकते हैं और उसे कच्चे रास्ते से जाने पर मजबूर करते हैं और पास खड़ा प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है। स्कूल-कॉलेज, ऑफिस, व्यापार सभी को बंद करके किसी चीज का विरोध... यह तरीका हमेशा से मेरी समझ से परे रहा है। आज की इस घटना के बाद मुझे यह तरीका और ज्यादा खलने लगा है। देश और दुनिया की खबर दिखाने वाले टीवी चैनलों में जो ‘ लाइव’ दिखाया जा रहा था वो बेहद शर्मनाक था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सुबह भगवा ब्रिगेड के हाथों दम तोड़ती नजर आ रही थी। भारत की जीवन रेखा रेल सेवाओं को ठप करने की कोशिशें जारी थीं। सभ्यता और संस्कृति का हवाला देने वाले लोगों का विद्रूप चेहरा दुनिया के सामने था। आम लोगों को जबरन बंद का साथ देने के लिए डाँट-डपटके मजबूर किया जा रहा था। कहीं वाहनों की हवा निकाली जा रही थी तो कहीं उन्हें आग के हवाले किया जा रहा था।
इस घटना ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हिन्दुओं के आराध्य भगवान राम क्या किसी खास वर्ग की बपौती बनकर रह गए हैं? मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम पर आम लोगों से अमर्यादित व्यवहार करना उचित है? ऐसी घटनाएँ आम इंसान के मन पर क्या प्रभाव छोड़ती होंगी? क्योंकि आज के बंद के बाद रामसेतु के प्रति मेरे स्वयं के विचार बदल रहे हैं।
मेरे लिए मासूमों की जिंदगी के आगे पत्थर का रामसेतु नगण्य है। यदि मेरे विचार बदल रहे हैं तो आम व्यक्ति क्या सोचता होगा? जिसकी जिंदगी के तीन घंटे उससे छीन लिए गए... हो सकता है आपके लिए नहीं लेकिन किसी और के लिए ये तीन घंटे बेहद अनमोल होंगे। और इस लोकतांत्रिक देश में किसी को भी किसी की जिंदगी के अनमोल पलों को चुराने का कोई हक नहीं है।