इंडियन बाइस्कोप आपका स्वागत करता है
ब्लॉग चर्चा में इस बार इंडियन बाइस्कोप
नमस्कार,
इंडियन बाइस्कोप में उन सभी का स्वागत, जो भारतीय सिनेमा और उसके कलाकारों के असाधारण योगदान से अभिभूत हैं, इंडियन बाइस्कोप उनको समर्पित, जिन्होंने सपने देखने का साहस किया, जिन्होंने सपने देखे और जिन्होंने हमें सपने देखना सिखाया।ब्लॉग दुनिया में कई रंग के ब्लॉग हैं। और जैसा कि ऊपर की पंक्तियों से जाहिर है सिनेमा-गीत-संगीत के इस ब्लॉग इंडियन बाइस्कोप में कई रंग हैं। इनमें हॉलीवुड-बॉलीवुड की नई-पुरानी फिल्मों के बारे में टिप्पणियाँ हैं। ये टिप्पणियाँ कई जानकारियों से भरपूर होती हैं तो कई बार कुछ बेहद निजी यादों के स्पर्श के साथ अभिव्यक्त होती हैं। इस ब्लॉग में कुछ पुराने गीतों-नगमों की आत्मीय याद है तो कहीं-कहीं विनम्र विश्लेषण भी है। कई पोस्टरों के साथ टॉकीजों से जुड़ी दिलचस्प यादें भी हैं तो कहीं किसी भुला-बिसरे दिए गए गायक-गायिकाओं का स्मरण भी। दक्षिण भारतीय फिल्मों के परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक सिनेमा पर रोचक विश्लेषण है तो कहीं एनीमेशन फिल्मों पर पोस्ट शामिल हैं। हालाँकि यह एक अनियमित ब्लॉग है और इसके ब्लॉगर दिनेश श्रीनेत ने हाल ही में वादा किया है कि वे इसे नियमित लिखने की कोशिश करेंगे। |
इंडियन बाइस्कोप में उन सभी का स्वागत, जो भारतीय सिनेमा और उसके कलाकारों के असाधारण योगदान से अभिभूत हैं,, इंडियन बाइस्कोप उनको समर्पित, जिन्होंने सपने देखने का साहस किया, जिन्होंने सपने देखे और जिन्होंने हमें सपने देखना सिखाया। |
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इसकी एक पोस्ट में सुरैया की गाए एक प्रेम गीत छोटी-सी मोहब्बत की...को याद करते हुए ब्लॉगर लिखते हैं -इसके शब्दों की सादगी में कोई ऐसा जादू है कि आप बार-बार इसके करीब जाते हैं। हर बार करीब जाने के बाद भी बहुत कुछ ऐसा है जो खुलता नहीं.. कोहरे में छिपी हुई सुबह की तरह... या बचपन की धुँधली यादों की तरह।
कहने की जरूरत नहीं कि यह एक गीत को याद करने का बेहद आत्मीय तरीका है और इस तरीके की झलक बार-बार इस ब्लॉग पर पढ़ी-महसूस की जा सकती है। हु्स्नलाल-भगतराम के संगीतबद्ध इस गीत को कमर जलालाबादी ने लिखा है और अपनी पुरकशिश आवाज में सुरैया ने इसे यादगार बना दिया है। इस गीत को उनके इस ब्लॉग पर सुना भी जा सकता है। यानी वे दिखाते भी हैं, सुनाते भी हैं और महसूस भी कराते हैं।
फिल्मकार शेखर कपूर के एक इंटरव्यू के बहाने श्रीनेत कॉमिक्स और सिनेमा के अंतर्संबंधों पर दिलचस्प ढंग से लिखते हैं। फैंटम से लेकर मैंड्रेक और इंद्रजाल कॉमिक्स से लेकर सुपरमैन-स्पाइडरमैन फिल्मों को याद करते हैं। कॉमिक्स के जरिए इस बात पर विचार करते हैं कि कॉमिक्स कैसे सिनेमाई नैरेशन में मदद कर सकता है। इसी तरह से वे अपनी एक अन्य पोस्ट दक्षिण का सिनेमा में दक्षिण फिल्मों को याद करते हुए अडूर गोपालकृष्णन और जी. अरविंदन जैसे दिग्गज फिल्मकारों की फिल्मों और उनकी खासियतों पर एक सरसरी निगाह डालते हैं तो दूसरी तरफ दक्षिण के व्यावसायिक सिनेमा के बनावटीपन के बावजूद उनके कथ्य और राजनीतिक तेवर के कायल होते जान पड़ते हैं।
इंकलाब, मेरी अदालत, अंधा कानून, आज का एमएलए से लेकर जरा-सी जिंदगी और एक नई पहेली जैसी फिल्मों का संदर्भ देते हुए वे कहते हैं कि इनमें राजनीतिक तेवर उन्हें प्रभावित करते हैं। वे दक्षिण की फिल्मों की संपादन शैली, गाँव और प्रकृति के मनोरम चित्रण को भी रेखांकित करते हैं।
लो दिल की सुनो दुनिया वालों पोस्ट में वे सिनेमा से जुड़ी अपनी निजी यादों का आत्मीयता से बखान करते हैं जिनमें पोस्टर से लेकर, कवर्स और ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स की सुनहली यादें हैं। वे इसमें लिखते हैं कि सिनेमा अपने आसपास खूबसूरत रचनात्मक संसार रचते हुए चलता है। इसमें उन्होंने याद किया है कि किस तरह ब्लडप्रेशर की शिकार उनकी माँ रात को लाइट बंद कर बिस्तर पर लेटकर उनसे ग्रामोफोन पर गाने सुनवाने के लिए कहती थी। कहने की जरूरत नहीं कि और मैं यह बात पहले भी कहीं कह चुका हूँ कि हिंदी फिल्मी गीतों ने न जाने कितने हजारों-लाखों लोगों को उनके जीवन में किसी मोड़ और मूड्स पर कितनी राहत दी होगी, उनके दुःख में उन्हें कितने खूबसूरत अंदाज में थाम लिया होगा। श्रीनेत की यह पोस्ट इसकी एक मार्मिक झलक प्रस्तुत करती है। किस्सा-ए-बॉलीवुड तथा अतीत के कुछ और चलचित्र या किस्सा-ए-बॉलीवुड में वे अपने किशोरवय में देखी फिल्मों से जुड़ी अपनी यादों को शेयर करते हैं तो भविष्य में लड़ी जाने वाली जंग में वे हॉलीवुड की कुछ खास फिल्मों पर टिप्पणी करते हैं जिनमें टर्मीनेटर से लेकर मैट्रिक्स फिल्में शामिल हैं। किस्सा-ए-बॉलीवुड शीर्षक अपनी पोस्ट में वे लिखते हैं कि भाषा अक्सर आड़े आती थी। परिवेश भी अनजाना था और उँगली पर गिने जाने लायक अभिनेताओं को हम पहचानते थे। इसके बावजूद कई छवियाँ आँखों से होती मन में और मन से होती अतीत होती किसी अँधेरी गुफा में भीत्ति चित्र की तरह कैद हो गई हैं....
अतीत के चलचित्र पोस्ट में उनका कहना कितना दुरुस्त है कि- कभी निर्मल वर्मा ने इस उपन्यास के सिलसिले में कहा था कि एक अच्छे उपन्यास की पहचान यह होती है कि उन शब्दों में बसा जीवन हमारे खुद के जीवन में उतर आता है। क्या यह सिनेमा का भी सच नहीं है? सिनेमा उतना ही मेरी यादों में बसा है, जितनी कि मेरे वास्तविक जीवन की छवियाँ... प्रोजेक्टर के पीछे से झिलमिलाती रंगीन रोशनियाँ आती-जाती साँसों में बस चुकी हैं।
यही नहीं, एक अन्य पोस्ट में वे हॉलीवुड की एमिनेशन फिल्मों की बेहतर और परिष्कृत फिल्मों पर अपने ढंग से, निहायत ही सादगीपन से टिप्पणी करते हुए आइस एज की खूब तारीफ करते हैं और इसके बहाने उसकी मार्मिकता और मानवीय संदेश का महत्व बताते हैं। इसके अलावा वे हॉलीवुड की उन फिल्मों का भी नोटिस लेते हैं जिसमें भयावह समय की कल्पना की गई है और जिन फिल्मों को स्पेशल इफेक्ट्स, निर्देशकीय क्षमता और कल्पनाशीलता से एक देखने लायक अनुभव बना दिया गया है। इसमें वे ट्रांसफॉर्मर से लेकर डाई हार्ड, जुरासिक पार्क से लेकर मैट्रिक्स तक पर बात करते हैं।
जेपी दत्ता निर्देशित और सनी देओल अभिनीत फिल्म यतीम पर वे निर्देशकीय कुशलता का बयान करते हैं तो सनी देओल को एक नई दृष्टि से देखे जाने की प्रशंसा भी करते हैं।
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा गीत को भावुकता से याद करते हैं और कहते हैं कि यह हिन्दी सिनेमा का न भुलाने वाला गीत बन गया। पहला गीत जीवन के नश्वर होने की बात कहता है मगर इसकी खूबी यह है कि यह आपके भीतर बेचारगी का भाव नहीं पैदा करता। यह दरअसल जीवन के प्रति एक ईमानदार स्वीकारोक्ति है। यह आपको अहंकार से मुक्त होने के लिए नहीं कहता, आपको खुद-ब-खुद अहंकार से मुक्त कर देता है।
कल और आएँगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझको याद करे, क्यूँ कोई मुझको याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिए क्यों वक्त अपना बरबाद करे
इसे वे सुनाते भी हैं।
फिर एक अन्य पोस्ट में वे नीरज के लिखे गीत हम-तुम कुछ और बँधेंगे की सुंदर व्याख्या करते हैं और उसकी खूबी से परिचित कराते हैं। इस गीत के बोलों पर जरा ध्यान दें-
वो मेरा होगा, वो सपना तेरा होगा
मिलजुल के माँगा, वो तेरा-मेरा होगा
जब-जब वो मुस्कुराएगा अपना सवेरा होगा
थोड़ा हमारा, थोड़ा तुम्हारा,
आएगा फिर से बचपन हमारा
आगे की कुछ लाइनें देखें-
हम और बँधेंगे, हम तुम कुछ और बँधेंगे
आएगा कोई बीच तो हम तुम और बँधेंगे
थोड़ा हमारा, थोड़ा तुम्हारा,
आएगा फिर से बचपन हमारा
तेरे मेरे सपने फिल्म के इस गीत के बहाने वे अपने न भूलने वाले गीतों पर बेहतर टिप्पणी करते हैं।
और अंत में वे जो हमारा अपना है टिप्पणी में भारतीय फिल्मों की खासियत को बताते हैं कि इसमें कहानी कहने का जो रागात्मक तरीका है वह भारतीय फिल्मों को दुनिया की तमाम फिल्मों से जुदा करता है और उसे एक विशिष्टता देता है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दिनेश श्रीनेत के इस ब्लॉग की यह खासियत कही जा सकती है कि वे चाहे फिल्म हो, कोई गीत हो, कोई गायक या गायिका या फिल्म से जुड़ी कोई याद, वे उसे रागात्मकता और सादगी से अभिव्यक्त करने की कोशिश करते हैं।
इस ब्लॉग को पढ़ा जाना चाहिए।
इसका यूआरएल है -
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