5 जुलाई को ‘ह्रवासोंग-12’ और 28 जुलाई को ‘ह्रवासोंग-14’ नामक आईसीबीएम का उत्तर कोरिया ने सफल परीक्षण करके दुनिया को चौंका दिया है। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने अब तक की सबसे लंबी दूरी की ‘इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल’ (आईसीबीएम) के परीक्षण की सफलता का जश्न मनाते हुए कहा है कि अमेरिका, कोरिया प्रायद्वीप को परमाणु युद्ध की ओर धकेल रहा है, लेकिन उनका देश अपने परमाणु कार्यक्रमों से कभी भी और किसी भी दशा में कोई समझौता नहीं करेगा। उत्तर कोरिया के इस संकल्प से ज्ञात होता है कि उत्तर कोरिया अभी आगे और भी परमाणु परीक्षणों की तैयारी कर रहा है।
वैसे वह पिछले एक बरस में कम से कम एक दर्जन मिसाइल परीक्षण कर चुका है। ऐसा कहा जा रहा है और जैसा कि उत्तर कोरिया भी दावा कर रहा है कि 6,700 किलोमीटर दूर तक मार कर सकने वाली उत्तर कोरिया की इस नई मिसाइल आईसीबीएम ‘ह्रवासोंग-12’ और ‘ह्रवासोंग-14’ की जद में अमेरिका भी आ गया है। पता नहीं दुनिया, एक और विश्वयुद्ध से कितनी दूर है?
उक्त आईसीबीएम मिसाइल परीक्षण के बाद अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने गोला-बारूद सहित युद्धाभ्यास किया। उनके इस युद्धाभ्यास की निंदा करते हुए उत्तर कोरिया के सरकारी समाचार पत्र ‘रोडेंग’ के हवाले से कहा गया है कि अमेरिका को बारूद के ढेर पर बैठकर आग से नहीं खेलना चाहिए। ‘रोडेंग’ के संपादकीय में कोरियाई प्रायद्वीप को दुनिया का सबसे खतरनाक विस्फोटक स्थान बताते हुए लिखा गया है कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया इस क्षेत्र में और अधिक तनाव बढ़ाने का काम कर रहे हैं। एक छोटी-सी गलती अथवा गलत अनुमान से तत्काल एक ऐसा परमाणु युद्ध प्रारंभ हो सकता है, जो समूची दुनिया को एक और विश्वयुद्ध की ओर धकेल देने में सफल हो सकता है।
किम जोंग उन की सनक के चलते उत्तर कोरिया ने एक बरस में 12वां मिसाइल परीक्षण संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों और सैन्य कार्रवाई की अमेरिकी धमकियों के बावजूद किया। न्यूज एजेंसी ‘केसीएनए’ के मुताबिक भारी परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम उत्तर कोरिया की यह मिसाइल 2,111.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर 6 मिनट तक हवा में रहने के बाद जापान के पूर्वी सागर में गिरी।
परमाणु विशेषज्ञों का कहना है कि इस मिसाइल ने गिरने से पहले 787 किलोमीटर की दूरी तय की किंतु अगर इसे अधिकतम दूरी के लिए छोड़ा जाता है तो इसकी दूरी 4,500 किलोमीटर या इससे अधिक भी हो सकती है अर्थात उत्तर कोरिया की उक्त मिसाइल की जद में अमेरिका भी आ जाता है। उक्त मिसाइल का नाम उत्तर कोरिया ‘ह्रवासोंग-12’ और ‘ह्रवासोंग-14’ बताया गया है।
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली का कहना है कि उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन पर ‘पागलपन’ सवार है। उत्तर कोरिया का यह मिसाइल परीक्षण दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति मून जे इन को यह संदेश देने के लिए है कि वह किसी भी तरह के युद्ध का सामना करने में सक्षम है, जबकि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की इस हरकत को उकसाने वाली कार्रवाई बताया है।
किम जोंग उन ने पहले कहा था कि उत्तर कोरिया, अमेरिका से बातचीत करना चाहता है बशर्ते हालात कुछ ठीक हों।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपना रुख लचीला करते हुए और किम जोंग उन को ‘स्मार्ट कुकी’ बताते हुए कहा था कि उत्तर कोरिया की बड़ी समस्या का हल निकाल लिया जाएगा। यही नहीं, दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति मून जे इन ने भी अपने प्रारंभिक संबोधन में कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव दूर करने के मकसद से उत्तर कोरिया के साथ सुलह की वकालत का संकेत देकर अपने विचार जाहिर कर दिए थे, लेकिन उत्तर कोरिया के ताजा परमाणु परीक्षण ने एक बार फिर सभी का रुख बदल दिया है।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने तो सीधे-सीधे उत्तर कोरिया पर यह आरोप लगा दिया है कि वह परमाणु हथियारों सहित कुछ ऐसे अन्य आक्रमणकारी हथियारों का उत्पादन भी बढ़ा रहा है जिससे परमाणु कार्यक्रम का खतरा एक नए चरण में प्रवेश कर रहा है। उत्तर कोरिया का मिसाइल परीक्षण और परमाणु कार्यक्रम नि:संदेह उकसाने वाली कार्रवाई है।
प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने ‘सीएनबीसी’ को दिए एक साक्षात्कार में यह कहते हुए दुनिया को चौंका दिया है कि किम जोंग उन के शासनकाल में सिर्फ पिछले 1 बरस के दौरान 20 से कहीं ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें प्रक्षेपित की गई हैं, जो कि उन के पिता किम जोंग इल के शासनकाल में प्रक्षेपित की गई बैलिस्टिक मिसाइल की कुल संख्या से बहुत अधिक हैं।
किम जोंग उन के पिता किम जोंग इल ने उत्तर कोरिया में जब व्यापक पैमाने पर परमाणु कार्यक्रम शुरू करवाया था, तब वे किम जोंग उन से पहले उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति थे और जब-जब अमेरिकी गुप्तचरों ने उत्तर कोरियाई परमाणु कार्यक्रम की जानकारी अमेरिकी सरकार तक पहुंचाई, तब-तब किम जोंग इल भी यही कहा करते थे कि उनका उक्त परमाणु कार्यक्रम मात्र बिजली उत्पादन के लिए ही है, न कि परमाणु हथियारों के लिए। फिर अपने पिता की मृत्यु के बाद किम जोंग उन ने भी उत्तर कोरिया का राष्ट्रपति पद संभालने पर दुनिया से वादा किया था कि वे अपने पिता की तरह ही परमाणु कार्यक्रमों को आगे बढ़ाएंगे और उनका यह कार्यक्रम सिर्फ बिजली बनाने तक ही सीमित रखा जाएगा। तब अमेरिका सहित तमाम दुनिया ने उत्तर कोरिया के युवा राष्ट्रपति पर सहज ही भरोसा कर लिया। किंतु शीघ्र ही किम जोंग उन अपने दिए गए वादों से मुकर गए और एक के बाद एक, दो, दस, बीस परमाणु परीक्षण कर डाले।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण कार्यक्रम पर गाहे-बगाहे कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, परंतु उन प्रतिबंधों का उत्तर कोरिया पर कोई भी असर नहीं पड़ा, बल्कि इसके उलट उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन ने धमकी दी कि अगर उनके देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए तो वे दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका सहित इस क्षेत्र के विभिन्न देशों पर परमाणु बम बरसाकर उन्हें बर्बाद कर देंगे। उत्तर कोरिया ने ऐसी मिसाइलें तैयार कर ली हैं कि जिनकी जद में वॉशिंगटन और न्यूयॉर्क बड़ी आसानी से लिए जा सकते हैं।
इस धमकी के कुछ ही दिनों बाद उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण भी कर डाला जिसके कारण जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य पड़ोसी देशों में भूकंप जैसे झटके महसूस किए गए। किम जोंग उन तब निर्लज्ज दंभ दिखाते हुए यह ऐलान करने से भी जरा पीछे नहीं हटे कि उन्होंने हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर लिया है। उनकी इस निर्लज्ज दंभोक्तिपूर्ण घोषणा का व्यापक प्रभाव यह देखा गया कि कोरियाई प्रायद्वीप सहित तमाम निकटवर्ती देश भयभीत हो उठे। अमेरिकी गुप्तचर एजेंसियों के हवाले से कहा जा रहा है कि युवा राष्ट्रपति किम जोंग उन या तो पागल हैं या फिर सनकी। वे कब क्या कर बैठे, कहना कठिन है?
यह देखा जाना दिलचस्प हो सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका और उत्तर कोरिया के पहले से ही जारी तल्ख रिश्तों में और भी अधिक कटुता देखी जा रही है। दोनों देशों के बीच पहले से जारी तनाव अब चरम पर पहुंच गया है। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की इस धमकी के बाद कि उसकी बैलेस्टिक मिसाइल प्रशांत सागर स्थित अमेरिकी नौसैनिक अड्डे गुआम तक मार कर सकती है, तबसे अब अमेरिका ने भी सैन्य कार्रवाई के विकल्प पर विचार करना प्रारंभ कर दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दोहरा दिया है कि वे उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने में सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुन सकते हैं, जबकि उत्तर कोरिया आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियारों की जरूरत वाली दलील देता रहा है।
अन्यथा नहीं है कि कोरियाई प्रायद्वीप के तनाव से पैदा हुए वैश्विक खतरे के मद्देनजर कूटनीतिक और शांतिपूर्ण तरीके अपनाने की गंभीर कोशिशें होनी चाहिए।
उत्तर कोरिया के उकसावों को हतोत्साहित करने के लिए अमेरिका, कोरिया (दोनों) चीन और रूस के बीच निकट किस्म का समन्वय बहुत जरूरी है। इस संदर्भ में चीन और रूस की भूमिका बेहद खास है। ऐसा माना जाता रहा है कि उत्तर कोरिया का तानाशाह जो कुछ भी कर रहा है उसके पीछे चीन का समर्थन है, क्योंकि उत्तर कोरिया की भूखी जनता के लिए खाद्यान्न और पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति चीन से होती है। यही नहीं, मौजूदा वैश्विक परिस्थितियां भी कुछ-कुछ ऐसी ही बनती जा रही हैं कि जिसके कारण चीन भी उत्तर कोरिया का साथ नहीं छोड़ सकता है। हालांकि रूस ने उत्तर कोरिया के मसले पर सीधा हस्तक्षेप करने की बजाए दबे-छुपे रहने का ही रास्ता अपना रखा है किंतु रूस की सहानुभूति परोक्षत: किसी भी दृष्टि से अमेरिका की तुलना में उत्तर कोरिया के पक्ष को ही जाहिर करती है।
चीन को तो इस बात का भी डर है कि अगर उसने उत्तर कोरिया पर कुछ अधिक दबाव बनाने की कोशिश की तो उत्तर कोरिया, चीन पर भी परमाणु हमला कर सकता है। उधर अमेरिका भी चीन पर परमाणु हमला कर देने का मंसूबा रखता है। अमेरिका के एक सैन्य कमांडर ने अपना यह मंसूबा बखूबी जाहिर भी कर दिया है। यूएस पेसिफिक फ्लीट के कमांडर एडमिरल स्कॉट स्विफ्ट का कहना है कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन्हें आदेश दें तो वे चीन पर किसी भी समय परमाणु हमला कर सकते हैं। एडमिरल स्कॉट स्विफ्ट ने अपना यह मंसूबा ऑस्ट्रलियाई नेशनल यूनिवर्सिटी सुरक्षा सम्मलेन में ठीक तब व्यक्त किया, जब कांफ्रेंस के दौरान मौजूद एक शख्स ने कमांडर से इस संदर्भ में सवाल पूछ लिया।
समझा जाता है कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों तथा अन्य आक्रमणकारी शस्त्रों का उत्पादन तब तक जारी रखता रहेगा, जब तक कि अमेरिका अपनी मौजूद सैन्य नीति को जारी रखता है। जाहिर है कि तब तक युद्ध का वैश्विक खतरा बना रहेगा।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे जरूर चाहते हैं कि उत्तर कोरिया को धमकाने अथवा उकसाने वाली कार्रवाई करने से रोकने के लिए शांतिपूर्ण तरीके अपनाए जाना चाहिए। शिंजो आबे का कहना है कि अगर उत्तर कोरिया अब आगे और परमाणु परीक्षण करता है, तो जापान भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रतिबंधों के जरिए और प्रतिबंध लगाए जाने की मांग करेगा। शिंजो आबे यह भी चाहते हैं कि चीन, रूस, जापान, अमेरिका सहित उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच छःपक्षीय वार्ता होना चाहिए किंतु जापान यह वार्ता सिर्फ वार्ता के लिए करना नहीं चाहता है।
इसी बीच उत्तर कोरिया ने अपने इरादे एक बार फिर साफ कर दिए हैं। उसने इसी जुलाई माह में अपना दूसरा मिसाइल परमाणु परीक्षण करके दुनिया को चुनौती दी है। 4 जुलाई को ‘इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल’ का सफल परीक्षण किया और 28 जुलाई को देर रात अपनी दूसरी मिसाइल भी दाग दी, जो कि 3,725 किलोमीटर की ऊंचाई और 1,000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए जापान के समुद्र में गिरी। 4 जुलाई को दागी गई मिसाइल ने 787 किलोमीटर दूरी तय की थी।
जाहिर है कि उत्तर कोरिया द्वारा दागी गई दूसरी मिसाइल ने पहले की तुलना में अधिक लंबी दूरी का सफर तय किया है। 4 जुलाई को दागी गई मिसाइल को अगर अधिकतम दूरी और शक्ति के लिए छोड़ा जाता है तो वह 6,500 किलोमीटर से कुछ अधिक की दूरी तय कर सकती है, जबकि 28 जुलाई को दागी गई मिसाइल 10,000 किलोमीटर दूर तक मार करने की क्षमता रखती है। उत्तर कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी के बावजूद 1 माह में अपना यह दूसरा परीक्षण कर दिखाया। उक्त परीक्षण से 1 दिन पहले ही अमेरिकी कांग्रेस ने रूस, ईरान और उत्तर कोरिया पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, किंतु किम जोंग उन किसी की भी परवाह न करते हुए वैश्विक चुनौती देने से जरा भी पीछे हटने को राजी नहीं हैं।
अमेरिका स्थित मिड्लबरी इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल स्टडीज के जेफरी लेविस का आकलन है कि उत्तर कोरिया द्वारा प्रक्षेपित ये मिसाइलें लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम हैं जिनकी जद में अमेरिका भी आता है। इस सबसे वैश्विक स्थिति तनावपूर्ण ही नहीं, बल्कि भयपूर्ण भी है।
इसी दौरान अमेरिका ने ऐसी हाइपरसोनिक एयरक्राफ्ट मिसाइलों का परीक्षण कर लिया है, जो 1 सेकंड में 1 मील की दूरी तय करती हैं। इन हाइपरसोनिक हथियारों का पीछा करना बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह आसान नहीं है। उधर चीन और रूस भी हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहनों का निर्माण कर रहे हैं। इधर अमेरिका और दक्षिण कोरिया अपने सफल संयुक्त युद्धाभ्यास में सक्रिय हैं, तो उत्तर कोरिया अपनी परमाणु सैन्य क्षमता बढ़ाने के मकसद से निरंतर परमाणु मिसाइल परीक्षणों को अंजाम दे रहा है।
उत्तर कोरिया और अमेरिका एक-दूसरे पर युद्ध के लिए उकसाने, भड़काने और धमकाने का न सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, बल्कि ललकार भी रहे हैं। अमेरिका के युद्धक विमानों ने उत्तर कोरिया के आकाश में उड़ानें भरकर अपनी मंशा जाहिर भी कर दी हैं।
पता नहीं दुनिया एक और विश्वयुद्ध से कितनी दूर है?