अंतरिक्ष से नीचे देखने पर पर्यवेक्षकों के मुताबिक गिनी की खाड़ी में अफ्रीका का आक्रमण तैयार हो रहा है। जहाजों के ऊपर तक पानी है। यहां क्या हो रहा है? यह न तो कोई सैन्य अभ्यास है, बल्कि संसाधनों के लिए एक विनाशकारी दौड़ का नजारा है। यह काम दो तरीके से हो रहा है। एक तो समुद्री किनारों पर बड़े-बड़े तेलवाहक जहाज और दूसरे मछली पकड़ने के लिए विशालकाय ट्रालरों की आवाजाही। दोनों उद्योग संसाधनों पर निर्भर हैं- जीवाश्म संसाधन और जैविक संसाधनों पर। लेकिन इन दोनों में नाम के अलावा कोई समानता नहीं है।
तेल कंपनियों की मछलियों की प्रजाति के आधार पर अपने समुद्रगामी क्षेत्रों में कुछ नाम देने की प्रवृत्ति है। उदाहरण के लिए 'शेल' बोंगा फील्ड का परिचालन करती है। 'बोंगा' यहां की स्थानीय मछली की प्रजाति भी होती है। जैसा कि कहा जाता है कि दो हाथियों की लड़ाई में घास चौपट हो जाती है। वास्तव में अफ्रीकी समुद्री तटों, खासतौर पर पश्चिमी अफ्रीकी तट में दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एक तेल निगम और दूसरी औद्योगिक पैमाने पर मछली पकड़ने वाली कंपनी) के कारण प्राकृतिक वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है।
मछली पकड़ने के लिए बड़े ट्रालर ज्यादातर एशिया और यूरोप से होते हैं और वे पश्चिमी अफ्रीका में मछलियों की प्रजातियों का भंडार खाली कर देते हैं। उनके कुछ व्यवसाय वास्तव में अवैध हैं, पर उन्हें आमतौर पर कोई सजा नहीं मिलती। उन्हें मछलियों के दाम ज्यादा मिलते हैं, क्योंकि उन्हें सेनेगल और मॉरिटानिया जैसे प्रसंस्करण संयंत्रों व्दारा खरीदा जाता हैं।
उदाहरण के लिए पशु आहार के लिए मछली खरीदना है तो वे अग्रणी देश एशिया और यूरोप के उद्योग फॉर्म से खरीदनी होगी। इसके पहले जापान और यूरोपियन संघ के ट्रालर ज्यादा मायने रखते थे, लेकिन अब चीन और रूसी जहाज भी प्रासंगिक हो गए हैं। पश्चिम अफ्रीका में मछली पकड़ने के काम में हजारों मछुआरे लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ, 2014) के मुताबिक मत्स्य कुटीर उद्योग के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे बड़ा योगदान घाना, मॉराटनिया, साओ तोम और प्रिंसाइप, सेनेगल, सियेरा लियोन, टोगो तथा अन्य देशों का रहा है।
इस क्षेत्र में ज्यादातर लोग अपनी प्रोटीन की खपत के लिए मछली और समुद्रीय भोजन पर निर्भर करते हैं। यहां के स्थानीय मछुआरा समुदाय के लिए यह मत्स्य पालन ही नहीं है, बल्कि लोगों की खाद्य आपूर्ति दांव पर है। प्रकृति संरक्षण के लिए कार्यरत अंतरराष्ट्रीय संघ आईयूसीएन 2017 ने चेतावनी दी है कि समुद्री संसाधन, पश्चिम और मध्य के 400 मिलियन लोगों की खाद्य सुरक्षा का आधार है। पश्चिमी अफ्रीकी समुद्र से कुछ मछलियों की प्रजाति लुप्त हो गई हैं।
आईयूसीएन के मुताबिक, मछलियों की मेडेरिय सार्डिन और कसावा क्रॉकर प्रजाति पर खतरा है। अवैध मत्स्याखेट से जोखिम बढ़ गया है। वैसे अवैध मत्स्याखेट कई देशों में होता है। सभी अवैध मत्स्याखेट विदेशी ट्रालरों द्वारा नहीं होता, बल्कि उसके बिना भी होता है। मत्स्य संसाधनों के प्रबंधन में कुशलता करना जरूरी है किंतु यह नहीं हो पा रहा है।
दुर्भाग्य से इसके अलावा जीवाश्म ईंधन निकासी मामले को बदतर बना रही है। इसका एक कारण तेल कुओं को सुरक्षा क्षेत्र की तरह रखा जाता है। मछली पकड़ने वाली बड़ी नौकाओं (ट्रालर) वहां वर्जित हैं, क्योंकि उनकी चमकदार रोशनी मछली को आकर्षित करती है।
दरअसल, तेल उद्योगों के प्रतिष्ठान सामान्य रूप से समुद्री जीवन के केंद्र होते हैं। इसके बावजूद समुद्री जीवन के किनारे ही तेल उद्योग स्थापित हैं। उच्च तकनीक से संचालित उत्पादन, भंडारण और जहाजों से सामान उतारने जैसे काम होते हैं। विश्व के अन्य क्षेत्रों में मछुआ जन साधारण को संबंधित क्षेत्रों में काम करने की अनुमति है, लेकिन पश्चिम अफ्रीका में इस तरह के काम की नहीं है।
दूसरी तरफ जीवाश्म ईंधन क्षेत्र पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। तेल का फैलाव मत्स्य पालन को तबाह करने वाला होता है। न केवल लगे हुए समुद्री तट में बल्कि मुहाने पर और ऊपर की तरफ भी नुकसान होता है। पर्यावरणीय नुकसान से मेंग्रोव जंगल और प्रवाल भित्तियों कोरल रीफ को भी नुकसान पहुंचता है। ये दोनों समुद्री जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं- अंडे रखने के लिए और उनके हेबीटेट (रहने के लिए) के लिए। जहाजों की बढ़ती आवाजाही तो प्रदूषण बढ़ाता है, वहीं कुछ जहाज बड़ी नदियों के ऊपर भी जा रहे हैं।
नाइजीरिया का इतिहास लंबा है- तेल फैलाव से नुकसान का। 2001 में शैल से 40 हजार बैरल कच्चा तेल बोंगा प्लेटफॉर्म में फैल गया। उसी वर्ष में शेवरॉन के गैस कुओं में विस्फोट हुआ और उनमें 1 माह तक आग लगी रही। 1998 में मोबिल के अपने इडोहो प्लेटफॉर्म से 40 हजार बैरल तेल बिखर गया।
सबसे बड़ी आपदा 1979 में शेल के कारण हुई, जब फार्काडो में 5,70,000 बैरल तेल खुले समुद्र में गुम हो गया। दूसरे देशों की सरकारें, जहां तेल उद्योग की शुरुआत है, वहां वे वादे करती हैं कि वे नाइजर डेल्टा के शिकार हुए दुर्घटनाओं से बचेंगे। हालांकि घाना मामला निश्चित ही प्रोत्साहनजनक नहीं है, जहां कच्चे तेल की पहली खेप का फैलाव जहाज पर माल लदाई के दौरान हो गया था।
फिलहाल स्पष्ट तौर पर पश्चिमी अफ्रीकी मत्स्यपालन पर तेल फैलाव के प्रभाव का कोई स्पष्ट अध्ययन नहीं हुआ है। हालांकि हम जानते हैं कि एक्जोन वाल्देज तेल रिसाव के 3 दशक बाद भी अलास्का मत्स्यपालन से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई नहीं हो सकी है। तेल कंपनियां, भूकंपीय पेट्रोलियम अन्वेषण के कारण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर कोई प्रभाव पड़ता है, से इंकार करती हैं जबकि पर्यावरणविद इसे रेखांकित करते हैं कि कुछ गतिविधियों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। उदाहरण के लिए घाना के तट पर मृत व्हेल मछलियां पाई जाना इन्हीं घटनाओं से जुड़ा है।
बहरहाल, तेल के क्षेत्र में मजदूर केंद्रित काम नहीं है इसलिए ज्यादा लोगों को रोजगार भी नहीं है, क्योंकि तेल उत्पादन अत्यधिक स्वचालित है और उसकी प्रोसेसिंग अफ्रीका में नहीं होती लेकिन अन्य महाद्वीपों में होती है। नतीजन तेल कारोबार केवल कुछ अफ्रीकी लोगों को ही लाभ दे पाते हैं। अफ्रीकी नीति निर्माता तेल उत्पादन से मिलने वाली कीमतों से जरूर उत्साहित हो सकते हैं, लेकिन वे मत्स्य कुटीर में लगे गरीब, ग्रामीणों की जरूरतों के बारे में ज्यादा चिंता नहीं करते हैं। यह रवैया दर्दनाक है।
समृद्ध राष्ट्रों के आर्थिक हितों की समस्याएं जटिल हो रही हैं। गरीब लोगों के बारे में सोचना जरूरी है। उनकी आजीविका को बचाना है, न कि खतरे में डालना। अफ्रीकी सरकारों को सभी लोगों के विकास के बारे में सोचना चाहिए। वे ही अपने देश के प्राकृतिक पयार्वरण को अनियंत्रित बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अंतरराष्ट्रीय शोषण से बचा सकते हैं।
(निम्मो बॉसी नाइजीरिया एनवायरमेंटल राइट एक्शन के कार्यकारी निदेशक हैं और 'फ्रेडर्स ऑफ अर्थ' के चेयरमेन हैं। उन्हें राइट लाइलीहुड अवॉर्ड (वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार) से भी नवाजा गया है।)