नोटबंदी को समग्रता में देखिए

अवधेश कुमार
नोटबंदी के एक वर्ष पूरा होने पर जिस तरह सरकार और विपक्ष में तलवारें खींची हुईं हैं उन्हें अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। नोटबंदी के आरंभ से ही विपक्ष खासकर कांग्रेस पार्टी इसके विरुद्ध आवाज उठा रही थी। उसने सरकार के इस कदम को अर्थव्यवस्था के लिए घातक करार दिया और इस समय जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव हैं तो फिर उसके द्वारा इसे प्रमुख मुद्दा बनाना ही था। लेकिन क्या पक्ष और विपक्ष के इन राजनीतिक दावों और प्रतिदावों के आधार पर नोटबंदी का सही आकलन किया जा सकता है? इसका साफ उत्तर है, नहीं। ध्यान रखिए, नोटबंदी को लेकर राजनीतिक स्तर पर जितना तीखा मतभेद है उतना मान्य और राजनीति निरपेक्ष अर्थशास्त्रियों में नहीं है। यही इस बात का प्रमाण है कि इस कदम को एकदम से निरर्थक और अर्थव्यवस्था के लिए अनर्थकारी नहीं कहा जा सकता है।
 
इसमें दो राय नहीं कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद कई महीनों तक अव्यवस्था का आलम रहा और आम आदमी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। नकदी पर जारी धंधों पर बुरा असर हुआ और इससे रोजगार भी मरे। नोटबंदी के बाद से 50 दिनों में 64 बार अधिसूचनाएं जारी हुईं। इसके अलावा कई बार नियम बदले, जिनसे परेशानियां बढ़ीं। सरकार ने जब इसे महसूस किया तो नोटबंदी के 30 दिन पूरे होने पर 11 राहतों की घोषणा की। मसलन, पेट्रोल-डीजल के 4.5 करोड़ उपभोक्तओं को डिजिटल मोड से खरीदारी पर 0.75 प्रतिशत डिस्काउंट, डिजिटल पेमेंट से रेलवे टिकट लेने पर 0.5 प्रतिशत डिस्काउंट और 10 लाख तक का दुर्घटना बीमा, रेलवे सुविधाओं पर 5 प्रतिशत डिस्काउंट, नई ऑनलाइन इंश्योरेंस पॉलिसी और प्रीमियम पर 10 प्रतिशत डिस्काउंट, 2000 तक के सिंगल डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनेदन पर सेवा कर से छूट और टोल प्लाजा पर डिजीटल पेमेंट करने पर 10 प्रतिशत की छूट आदि।
 
ये घोषणाएं यह बतातीं हैं कि नोटबंदी का एक प्रमुख उद्देश्य डिजीटल लेनदेन को बढ़ावा देना था। इसके साथ कालाधन को लेकर भी सरकार ने कुछ कदम उठाए। सरकार ने आयकर सुधार विधेयक पारित कराया। इसके तहत खुद बेहिसाबी आमदनी बताने पर 50 प्रतिशत कर और पकड़े जाने पर 85 प्रतिशत रकम जब्त करने का प्रावधान किया गया। 31 मार्च तक के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का ऐलान हुआ। इस दौरान 50 प्रतिशत कर और पेनल्टी के साथ अघोषित आय का खुलासा करने की छूट दी गई, जिसमें से 25 प्रतिशत हिस्सा चार साल तक जब्त रहने की बात थी। इसे देखें तो फिर यह भी कहना होगा कि इसका उद्देश्य कालाधन पर भी चोट करना था।
 
ऐसे कई कदमों का उल्लेख कर हम साबित कर सकते हैं कि नोटबंदी बहुउद्देश्यीय कदम था। जो लोग इसे केवल कालाधन पकड़ने का कदम बताकर महत्व कम करते हैं, वे सही नहीं हैं। 30 अगस्त 2017 को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वार्षिक रिपोर्ट 2016-17 जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 15.44 लाख करोड़ रुपए के प्रतिबंधित नोट में से 15.28 लाख करोड़ रुपए बैंकिंग प्रणाली में वापस लौटकर आ गए हैं। इसके आधार पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां यह प्रश्न उठाती हैं कि जब आपके पास 99 प्रतिशत राशि वापस ही आ गई तो फिर आपने कालाधन पकड़ा कहां। इसमें तो कालाधन भी सफेद हो गया। पहली नजर में यह आलोचना सही लगती भी है। आम आदमी को तो यही लगता था कि जिन लोगों ने 500 और 1000 रुपए में नकदी छिपा रखे हैं उनका नोट सड़ जाएगा। किंतु ये सारे तो बैंक में आ गए। यह बात जानी हुई है कि नकद में कालाधन रखने वालों की संख्या कम है। दूसरे, जो नोट जमा हो गया वह सफेद हो गया, यह सोच भी सही नहीं है।
 
वास्तव में नोटबंदी को वापस आए नोटों के आधार पर सफल या असफल करार देना गलत है। नोटबंदी की सफलता का एक मूल्यांकन लेनदेन को बेहतर बनाने और अवैधता और धोखाधड़ी का पता लगाने के आधार पर किया जाना चाहिए। नोटबंदी से न सिर्फ अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप मिला है, बल्कि सरकार के लिए गैरकानूनी और अवैध लेनदेन का पता लगाना संभव हुआ है। नोटबंदी को इसका भी श्रेय देना चाहिए कि इतनी बड़ी राशि प्रणाली में वापस आई। यह मौका भी मिला है कि गैरकानूनी रूप से जमा किए गए नकद की जांच भी की जा सके। नोटबंदी से कई ऐसे लेनदेन का भी पता लगा है, जिसमें कालाधन है। 6 अक्टूबर 2017 को केंद्र सरकार ने बताया कि उसे 13 बैंकों ने नोटबंदी के बाद विभिन्न बैंक खातों से गलत लेनदेन की महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। 
 
कंपनी मामलों के मंत्रालय ने जानकारी दी कि उसे उन 2 लाख 9 हजार 32 संदिग्ध कंपनियों में से 5800 कंपनियों के बैंक लेनदेन की जानकारी मिल गई है, जिनका निबंधन रद्द कर दिया गया है। बैंकों ने सरकार को इन कंपनियों के 13,140 खाते की जानकारी मुहैया कराई है। कुछ कंपनियों ने अपने नाम पर 100 से भी अधिक खाते खुलवा रखे थे। इनमें एक कंपनी के नाम पर 2134 खाते पकड़े गए तो एक के नाम पर 900 तथा एक के 300। नोटबंदी के बाद फर्जी लेनदेन करने वाली कंपनियों पर सरकार ने शिकंजा कसा। जीएसटी लागू होने से 48 घंटे पहले 1 लाख शेल कंपनियों पर ताला जड़ने की बात खुद मोदी ने कही थी। अब जानकारी है कि 2 लाख 24 हजार कंपनियों को बंद किया गया है। साथ ही इन कंपनियों के डायरेक्टरों पर भी फंदा कसा गया और उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। आगे भी जांच जारी है। अगर नोटबंदी नहीं होती तो इतनी संख्या में कंपनियों और उनके गोरखधंधे का पता न चलता।
 
यह सोचना ही गलत है कि नोटबंदी का उद्देश्य पैसा जब्त करना था। भारत मुख्य रूप से उच्च नकदी वाली अर्थव्यवस्था रही है, जिसमें काफी बदलाव की आवश्यकता है। नोटबंदी के बाद इसमें कुछ बदलाव आया है। डिजिटल लेनदेन बढ़ रहा है। नकदी का अनुपात अर्थव्यवस्था में कम हुआ है। बैंकिंग प्रणाली में नोटों का सर्कुलेशन 20.2 प्रतिशत घटा है। इस साल सर्कुलेशन में नोटों का मूल्य 13.1 लाख करोड़ है, जबकि पिछले साल (मार्च) में यह 16.4 लाख करोड़ था। यही नहीं प्रत्यक्ष कर आधार में विस्तार हुआ है और ठीक ऐसा ही अप्रत्यक्ष कर के साथ भी हुआ है। करीब 56 लाख नए करदाता जुड़े हैं। यह नोटबंदी का एक प्रमुख उद्देश्य था।
 
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि कर आधार बढ़ा है, डिजिटलीकरण बढ़ा है, प्रणाली में नकदी में कमी आई है, यह भी नोटबंदी के प्रमुख उद्देश्यों में था। अब बात आती है आतंकवाद पर चोट करने की। भले इसे विवादित बनाया जाए लेकिन सच यही है कि नोटबंदी ने आतंकवादियों और पत्थरबाजों को मिलने वाली नकदी के प्रभाव को कम किया है। छत्तीसगढ़ और कश्मीर में इसे साफ महसूस किया जा सकता है। नोटबंदी का राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़े असर की पड़ताल कर रही जांच एजेंसियों की जो जानकारियां मीडिया में आईं, उसके अनुसार सरकार के इस फैसले से आतंकवादियों की फंडिंग पर शिकंजा कसा है। नक्सली गतिविधियों पर भी चोट पहुंची है। जांच एजेंसियों ने पाया कि नोटबंदी के कारण नक्सली संगठनों द्वारा हथियारों की खरीद-फरोख्त पर असर पड़ा।
 
छत्तीसगढ़ के बस्तर के अलावा झारखंड में बड़े माओवादी नेता पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने के लिए लोगों की मदद मांगते नजर आए। हवाला एजेंट्स के कॉल ट्रैफिक में भी 50 प्रतिशत की कमी आई है। पाकिस्तान अपने क्वेटा स्थित सरकारी प्रेस और कराची के एक प्रेस में जाली भारतीय करेंसी छापता रहा है। नोटबंदी के बाद पाकिस्तान के पास जाली नोटों की दुकान बंद करने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा। भारत में चल रहे अधिकतर जाली नोट 500 और 1000 के ही थे। जमीनी स्तर पर आतंकवादियों का नेटवर्क कमजोर होने की वजह से घाटी में कामयाब आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन चलाए गए, जिसमें रिकॉर्ड संख्या में आतंकवादी मारे गए हैं। नकदी की कमी की वजह से स्थानीय असामाजिक तत्व पत्थरबाजी के लिए युवाओं को लुभा नहीं पा रहे। भू माफियाओं द्वारा कृत्रिम तरीके से महंगे किए गए रियल एस्टेट बाजार में भी कीमतों में सुधार हुए हैं।
 
हम मानते हैं कि नोटबंदी से बड़ी संख्या में छोटे कारोबार दुष्प्रभावित हुए और उन्हें रास्ते पर लाने के लिए और कदम उठाने की आवश्यकता है। इसी तरह बैंक भी मनमानी कर रहे हैं। ग्राहकों से कई प्रकार के शुल्क ले रहे हैं, जिनसे लोगों में नाराजगी है और इसे बंद होना चाहिए। किंतु यह वैसा ही है जैसे दीपावली में सफाई के दौरान घर का सारा सामान तितर-बितर दिखता है, लेकिन धीरे-धीरे वह फिर पहले के अनुसार व्यवस्थित हो जाता है।

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