यह वही भीड़ है, जो चुनाव के वक्त भाजपा प्रत्याशियों के लिए वोट जुटाने का काम करती है। चुनाव खत्म होते ही इनके कंधे पर अघोषित रूप से गोरक्षा के नाम पर व अन्य मसलों को लेकर उत्पात मचाने की बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है। ये खुद को भाजपा व उसके आनुषंगिक संगठनों से जुड़े हुए बताए जाते हैं। इनकी सर्वाधिक सक्रियता उन राज्यों में होती है, जिन राज्यों में भाजपा का शासन होता है।
मौजूदा दौर में इनके सबसे बड़े आका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। यदि बिलकुल ताजा घटनाक्रम की ही बात करें तो यह प्रतीत होगा कि भाजपा के बैनर तले नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पल्लवित-पुष्पित होने वाली यह हिंसक भीड़ लगता है अब अपने ‘आका’ की बात भी नहीं मानती। वरना 29 जून को जिस वक्त गुजरात के साबरमती में पीएम नरेन्द्र मोदी अपने हिंसक समर्थकों को उपदेश दे रहे थे, कमोबेश उसी वक्त गोरक्षा के नाम पर हिंसक भीड़ ने झारखंड के रामगढ़ में गोमांस ले जाने के शक में एक वैन ड्राइवर की पीट-पीटकर हत्या कर दी। इसे क्या कहा जाए? जिस भीड़ के बल पर नरेन्द्र मोदी गद्दीनशीं हुए हैं, क्या अब वह भीड़ उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है। यदि वह हिंसक भीड़ उनकी बात नहीं मानती तो फिर कौन है, जो उनका नेतृत्व कर रहा है और उन पर किसका अंकुश है? यह बड़ा सवाल सिर्फ जवाब ही नहीं ढूंढ रहा, बल्कि डरा रहा है। खासकर एक विशेष कौम को डरा रहा है जिसकी आबादी देश में तकरीबन 25 फीसदी है।
गौरतलब है कि गोरक्षा के नाम पर हत्या करने वालों को पीएम नरेन्द्र मोदी की कड़ी चेतावनी का भी कोई असर होता नहीं दिख रहा। झारखंड के रामगढ़ में 29 जून को कथित गोरक्षकों ने गोमांस ले जाने के शक में एक वैन ड्राइवर की पीट-पीटकर हत्या कर दी। आरोप है कि एक मारुति वैन से मांस लेकर कुछ लोग चितरपुर से नई सराय जा रहे थे। इस बीच रामगढ़ बाजार टांड के पास बजरंग दल और गोरक्षा समिति के लोगों ने इस गाड़ी को रोककर मांस को सड़क पर फेंक दिया। कथित गोरक्षकों ने गाड़ी को आग के हवाले कर दिया और ड्राइवर मोहम्मद असगर को बुरी तरह से पीटा जिसने रांची के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया।
बताते हैं कि झारखंड के रामगढ़ शहर के बीचोबीच गुरुवार को सड़क पर लोगों का एक हुजूम दौड़ते और चिल्लाते हुए आया और उन्होंने एक वैन को आग के हवाले कर दिया। वैन में आग और आक्रोशित लोगों को देख शहर में अफरा-तफरी और भगदड़ का माहौल पैदा हो गया। लोगों को कुछ पल के लिए कुछ समझ ही नहीं आया कि ये शहर में क्या हो रहा है? वहीं घटनास्थल पर दमकल की गाड़ी ने पहुंचकर जलती हुई मारुति वैन को बुझाने की कोशिश की, हालांकि तब तक वैन पूरी तरह जलकर खाक हो चुकी थी। रामगढ़ के एसपी कौशल किशोर के अनुसार यहां पर दो गुटों के बीच संघर्ष की स्थिति बन गई थी, उसको लेकर पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई की गई।
उधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 29 जून को ही कहा कि गोरक्षा के नाम पर लोगों की हत्या स्वीकार नहीं है। उनकी टिप्पणी कथित गोरक्षकों द्वारा किए गए हालिया हमलों और विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में आई है। महात्मा गांधी के गुरु श्रीमद राजचन्द्रजी की 150वीं जयंती के मौके पर मोदी ने साबरमती आश्रम में संबोधन के दौरान यह बात कही।
मोदी ने कहा कि दूसरों के खिलाफ हिंसा करना राष्ट्रपिता के आदर्शों के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि गौभक्ति के नाम पर लोगों की हत्या स्वीकार नहीं है। इसे महात्मा गांधी कभी स्वीकार नहीं करते। प्रधानमंत्री ने कहा कि चलिए, हम सभी मिलकर काम करें। महात्मा गांधी के सपनों का भारत बनाते हैं। एक ऐसा भारत बनाते हैं जिस पर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को गर्व हो। देश में किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। मोदी ने कहा कि हिंसा से कभी किसी समस्या का समाधान नहीं हुआ और न होगा। एक समाज के तौर पर हमारे यहां हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है।
पीएम द्वारा कथित गोरक्षकों को फटकारने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि पीएम का बयान मामले की गंभीरता के हिसाब से बहुत छोटा और देर से आया है। राहुल ने ट्वीट कर कहा कि यहां सिर्फ शब्दों का कोई मतलब नहीं है, जब आपकी बातों पर अमल नहीं किया जाता। राहुल के मुताबिक अब गोरक्षा के नाम पर ऐसी हत्याएं करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि अवाम में कड़ा संदेश जाए और लोग कानून को हाथ में लेने से पहले सोचें।
इससे पहले बीते वर्ष 6 अगस्त 2016 को भी पीएम नरेन्द्र मोदी ने गोरक्षकों को चेतावनी देते हुए कहा था कि कुछ लोग गोरक्षा के नाम पर दुकान खोलकर बैठे हैं। इस पर मुझे बहुत गुस्सा आता है। उन्होंने ऐसे लोगों के खिलाफ राज्य सरकारों से कार्रवाई करने को कहा था। पीएम ने कहा था कि कुछ लोग पूरी रात गलत काम करते हैं और दिन में गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं।
इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहेंगे कि पीएम के इस संदेश के बावजूद गोमांस की अफवाह के नाम पर हिंसक भीड़ द्वारा लगातार लोगों की हत्याएं की जा रही हैं। भीड़ द्वारा लोगों की पीट-पीटकर हत्या किए जाने के विरोध में 28 जून को देश के कई स्थानों पर ‘नॉट इन माई नेम’ नाम से प्रदर्शन हुए थे जिनमें हजारों लोग शामिल हुए। खासकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन हुआ जिसमें भीड़ द्वारा जगह-जगह की जा रहीं हत्याओं के खिलाफ आवाज उठी।
फिल्म निर्माता सबा दीवान के नेतृत्व में इस कैंपेन का आगाज किया गया। कैंपेन का मकसद जाति, धर्म और गाय के नाम पर की जा रहीं हत्याओं का विरोध करना था। सबा दीवान ने कहा कि समाज में धर्म और जाति के नाम पर जो हिंसा हो रही है, उसका विरोध करने के लिए यह प्रदर्शन किया जा रहा है।
'नॉट इन माई नेम' दिखाकर लोग यह कहना चाहते हैं कि वे इन हत्याओं के खिलाफ हैं और इनकी निंदा करते हैं। 'नॉट इन माई नेम' नारा पूरे देश के लोगों को भी साथ लाने जा रहा है। 2015 में प्रमुखता से उभरा यह नारा लंदन स्थित एक्टिव चेंज फाउंडेशन ने लोकप्रिय बनाया था। आतंकी गुट आइसिस के खिलाफ तब ब्रिटिश मुसलमान सड़कों पर उतरे थे।
आपको बता दें कि गोरक्षा के नाम पर हिंसक भीड़ द्वारा एक विशेष समुदाय के लोगों की हत्या किए जाने के खिलाफ देश के चर्चित राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला के नेतृत्व में नेशनल कैंपेन अगेंस्ट मोब-लिंचिंग (एनसीएएमएल) तेजी से राष्ट्रीय स्तर पर अपना पैर पसार रहा है। एनसीएएमएल के साथ मुख्य रूप से जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, सोशल एक्टिविस्ट शेहला रसीद, गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी समेत हजारों की संख्या में देशभर के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद् जुड़ रहे हैं।
एनसीएएमएल के तहसीन पूनावाला ने बताया कि जिस तरह देश में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) काम कर रहा है उसी तरह मानव सुरक्षा कानून (मासुका) भी बनना चाहिए। वहीं दूसरी ओर, जानकार मानते हैं कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने 29 जून को गुजरात में गोरक्षा और इस नाम पर हुई हिंसा पर जोरदार हमला कर न सिर्फ डैमेज कंट्रोल करने की पहल की है बल्कि फिर साबित किया कि वे मुद्दों पर अपनी चुप्पी को तोड़ने के लिए अपने हिसाब से टाइमिंग चुनते हैं।
ऐसे समय जब गोरक्षा के नाम पर एक के बाद एक हत्याएं हुईं और इस मुद्दे पर पूरे विश्व में मोदी सरकार पर सवाल उठे। उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी राय रखकर सरकार का रुख भी सामने लाया। उनका बयान ठीक एक दिन बाद तब आया, जब पूरे देश में गोरक्षा के नाम पर भीड़ की गुंडागर्दी पर सिविल सोसाइटी की ओर से प्रतिरोध मार्च निकाली गई थी।
इस मुद्दे पर तेज पकड़ते आंदोलन के बीच पीएम मोदी ने अपने एक मजबूत संदेश से सुनिश्चित किया कि इन आंदोलन और विरोध के बीच उनका इन मुद्दे पर स्टैंड भी सुना जाएगा। हालांकि पहली बार नहीं है, जब उन्होंने गोरक्षकों पर सीधा हमला किया। पिछले साल भी गुजरात के ऊना में दलितों पर गोरक्षा के नाम पर हमला हुआ तब पीएम ने सख्त अंदाज में हमला किया था। बहरहाल, देखना है आगे क्या होता है?