फेसबुक, गूगल वगैरह भारत में इंटरनेट का विस्तार करने पर ध्यान दे रहे हैं, मगर भाषाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। ये गांव-गांव जाकर अंग्रेजी सिखाएंगे। हम इसके खिलाफ नहीं हैं, मगर हिंदी और बाकी भारतीय भाषाएं अगर तकनीकी क्रांति की बलिवेदी पर कुर्बान हो जाती हैं तो इनके साथ साहित्य, ज्ञान, दृष्टि और वैचारिकता के बड़े कोष भी लुप्त होते चले जाएंगे। भारतीय सरकार भी ‘डिजिटल इंडिया’ की मुहिम में भाषाओं को दरकिनार करती नज़र जा रही है। अगर हिंदी और बाकी भारतीय भाषाओं को डिजिटल मीडिया के समय में आगे निकलना है तो इस स्थति को बदलना होगा।