भारत की देशभक्त जनता ने चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान चला रखा है। यह उचित ही है। इस अभियान का भरपूर समर्थन किया जाना चाहिए। भारत के सामने लगातार चीन बाधाएं खड़ी कर रहा है। हालांकि प्रत्येक भारतीय के लिए सबसे असहनीय बात यह है कि चीन लगातार पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है।
आतंकवाद पर भी चीन का व्यवहार ठीक नहीं है। उड़ी हमले के बाद जिस तरह से चीन ने पाकिस्तान का बचाव करने का प्रयास किया है, उससे भारत की देशभक्त जनता में चीन के प्रति काफी आक्रोश है। चीन को सबक सिखाने के लिए भारतीय नागरिकों ने सोशल मीडिया पर चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम चलाई है। यह मुहिम अपना रंग दिखा रही है। तकरीबन एक ही महीने में भारत में चीनी सामान की बिक्री इतनी कम हो गई है कि उससे चीन बुरी तरह बौखला गया है।
बौखलाहट में चीनी मीडिया ने भारत और उसके नागरिकों के खिलाफ बहुत हल्की भाषा में कटाक्ष किया है। चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम के संबंध में लिखते हुए चीनी मीडिया ने लिखा है कि भारत भौंक तो सकता है, लेकिन कुछ कर नहीं सकता। चीन के सामान और तकनीक के सामने भारत का सामान और तकनीक टिक नहीं सकता है। लेकिन चीन को इस बात का आभास नहीं है भारत के नागरिक यदि तय कर लेते हैं तो सब बातें एक तरफ और भारतीयों का निर्णय एक तरफ। चीन को यह भी नहीं पता होगा कि भारत में उसके सामान के प्रति आम नागरिकों की भावना किस प्रकार की है। चीनी माल को दोयम दर्जे का समझा जाता है। उसकी गुणवत्ता को संदेह से देखा जाता है। चीनी सामान भारत में इसलिए बिकता है, क्योंकि वह सस्ता है। उसकी बिक्री गुणवत्ता के कारण नहीं है।
भारत में कुछ ऐसे भी लोग मौजूद हैं, जो चीनी सामान के बहिष्कार के राष्ट्रीय अभियान का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे भारत के उन छोटे व्यापारियों का भारी नुकसान होगा, जिन्होंने त्यौहार के समय में काफी पैसा निवेश कर बिक्री के लिए चीनी सामान अपनी दुकानों में भर लिया है। छोटे व्यापारियों की दीपावली बिगड़ जाएगी। दरअसल, ऐसा सोचने वाले बहुत ही संकीर्ण मानसिकता के लोग हैं। यदि इस सोच का बस चलता तब स्वतंत्रता आंदोलन के तहत अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए कभी भी विदेशी सामान की होली नहीं जलाई जा सकती थी। भारत के हित में विचार करने वाले सदैव विदेशी सामान के बहिष्कार और स्वदेशी सामान के उपयोग पर जोर देते रहे हैं।
विदेशी सामान के बहिष्कार का आग्रह देश की आजादी के पहले से रहा है। दूसरी बड़ी बात यह है कि चीनी सामान के बहिष्कार से भले ही अभी छोटे व्यापारियों को घाटा हो जाए, लेकिन अंत में इस मुहिम की सफलता उनके ही हित में है। छोटे व्यापारियों, कामगारों और कुटीर उद्योगों को सबसे अधिक नुकसान चीनी सामान ने ही पहुंचाया है। इसलिए जो चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम का विरोध कर रहे हैं, असल में वह लोग भारत के कामगारों और कुटीर उद्योगों पर चोट कर रहे हैं।
भारतीय बाजार जब से चीनी सामान से पट गए, तब से भारत में कुम्हार के चाक की गति मंद ही नहीं हुई, बल्कि बहुत हद तक उनका चाक बंद हो गया है। लकड़ी, मिट्टी और चीनी के खिलौने बनाने वाले लोगों का धंधा बंद हो गया। चीनी पटाखों ने कई भारतीय पटाखा कारखानों के शटर गिरा दिए। दीपावली पर सस्ती चीनी लाइट आने से भारतीय इलेक्ट्रीशियनों का काम ठप हो गया। रक्षाबंधन पर भारतीय राखी कारोबार पर गहरी चोट पहुंची है।
हालात यहां तक हैं कि पूजन सामग्री तक चीन से बनकर आ रही है। इसलिए चीनी सामान का बहिष्कार उचित है। भारत विरोधी मानसिकता वाले लोगों की भावनात्मक अपीलों में न फंसकर हमें यथासंभव चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहिए, ताकि हमारे कामगारों, बुनकरों, शिल्पकारों और कुटीर उद्योगों को नई ताकत मिल सके। स्वाभाविक तौर पर चीनी सामान का बहिष्कार करने वाले लोग आज बाजार में भारतीय सामान की मांग कर रहे हैं यानी जब भारतीय सामान की मांग बढ़ेगी, तब हमारे कुटीर उद्योग मजबूत होंगे।
इसलिए चीनी सामान के बहिष्कार के अभियान के दो बड़े फायदे हैं। एक, चीन को सबक मिलेगा। दो, भारत के कुटीर उद्योग को ताकत मिलेगी। छोटे कारोबार से जुड़े लोगों की स्थिति सुदृढ़ होगी। भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। भारत में रोजगार बढ़ेगा। इसलिए आइए, 'चीनी सामान का बहिष्कार' अभियान' का हिस्सा बनते हैं। (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)