Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

अनुकूल परिवर्तन के आसार भारत पाक रिश्तों में

हमें फॉलो करें अनुकूल परिवर्तन के आसार भारत पाक रिश्तों में

शरद सिंगी

पाकिस्तान के वज़ीरे आजम नवाज़ शरीफ को जब भारत सरकार ने शपथ विधि समारोह के लिए आमंत्रित किया तो पाकिस्तान सरकार और मियां नवाज़ शरीफ को इस आमंत्रण को स्वीकार करने में तीन दिन लग गए। छोटे से निर्णय के लिए इतनी लम्बी अवधि लेना कुछ लोगों के लिए रहस्य हो सकता है किन्तु जो लोग पाकिस्तान की विदेश नीति के बारे में थोड़ा भी जानते हैं उनके लिए यह कुछ नया नहीं था।
FC

नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने की आशंकाओं कुशंकाओं के बीच पाकिस्तानी विशेषज्ञ पाकिस्तान सरकार को 'रुको और देखो' की नीति की सलाह दे रहे थे। मोदी के भूत से निपटने के लिए अभी तो विचार विमर्श शुरू भी नहीं हुआ था कि मोदी का भूत बिना समय दिए निमंत्रण के रूप में प्रत्यक्ष पाकिस्तान सरकार की चौखट पर अवतरित हो गया।

यह ऐसी स्थिति थी जिसके लिए पाकिस्तान सरकार या नवाज़ शरीफ कोई तैयार नहीं था। जिन्हें लक्ष्य पर पीछे से वार करने का तज़ुर्बा है उन्होंने लक्ष्य को प्रत्यक्ष सामने खड़ा पाया और इसे देख पाकिस्तान सरकार तीन दिन के लिए असमंजस के कोमा (अनिर्णय की अचेत अवस्था) में चली गई। मोदी के इस अनपेक्षित कूटनीतिक पैतरे ने न केवल पाकिस्तान बल्कि देश और विदेश में सभी को अचंभित किया।

सच कहें तो पाकिस्तान की विदेश नीति भारत से आरम्भ होकर भारत पर ही समाप्त होती है। भारत उसकी विदेश नीति का केंद्र है जिसके इर्द गिर्द वह अपनी कूटनीति का जाल बुनता है। पाकिस्तान की विदेश नीति को (भारत के प्रति) विद्वेष नीति कहें तो शायद बेहतर है। यही विद्वेष नीति 20 वीं सदी के अंत में कट्टर पंथी तालेबान की गुलाम बन चुकी थी कि तभी इस आत्मघाती नीति पर सहसा वज्रपात हो गया।

आपको स्मरण होगा कि सितम्बर 11, 2001 के अमेरिका में आतंकी हमले के पश्चात अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने पाकिस्तान के तत्कालीन जनरल और राष्ट्रपति मुशर्रफ को उनकी विदेश नीति पर यू टर्न (पीछे मुड़ ) करने पर मज़बूर किया था। तब से लेकर आज तक पाकिस्तान की विदेश नीति असमंजस के दौर से गुजर रही है या कहिए भ्रमित हो चुकी है। एक कदम आगे तो दो कदम पीछे। एक कदम दाएं तो दो कदम बाएं।

पाकिस्तान की आधिकारिक विदेश नीति की बात करें तो उसमे मित्रता और सद्भावना की बात वर्णित है। पड़ोसी मुल्कों से सहयोग और रिश्तों में सुधार की बात कही गयी है। अंतरराष्ट्रीय व्यवहार में ईमानदार होने का उल्लेख किया गया है किन्तु यथार्थ कुछ और ही है।

आतंक के अंतरराष्ट्रीय सरगना आज पाकिस्तान की ज़मीं को आबाद किए हुए हैं। पाकिस्तान के दोनों पड़ोसी देश भारत और अफगानिस्तान, पाकिस्तान पर आतंकवादियों को शरण देने के आरोप लगाते रहे हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति करज़ाई ज्यादा मुखर है इन आरोपों को लेकर क्योंकि इन आतंकियों की वजह से 15 वर्षों के बाद भी अफगानिस्तान, आतंरिक शांति स्थापित करने में विफल रहा है।

कहा जाता है कि विदेश नीति घरेलू नीतियों का आइना होती हैं। पाकिस्तान ऐसे मुल्कों में से है जहाँ बाहरी खतरों से अधिक चुनौतियाँ अंदरुनी खतरों से है। इसलिए कई विशेषज्ञ पाकिस्तान को एक विफल राष्ट्र कहने में भी नहीं हिचकते। यद्यपि यह विफल राष्ट्रों की श्रेणी में नहीं आता किन्तु भारत सहित कई पश्चिमी राष्ट्र उसे आतंकवाद के केंद्र के रूप में देखते हैं तथा इन राष्ट्रों का पाकिस्तान सरकार से भरोसा भी उठ चुका है।

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नेताओं द्वारा धार्मिक भावनाओं का दोहन, अल्पकालिक राजनैतिक लाभों के लिए किया गया, जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक उन्माद और धार्मिक उग्रवाद का जन्म हुआ। आज़ादी के बाद आज तक पाकिस्तान अपनी दिशा तय नहीं कर पाया। एक गरिमापूर्ण और कार्यक्षम संविधान बनाने और लागू करने में लगभग 25 वर्ष लगे। आप को आश्चर्य होगा कि वर्तमान संविधान सन् 1973 में लागू हुआ था।

अतः यदि नवाज़ शरीफ मोदीजी के निमंत्रण को कबूल नहीं करते तो आधिकारिक विदेश नीति से पलायन होता और यदि हाँ करते तो सर्वमान्य विद्वेष नीति की अवमानना होती। जाहिर है नवाज़ शरीफ को निर्णय लेने में इतना वक्त लगना ही था । पाकिस्तान सरकार को स्वयं पता नहीं है कि इस समय उसकी विदेश नीति का पता-ठिकाना कौनसा है।

भारत के लिए भी यह एक दुविधाजनक स्थिति है क्योंकि वह पाकिस्तान की निरन्तर रंग बदलती विदेश नीति का पूर्वानुमान नहीं कर सकता। भारत को पाकिस्तान से कूटनीतिक खेल खेलने के लिए शतरंज के घोड़े जैसी ढाई घर की चाल चलनी होगी। क्या मोदीजी घोड़े की चाल से शह दे पाएंगे क्योंकि शुरुवात तो उन्होंने घोड़े की चाल से ही की है।

ध्यान रहे शतरंज में पहली चाल या तो प्यादे की होती है या फिर घोड़े की और मोदीजी ने घोड़े से खेलना उचित समझा। नवाज़ शरीफ भी मोदीजी की तरह एक पूर्ण बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री हैं किन्तु सरकार पर सेना और कट्टरपंथियों के अनैतिक बंधन हैं। यदि वे मोदीजी से सीख लेकर इन बंधनों को तोड़ने में कामयाब होते हैं तो पाकिस्तान सहित दक्षिण एशिया के सारे देश एक बार फिर विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।

संतोष की बात यह रही कि अंततः नवाज़ शरीफ ने भारत आने का निर्णय किया। भारत में अपने प्रवास के दौरान हुई वार्ताओं और व्यवहार से संतुष्ट भी दिखाई दिए। इस सब घटनाक्रम में भारत-पाक रिश्तों की दृष्टि से भविष्य में एक प्रकाश की किरण नज़र आती है। जाते-जाते वे मोदीजी को पाकिस्तान यात्रा का निमंत्रण भी देते गए जिसे मोदीजी ने स्वीकार कर लिया है। इस यात्रा का होना भारतीय उपमहाद्वीप की महत्वपूर्ण सकारात्मक घटना होगी।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi