कमजोर मानी जा रही टीम इंडिया ने वेस्टइंडीज जैसी मजबूत टीम को हराकर जीता 1983 का वनडे विश्वकप

Webdunia
मंगलवार, 19 सितम्बर 2023 (18:12 IST)
कपिल ने भारतीय टीम की कमान 1982 में उस समय में संभाली थी, जब क्रिकेट खेलने वाले वेस्‍टइंडिज, इंग्‍लैड जैसे देशों के सामने भारतीय टीम की बिसात बांग्‍लादेश और केन्‍या जैसी टीमों की तरह थी। क्रिकेट प्रेमी तो दूर, कोई भारतीय खिलाड़ी भी उस समय विश्व कप जीतने के बारे में सोच नहीं रहा था। तब कौन जानता था कि कपिल के जांबाज खिलाड़ी इतिहास रचने जा रहे हैं।
 
इस टीम में श्रीकांत के अलावा मोहिंदर अमरनाथ, यशपाल शर्मा, रोजर बिन्नी, संदीप पाटिल, सुनील गावस्कर, बिशन सिंह बेदी, मदनलाल जैसे खिलाड़ी थे।लीग मैचों की शुरुआत में  वेस्टइंडीज से हुए पहले ही मैच में भारतीय टीम ने विश्वक्रिकेट को चौंका दिया जब गत विजेता को भारत ने 34 रनों से हरा दिया। दूसरे मैच में कमजोर जिमबाब्वे द्वारा सामने रखा गया 155 रनों का लक्ष्य भारत ने 5 विकेट खोकर बना लिया। हालांकि इसके बाद ऑस्ट्रेलिया से 162 रनों से करारी हार का सामना करना पड़ा। वेस्टइंडीज ने दूसरे लीग मुकाबले में गलती नहीं की और भारत को 66 रनों से हरा दिया। 
 
जिम्मबाब्वे से हुआ दूसरा लीग मैच कपिल देव के 175 रनों के लिए अभी तक जाना जाता है। 9 रनों पर 4 विकेट खो चुकी भारत की टीम को कपिल का संबल मिला। उन्होंने 175 रनों की मैराथन पारी खेली। इस पारी की बदौलत भारत 31रन से जीत गया। आत्मविश्वास से लबरेज भारतीय टीम ने फिर ऑस्ट्रेलिया को भी 116 रनों से पटखनी दे दी।  
 
सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला मेजबान इंग्लैंड से हुआ। पहले बल्लेबाजी करते हुए इंग्लैंड ने निर्धारित 60 ओवरों में 213 रन बनाए। इसका पीछा भारत ने 4 विकेट खोकर पचपनवें ओवर में कर लिया। फाइनल में भिडंत गत विजेता वेस्टइंडीज से होनी थी। 
 
फाइनल में वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लॉयड ने टॉस जीतकर पहले भारत को बल्लेबाजी के लिए कहा। भारतीय टीम 54.4 ओवरों में केवल 183 रन जोड़कर आउट हो गई।वेस्टइंडीज की पूरी टीम 52 ओवरों में 140 रन पर आउट हो गई और भारत ने यह मैच 43 रनों के अंतर से जीत लिया। मोहिन्दर अमरनाथ को उनके हरफनमौला प्रदर्शन (26 रन और 3 विकेट) के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया।

25 जून 1983- फाइनल की पूरी कहानी

25 जून 1983 का वह ऐतिहासिक दिन हर भारतीय को रोमांचित कर देता है, जब भारत विश्व विजेता बना। कपिल देव के नौसिखिए समझे जाने वाले खिलाड़ियों ने क्लाइव लायड की मजबूत टीम को धराशायी कर के विश्व क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ी थी।

इस ऐतिहासिक मैच की गवाह पूरी दुनिया थी, लेकिन फिर भी उस जमाने में मैच प्रसारण की पर्याप्त सुविधा नहीं थी, इसलिए अधिकतर लोगों ने इस फाइनल मैच को कॉमेंट्री के जरिये जिया।

वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लायड ने सिक्के की उछाल में बाजी मारी और अपने तेज गेंदबाजों को मौका देते हुए पहले भारत को बल्लेबाजी के लिए आमंत्रित किया। (बाद में इसे लायड की ऐतिहासिक भूल माना गया।) 
 
एंडी रार्बट्‍स और डेविड गार्नर ने नई गेंद से श्रीकांत और सुनील गावस्कर की जोड़ी को शुरुआती परेशानी में डाला। रार्बट्‍स ने अपने तीसरे ओवर में ही गावस्कर को ऑफ स्टम्प के बाहर चकमा देते हुए विकेट कीपर ड्‍यूज़ोन के दस्तानों में लपकवा दिया। गावस्कर ने 12 गेंदों का सामना करते हुए केवल 2 रन बनाए। 
 
भारत अपना पहला विकेट जल्दी खो चुका था, लेकिन श्रीकांत और मोहिंदर अमरनाथ ने दूसरे विकेट के लिए 57 रनों की भागीदारी करके कुछ दबाव कम किया लेकिन इसी स्कोर पर श्रीकांत को मैल्कम मार्शल ने पगबाधा आउट कर दिया। श्रीकांत ने 57 गेंदों का सामना करते हुए सात चौके और एक छक्के की मदद से 38 रन बनाए।
 
अमरनाथ (26) और यशपाल शर्मा (11) ने तीसरे विकेट के लिए 31 रन जोड़े, लेकिन इस साझेदारी के टूटते ही भारत मुश्किल में फँस गया। 91 पर तीन, 92 पर चार और 111 रनों पर 6 विकेट गिर जाने से टीम बैकफुट पर आ गई। संदीप पाटिल (27), कपिल देव (15), कीर्ति आजाद (0), रोजर बिन्नी (2) के सस्ते में पैवेलियन लौट जाने के बाद सैयद किरमानी (14), मदनलाल (17) और बलविंदर संधू (11) ने किला लड़ाया, लेकिन निर्धारित ओवरों से पहले ही भारतीय टीम 183 रनों पर आउट हो गई। रार्बट्‍स (3 विकेट), मार्शल, होल्डिंग्स और गोम्स (2-2 विकेट) और गार्नर (1विकेट) ने भारतीय बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी थी।

मैच का परिणाम बिलकुल साफ नजर आ रहा था। गार्डन ग्रिनीज, डेसमंड हैंस, विवयन रिचडर्स, क्लाइव लायड, गोम्स जैसे बल्लेबाजों की मौजूदगी में 60 ओवरों में 184 रनों का लक्ष्य बहुत बौना नजर आ रहा था और यह माना जा रहा था कि वेस्टइंडीज लगातार तीसरी बार विश्वकप जीतकर एक ऐसा रिकॉर्ड कायम करने जा रही है, जिसे पा लेना हर टीम का सपना होगा। लेकिन कौन जानता था कि कपिल के लड़ाके लार्ड्‍स के इस मैदान में इतिहास रचने जा रहे हैं।
 
वेस्टइंडीज की पारी शुरू हुई। ग्रिनीज और हैंस ने मैदान संभाला और नई गेंद थी बलविंदर संधू और कप्तान कपिल देव के हाथों में। संधू ने ग्रिनीज के साथ वही किया जो भारतीय पारी के दौरान रार्बट्‍स ने गावस्कर के साथ किया। संधू ने ग्रिनीज (12 गेंदों में 1 रन) के डंडे बिखेरकर वेस्टइंडीज के शीश महल में पहला सुराख कर दिया।
 
इस झटके के बाद रिचर्ड्‍स और हैंस ने 45 रनों की साझेदार करके मैच में अपनी टीम का पलड़ा भारी कर दिया। वेस्टइंडीज को 134 रनों की जरूरत थी, जबकि उसके नौ खिलाड़ी आउट होना शेष थे। यहाँ से मदनलाल ने एक के बाद एक ओवरों में हैंस (13) और रिचर्ड्‍स (28 गेंदों में 33 रन) को आउट कर के मैच रोमांचक मोड़ पर ला दिया। रिचर्ड्स को आउट करने में मदनलाल की उम्दा गेंदबाजी के अलावा कपिलदेव की पैनी नजर और चुस्त क्षेत्ररक्षण का भी कमाल था। बस यही विकेट इस ऐतिहासिक जीत का टर्निग पॉइंट बना।
 
दूसरे छोर से बिन्नी ने लायड (8) को कपिल के हाथों झिलवाकर मैच में पहली बार अहसास करवाया कि भारत विश्व विजेता बन सकता है।
 
संधू और कपिल देव ने दूसरे स्पैल में आते ही बैक्स और रार्बट्‍स को चलता कर कर दिया। अब वेस्टइंडीज के छह विकेट 76 रनों पर गिर चुके थे। भारत के विश्व चैंपियन बनने में केवल एक ही रोड़ा था, ड्‍यूज़ोन।

केवल एक अच्छी साझेदारी इस मैच का रुख पलट सकती थी मगर अमरनाथ ने इस रोड़े को भी रास्ते से हटा दिया। ड्‍यूज़ोन (25) का विकेट गिरते ही स्कोर 119/7 हो गया।
 
भारतीय खिलाड़ी हावी थे और अब मैच में मात्र औपचारिकता ही बाकी थी। 52वें ओवर की दूसरी गेंद पर जैसे ही अमरनाथ ने होल्डिंग (6) को पगबाधा आउट किया, वेस्टइंडीज की टीम 140 रनों पर आउट हो गई। भारत तीसरे विश्व कप का विजेता बन चुका था।

कपिल के 'जवानों' ने इस जीत से भारत सहित पूरे एशिया को जश्न मनाने का मौका दिया था। कपिलदेव निखंज के नेतृत्व में भारत विश्वकप जीतने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया।
 
मोहिंदर अमरनाथ को उनके हरफनमौला प्रदर्शन (26 रन और 3 विकेट) के लिए मैन ऑफ द मैच घोषित किया गया। दूसरी तरफ लायड इस बात पर बहुत देर से यकीन कर पाए कि वे विश्वकप फाइनल हार गए हैं।
 
जंग जीतने के लिए लाव-लश्कर की नहीं बुलंद इरादों की जरूरत होती है। कपिल की टीम के ये इरादे ही थे कि क्रिकेट जगत के बेताज बादशाह वेस्टइंडीज को उन्होंने केवल अपने आसमानी हौसले से धूल चटाई, वरना लायड की टीम को हराना आसान न था।
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