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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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समलैंगिक विवाह क्या है, क्यों सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी अनुमति?

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वृजेन्द्रसिंह झाला

Same sex Marriage in india: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इंकार कर दिया है। मुख्‍य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्‍यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस तरह की अनुमति सिर्फ कानून के जरिए ही दी जा सकती है। कोर्ट विधायी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हालांकि कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह इस मुद्दे पर कमेटी बनाकर एक कानून लागू करने के बारे में विचार करे।

जस्टिस किशन कौल ने कहा कि संविधान के तहत गैर-विपरीत लिंग वाले विवाहों को भी सुरक्षा का अधिकार है। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता वैवाहिक समानता की तरफ एक बड़ा कदम होगा। इस तरह के विवाह के समर्थक और विरोधियों के अपनी-अपनी दलीलें हैं।

क्या है सरकार का तर्क : सरकार का कहना है कि विवाह की परिभाषा में सिर्फ पुरुष और महिला ही आते हैं, लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा है कि विवाह को फिर से परिभाषित किया जा सकता है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई आदि धर्मों से जुड़े संगठनों ने भी समलैंगिक विवाह का विरोध किया है। हालांकि दो वयस्क लोगों के बीच समलैंगिक संबंध भारत में अब अपराध नहीं हैं। 
 
कौन हैं एलजीबीटीक्यूआईए : एलजीबीटीक्यूआईए का मतलब लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल से है। दरअसल, पुरुष का पुरुष के प्रति आकर्षण होमोसेक्सुअल कहलाता है, जबकि दो महिलाओं के लैंगिक संबंध  लेस्बियन कहलाते हैं। ऐसे लोग जो विपरीत और समान दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं, इस तरह के लोगों को बाय-सेक्सुअल कहा जाता है। 
सामाजिक विरोध के बीच मनोचिकित्सकों का मानना है कि एलजीबीटीक्यूए समुदाय के साथ देश के अन्य नागरिकों की तरह ही व्यवहार करना चाहिए। इंडियन साइकेट्रिक सोसाइटी ने हाल ही में कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह संकेत करता हो कि एलजीबीटीक्यूए लोग शादी, दत्तक ग्रहण, शिक्षा, रोजगार, संपत्ति अधिकार एवं स्वास्थ्य देखभाल में हिस्सा नहीं ले सकते हैं। 
 
जन्मजात होते हैं लक्षण : नागपुर की प्रसिद्ध मनोरोग विशेषज्ञ और समलैंगिकों के अधिकारों की समर्थक डॉ. सुरभि मित्रा कहती हैं कि समलैंगिक, ट्रांसजेंडर, बायसेक्सुअल होना यह किसी की चॉइस नहीं होता बल्कि व्यक्ति इन्हीं लक्षणों के साथ पैदा होता है। अगर यह सब नेचुरल और नॉर्मल नहीं होता तो हम पैदा ही क्यों होते। भगवान और नेचर क्या बार-बार एक ही गलती करता है।
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मित्रा कहती हैं कि एलजीबीटी समुदाय को बार-बार एब्नॉर्मल कहना गलत है। यह एक सच्चाई है, यह नेचुरल है। समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है। 1977 में इसे मानसिक बीमारी से हटा दिया गया है। यदि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलती है तो इससे पूरे समाज को फायदा होगा। यदि इसे बदलने की कोशिश की गई तो इससे बीमारियां पैदा हो सकती हैं। अत: इन्हें जैसे हैं उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।   
 
समाज को गलत संदेश जाएगा : दूसरी ओर, वैदिक विद्वान आचार्य डॉ. संजय देव कहते हैं कि समलैंगिक विवाह की अनुमति मिलती है तो समाज में इसका गलत संदेश जाएगा। जो चीजें अभी पर्दे के पीछे होती हैं, वे खुले तौर पर होने लगेंगी। किसी भी वेद या शास्त्र में इस तरह के संबंधों का उल्लेख नहीं है। विवाह का उद्देश्य वंशवृद्धि होता है। यदि इस तरह रिश्ते बढ़ेंगे तो विवाह का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। डॉ. देव कहते हैं किसी भी गलत चीज का समर्थन सिर्फ इसलिए किया जाए कि वह हमेशा से चली आ रही है, अनुचित है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पशु भी इस तरह का आचरण नहीं करते। 
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करीब 400 अभिभावकों के समूह ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर अपने एलजीबीटीक्यूआईए+ बच्चों के लिए ‘विवाह में समानता’ का अधिकार मांगा है। वहीं विश्व हिन्दू परिषद का कहना है कि यह नए विवादों को जन्म देगा और भारत की संस्कृति के लिए घातक सिद्ध होगा। 
 
भारत में समलैंगिकता अब अपराध नहीं : सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद भारत में समलैंगिकता अब अपराध नहीं है। 2018 के नवतेज सिंह जौहर मामले में कोर्ट ने कहा था कि यदि दो वयस्क एकांत में आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं तो यह अपराध नहीं माना जाएगा। हालांकि बच्चों या पशुओं से ऐसे संबंध अपराध की श्रेणी में बने रहेंगे। उल्लेखनीय है कि 1861 में शामिल आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे। इसके लिए 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान था।
 
नहीं मिलना चाहिए प्रोत्साहन : मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. रामगुलाम राजदान कहते हैं कि नैतिकता के दृष्टिकोण से बात करें तो समलैंगिक विवाह भारतीय संदर्भ में सही नहीं है। लेकिन, समलैंगिकों के भी अपने अधिकार हैं, उन्हें भी खुश रहने का हक है। यदि कानूनी रूप से मान्यता मिलती है तो धीरे-धीरे समाज में भी स्वीकृति मिल जाएगी।
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डॉ. राजदान ने एक सेमिनार का उल्लेख करते हुए कहा कि एक बड़े मनोचिकित्सक अपने 'गे पार्टनर' के साथ वहां आए थे। व्याख्यान खत्म होने के बाद जब हमने उनसे पूछा कि क्या वे इस तरह के संबंधों से खुश हैं तो उन्होंने कहा- हां, निश्चित ही वे खुश हैं। डॉ. राजदान ने कहा कि साल में एक-दो मामले ऐसे भी हमारे समक्ष आते हैं, जब लोग लिंग परिवर्तन की सम्मति के लिए आते हैं। हालांकि समलैंगिक विवाह को प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए। 
 
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने : सुप्रीम कोर्ट में 18 समलैंगिक जोड़ों ने विवाह को मान्यता देने के लिए याचिका दायर की थी। अदालत ने समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा कि शादी कोई मौलिक अधिकार नहीं है। संसद को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में फैसला करना चाहिए। 
 
सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालत कानून की व्याख्या कर सकती है, लेकिन कानून बना नहीं सकती। मुख्‍य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि जीवनसाथी चुनना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जीवन के अधिकार के तहत ही जीवन साथी चुनने का अधिकार है। अत:  एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को साथी चुनने का अधिकार है। 
 
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना सही नहीं होगा कि समलैंगिकता सिर्फ अर्बन तक ही सीमित है। यह कोई अंग्रेजी बोलने वाले सफेदपोश आदमी नहीं है, जो समलैंगिक होने का दावा कर सकते हैं। गांव में कृषि कार्य में लगी एक महिला भी समलैंगिक होने का दावा कर सकती है। समलैंगिकता मानसिक बीमारी नहीं है। 
 
कोर्ट ने कहा कि यदि कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है तो ऐसे विवाह को मान्यता दी जाएगी क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी। ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है। अदालत ने यह भी कहा कि विवाह की संस्था बदल गई है, जो इस संस्था की विशेषता है। सती और विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक विवाह तक विवाह का रूप बदल गया है।
 
बार काउंसिल ने जताई थी चिंता : पूर्व में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह मुद्दे की सुनवाई किए जाने पर अपनी चिंता जताई थी। बार ने कहा कि इस तरह के संवेदनशील विषयों पर शीर्ष न्यायालय का फैसला भविष्य की पीढ़ियों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। वकीलों के संगठन ने एक प्रस्ताव में कहा कि भारत विभिन्न मान्यताओं को संजोकर रखने वाले विश्व के सर्वाधिक सामाजिक-धार्मिक विविधता वाले देशों में से एक है। अत: सामाजिक-धार्मिक और धार्मिक मान्यताओं पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला कोई भी विषय सिर्फ विधायी प्रक्रिया से होकर ही आना चाहिए।
 
हालांकि डॉ. मित्रा समलैंगिक विवाह के फायदे गिनाना भी नहीं भूलतीं। वे कहती हैं यदि उन्हें विवाह का हक मिलेगा तो उनकी जबर्दस्ती शादियां नहीं ‍होंगी। उन्हें विषमलिंगी से शादी नहीं करनी पड़ेगी, बच्चे नहीं करने पड़ेंगे। वे अपने पार्टनर को भी खुश रख पाएंगे। दरअसल, समलैंगिक व्यक्ति की जबरन सेक्सुअलिटी बदलने की कोशिश की जाती है। उनसे छेड़छाड़ होती है, उनका रेप होता है। यदि समलैंगिक विवाह लीगल होता है तो शादीशुदा जोड़ों को जो फायदे मिलते हैं, वे उन्हें ‍भी मिलेंगे। उन्हें बराबरी का दर्जा मिलेगा तो इससे न सिर्फ उन्हें बल्कि पूरे समाज को लाभ होगा। उन्हें ‍नॉमिनी और एडॉप्शन जैसे अधिकार भी मिल जाएंगे।
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क्या है सरकार का रुख : सेम-सेक्स मैरिज पर सरकार का तर्क है कि समलैंगिक शादी का हक एक शहरी अभिजात्य वर्ग की सोच है। साथ ही विवाह को मान्यता देना विधायी कार्य है। अदालतों को इस तरह के मामलों में फैसला करने से बचना चाहिए। विवाह की परिभाषा में पुरुष और महिला ही शामिल हैं। केन्द्र सरकार का कहना है कि समान-लिंग विवाह एक भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा के अनुकूल नहीं है। 
 
हालांकि याचिकाकर्ताओं के ही एक वकील केवी विश्वनाथन की दलील थी कि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जानी चाहिए और ऐसे जोड़ों को विवाह के अधिकार से वंचित करने के लिए संतानोत्पत्ति वैध आधार नहीं है। एलजीबीटीक्यूआईए लोग भी बच्चों को गोद लेने या उनका पालन-पोषण करने के लिए उतने ही योग्य हैं जितने कि विषम लैंगिक जोड़े। वहीं, वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अपनी दलील में विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून का जिक्र किया और कहा कि समाज ने शुरुआत में इसे स्वीकार नहीं किया था, लेकिन अंतत: इसे सामाजिक स्वीकृति मिली।
 
संघ प्रमुख ने भी जताई थी हमदर्दी : कुछ समय पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हालांकि इसका समर्थन तो नहीं किया, लेकिन समलैंगिकों के प्रति हमदर्दी जताते हुए कहा था कि उन्हें भी समाज का हिस्सा माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के लिए यह नई बात नहीं है। एलजीबीटीक्यू भी बायोलॉजिकल है और यह जीवन जीने का एक तरीका है। उन्होंने कहा कि ऐसी प्रवृत्ति के लोग मानव सभ्यता के समय से ही अस्तित्व में हैं। 
 
समलैंगिक संबंधों के पक्षधर और एक्टिविस्ट मयंक धुरिया कहते हैं कि समलैंगिक संबंध हमेशा से ही भारतीय संस्कृति का अंग रहे हैं। अब तक दुनिया के 34 देश समलैंगिक विवाहों को मान्यता दे चुके हैं। भारत के ऐतिहासिक संदर्भों को देखते हुए मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि भारत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाला अगला देश हो सकता है। 
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भारत का समलैंगिक राजकुमार : गुजरात की राजपीपला रियासत के पूर्व राजकुमार मानवेन्द्र सिंह गोहिल ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने समलैंगिक होने की बात स्वीकार की थी। उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा था। राजपीपला राजघराने ने उन्हें उत्तराधिकार से वंचित कर दिया था। गोहिल ने समलैंगिकों के लिए वृद्धाश्रम भी बनाया है। उनकी संस्था लक्ष्य फाउंडेशन समलैंगिक पुरुषों व ट्रांसजेंडरों के साथ काम करती है। यह संस्था सुरक्षित सेक्स का भी प्रचार करती है। 
 
इन देशों में समलैंगिक विवाह मान्य : भारत में समलैंगिक संबंधों को मान्यता दी गई है, लेकिन विवाह को मान्यता नहीं दी गई है। हालांकि दुनिया के 30 से ज्यादा (करीब 34) ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह कानून वैध हैं। इनमें- अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन, स्विट्‍जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, अर्जेंटीना, अंडोरा, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, चिली, कोलंबिया, कोस्टारिका, क्यूबा, डेनमार्क, इक्वाडोर, फ्रांस, फिनलैंड, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड, लक्जमबर्ग, माल्टा, मैक्सिको, द नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्लोबेनिया, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, ताइवान आदि शामिल हैं। 
 
कई देशों में सजा का प्रावधान : समलैंगिकता को कई देशों में अपराध माना जाता है। नाइजीरिया के 12 राज्यों में शरीया कानून लागू होने के कारण इस तरह के संबंध के दोषियों को मौत की सजा दी जाती है। मॉरिटेनिया, सोमालिया, सूडान, यमन एवं अन्य मुस्लिम देशों में समलैंगिक संबंधों के लिए सजा का प्रावधान है। ईरान में 1970 तक समलैंगिकता को मान्यता थी, लेकिन 1979 की इस्लामिक क्रांति के समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में आने लगी। 
 
इतिहास में समलैंगिकता : समलैंगिकता को लेकर शारीरिक विकृतियों जैसी अवधारणा सबसे पहले इटली में विकसित हुई थी। मुगल बादशाह बाबर के बारे में भी कहा जाता है वह समलैंगिक था। अकबर के एक दरबारी खान जमान उर्फ कुली खान के बारे में भी कहा जाता है कि वह समलैंगिक था। ताजमहल बनवाने वाले बादशाह शाहजहां के समय की एक घटना काफी मशहूर है। इतिहासकार टवेरनियर ने इसका जिक्र किया है। उनके मुताबिक बुरहानपुर के एक गवर्नर की हत्या समलैंगिकता के चलते हुई थी। 
 

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