नजरिया : प्रधानमंत्री ने दी आपदा को अवसर में बदलने की ताकत
वरिष्ठ पत्रकार कृष्णमोहन झा का नजरिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में कोरोना संक्रमण की शुरुआत के बाद देश वासियों को पांचवी बार संबोधित करते हुए 20 लाख करोड़ रुपये के जिस राहत पैकेज की घोषणा की है उसकी समाज के सभी वर्गों द्वारा अधीरता से प्रतीक्षा की जा रही थी। प्रधानमंत्री ने कहा है कि लॉकडाउन के कारण लोगों को जिन आर्थिक कठिनाईयो का सामना करना पड़ रहा है उनको दूर करने में इस राहत पैकेज की बड़ी भूमिका होगी।
यह राहत पैकेज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी )के एक दशांश के बराबर है और इस अनुपात में आर्थिक पैकेज की घोषणा करने वाले देशों में भारत का स्थान पाचवां है। अभी तक केवल जापान, अमेरिका, स्वीडन और जर्मनी द्वारा. ही अपने जीडीपी के दशांश से अधिक का आर्थिक पैकेज घोषित किया गया है।
प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य विशेषता यह थी कि इसमें उन्होंने देशवासियों से भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक सक्रिय अभियान चलाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमें आपदा को अवसर में बदलने का संकल्प लेना है। इस आपदा हमें डरना, टूटना और बिखरना नहीं है बल्कि पूरे साहस और आत्मविश्वास के साथ इससे लड़ते हुए निरंतर आगे बढ़ना है। प्रधानमंत्री ने स्वदेश में. निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर विशेष जोर देते हुए हमें लोकल का न केवल स्वयं उपयोग करना है बल्कि दूसरों को भी स्वदेशी वस्तुओं का ही उपयोग करने के लिए प्रेरित करना है |
दरअसल केंद्र सरकार भी अब यह मान रही है कि लाक डाउन को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता। कुछ समय पहले तक जहां यह कहा जाता था कि हम कोरोना को हराकर ही दम लेंगे वहीं अब यह कहा जाने लगा है कि हमें कोरोना के साथ ही जीना सीखना होगा। इसीलिए लाकडाउन की अवधि बढा कर ऱियायतें बढ़ाने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने सभी राज्यों से 15 मई तक इस संबंध में ब्लू प्रिंट प्रस्तुत करने को कहा है अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री कोई भी जोखिम लेने के पक्ष में नहीं हैं। अब कई राज्यों के मुख्यमंत्री इसलिए भी चिन्तित हैं कि अब जबकि पचास दिनों से बंद पड़े उद्योग धंधों में फिर से काम काज शुरू करने के लिए रूपरेखा तैयार की जा रही है तब उनके राज्य के प्रवासी मजदूरों ने अपने घर की राह पकड ली है।
इन राज्यों के सामने समस्या यह है कि उद्योग धंधों में काम करने वाले मजदूर कहां से लाएं। कई राज्यों में तो प्रवासी मजदूरो की संख्या इतनी अधिक थी कि उनकी अनुपस्थिति में वहां उत्पादक गतिविधियां ही ठप पड़ जाने की आशंका व्यक्त की जा रही हैं।
कल कारखानों के प्रबंधन का कहना है कि लॉकडाउन के कारण विश्वास की वह डोर भी कमजोर हुई है जो मजदूरों और प्रबंधन को एक दूसरे से जोडे रखती थी। अब दोनों के बीच उस पुराने विश्वास की बहाली के लिए नए सिरे से प्रयास करने होंगे। जो मजदूर अपनी कार्य स्थली को छोड़कर अपने गृहराज्य वापस जा चुके हैं वे अब दो ही स्थितियों में वापस आने के लिए तैयार होंगे।
एक तो यह कि कोरोना वायरस के संक्रमण का डर उनके मन से निकल जावे और दूसरे यह कि उनके साथ प्रबंधन सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करे परंतु यह भी संभव है कि गृहराज्य के बाहर रोजगार का आकर्षण कुछ वर्षों तक उन्हें बाहर जाने के लिए प्रेरित न कर सके क्योंकि वापसी के सफर के दुखद अनुभवों को जल्दी भुलाना आसान नहीं होगा |
बिहार और उत्तरप्रदेश के जो लाखों मजदूर दूसरे राज्यों से अपने घरों को वापस लौट चुके हैं उन्हें अग्रिम वेतन के रूप में पहले ही अगर कुछ आर्थिक मदद मिल जाती तो वे शायद कुछ दिन और इंतजार कर सकते थे परंतु श्रमिक ट्रेनों की शुरुआत और उनकी संख्या में बढोत्तरी के बाद अब शायद उनकी जल्दी काम पर लौटने की संभावनाएं धूमिल हो चुकी हैं।
जहां तक उद्योग मालिकों का सवाल है तो वे तो पहले से ही पचास दिनों तक काम बंद रहने से उपजी आर्थिक मजबूरियों के कारण सरकार से राहत पैकेज की आस लगा बैठे हैं | मजदूरों की कमी भी अब बेहद खलने लगी है |हाल में ही तेलंगाना सरकार ने बिहार सरकार से अपने राज्य में चावल मिलों और धान खरीदी केंद्रों पर काम करने के लिए बीस हज़ार मजदूर भेजने का अनुरोध किया है।
यही स्थिति अब दूसरे राज्यों में भी निर्मित होना तय है। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज से स्थितियों में किस तरह का बदलाव आता है| प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी देश में कोरोऩा संकट से निपटने के लिए लागू लाक डाउन में सभी राज्यों के मुख्य मंत्रियों से वीडियो कांफ़्रेंसिंग के जरिए निरंतर चर्चा करते रहे हैं | इसी क्रम में विगत दिनों उन्होंने एक बार फिर मुख्यमंत्रियों से विचारविमर्श किया था और इस बैठक सभी मुख्य मंत्रियों को अपनी बात रखने का मौका दिया गया था इसलिए यह बैठक दो सत्रों में 6 घंटे से अधिक समय तक चली।
मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की जो चर्चा हुई उससे यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं था कि 17मई को लाक डाउन 3.0 की अवधि समाप्त होते ही लाक डाउन 4.0 डाउन शुरू हो जाएगा। बस अब यह घोषणा बाकी है कि लाक डाउन 4.0 का स्वरूप क्या होगा और यह कब तक चलेगा। गौरतलब है कि उक्त बैठक में अनेक मुख्य मंत्रियों ने लाक डाउन को एक बार फिर बढ़ाने का सुझाव दिया था।अब यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि लाक डाउन को 17मई के बाद एक बार फिर बढ़ाने के साथ ही उसमें और रियायतें देने देने के लिए सरकार मन बना चुकी है।
गौरतलब है कि इस चर्चा के एक दिन पहले ही रेल मंत्रालय ने देश की राजधानी से विभिन्न राज्यों के लिए पंद्रह ट्रेनें चलाने की घोषणा की थी | कई राज्य सरकारों ने यह आशंका व्यक्त की है कि पहले श्रमिक ट्रेनें और इसके 15 जोडी पैसेंजर ट्रेनें चलने के बाद जब दूसरे राज्यों से लोग उनके राज्यों में पहुँचगे तो कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता है | इसीलिए कई राज्य सरकारें इसे नई चुनौती के रूप में देख रही हैं |
सारा देश कई दिनों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन की प्रतीक्षा कर रहा था |चूंकि आगामी 17 मई को लाकडाउन 3.0 की अवधि समाप्त होने जा रही है इसलिए यह प्रतीक्षा अधीरता में बदलने लगी था। सारा देश यह जानने के लिए उत्सुक था कि लाक डाउन 3.0 की अवधि समाप्त होने के बाद कोरोना संकट का सामना करने के लिए सरकार की ऱणनीति क्या होगी।
राष्ट्र के नाम अपने नवीनतम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि 18 मई से लॉकडाउन 4.0 शुरू हो जाएगा परंतु उन्होंने यह नहीं बताया कि लॉकडाउन के चौथे चरण का स्वरूप क्या होगा। दरअसल पिछले कुछ दिनों से देश में कोरोना वायरस के संक्रमण का जिस तेज़ी के साथ फैलाव हो रहा है उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि लॉकडाउन तो आगे भी जारी रहेगा | इस बात की पूरी संभावना है कि लॉकडाउन के अगले चरण में सरकार अनेक नई रियायतों के जरिए लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को आसान बनाने की पहल करेगी।