कोरोना की पहली लहर में संक्रमण से बच गए गांव कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ चुके है। गांवों में लगातार बढ़ते कोरोना के केस स्थिति को और भयावह बना रहे है। शहरों से लेकर गांव तक कोरोना के क्या हालात है इसको लेकर वेबदुनिया लगातार देश के अलग-अलग राज्यों की रिपोर्ट लगातार अपने पाठकों तक पहुंचा रहा है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के बाद वेबदुनिया ने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के गांवों में कोरोना को लेकर क्या हालात है इसका जायजा लिया।
हर साल गर्मियों में सूखे और पानी की संकट को झेलने वाले बुंदेलखंड इलाके में इस बार चुनौतियां डबल हो गई है। एक ओर पानी का संकट तो दूसरी ओर कोरोना का खौफ नजर आ रहा है। बांदा जिले के महुआ ब्लॉक में सौ से ज्यादा गांव आते हैं, लेकिन गांव के अधिकतर लोग जांच कराने से बच रहे हैं। ये कहना हैं महुआ ब्लॉक की आशा कार्यकर्ता मनोरमा बाजपेयी का।
वेबदुनिया से बातचीत में वह कहती हैं कि महुआ ब्लॉक में सौ से ज्यादा गांव आते हैं, लेकिन गांव के अधिकतर लोग जांच कराने से बच रहे हैं। हमें ऐसे लोगों की खबर भी मिलती हैं जो कई दिनों से सर्दी- खांसी, बुखार से बीमार हैं,लेकिन जब हम घर-घर सर्वे करते हैं, लोगों से लक्षण पूछते हैं, तो लोग सही जानकारी देने से बचते हैं। गांव के लोग सोचते हैं कि यदि वे कोराना पॉजिटिव निकले तो अस्पताल में रहना पड़ेगा और घर बर्बाद हो जाएगा। उनके घर को संभालने वाला कोई नहीं रहेगा।
मनोरमा आगे कहती हैं कि आंगनवाड़ी वर्कर के साथ हम घर-घर लोगों से कोरोना लक्षणों के बारे में पूछते हैं और उन्हीं लक्षणों के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर एएनम को भेज देते हैं। जहां आगे इस रिपोर्ट को बांदा के सरकारी अस्पताल या मेडिकल कॉलेज भेज दिया जाता है। रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर ऐसे लोगों को घर में ही एक अलग कमरे में क्वारेंटाइन कर दिया जाता है क्योंकि पिछले साल की गर्मियों में जहां लोगों को क्वारेंटाइन किया गया था, वहां न पानी की व्यवस्था थी और न ही पंखे-कूलर लगे थे।
जो लोग बाहर से गांवों में आते हैं उनकी जांच सबसे पहले बांदा के मेडिकल कॉलेज या सरकारी अस्पताल में कराई जाती है। इसके बाद गांव के अस्पतालों में जांच होती है। फिर भी ऐसे तमाम लोग हैं जो गांव में आते हैं लेकिन अपनी जानकारी नहीं देते हैं।
बांदा जिला के ही बिसंडा ब्लॉक के रहने वाले मोनू तिवारी कहते हैं कि गांवों में कोरोना जांच और टीकाकरण दोनों का काम सुस्त चल रहा है। सबसे बड़ी बात यह कि गांव के लोग भी इन दोनों से ही बचना चाहते हैं। गांव वाले न तो दो गज की दूरी बना रहे हैं और न ही मास्क लगा रहे हैं। यदि किसी ने गांव में मास्क लगा भी लिया तो लोग उसको देखकर मजाक करने लगते हैं।
गांवों में किसी भी तरह के जागरूकता अभियान नहीं चलाए जा रहे हैं। गांवों में अभी भी यह हालात हैं कि यदि कहीं बोरिंग हो रही है तो वहां मेले जैसे ही भीड़ लग जाती है। गांव से सटे कई कस्बों के बाजारों में भी आपको बाइक में चार लोग बैठे हुए नजर आ जाएंगे। कोरोना वायरस से बचाव का जो सबसे कारगार उपाय है वह दो गज दूरी और मास्क पहनना है। लेकिन गांव में यही सावधानी नहीं बरती जा रही है।
वहीं बुंदलेखंड के एक अन्य जिले महोबा के कबरई ब्लॉक के ही पहरा गांव के रहने वाले और वरिष्ठ शिक्षक सियाराम द्विवेदी कहते हैं कि जहां शहरों के लोग पढ़े लिखे हैं, हर दिन की पल-पल की कोरोना संबंधित खबर रखते हैं, तो वहीं गांवों में लोग ज्यादातर अनपढ़ हैं, उन्हें कोरोना की खबरों से नहीं अपने कामकाज से मतलब रहता है। गांव के लोगों के पास कोरोना संबंधित जो ख़बरें आती हैं वह भ्रम वाली ज्यादा रहती हैं। कई आसपास के गांवों में यही सुनने को मिल रहा है कि फलाने गांव में वैक्सीन लगवाने से फलां कि मौत हो गई, उसने नई वैक्सीन लगवाई थी।
अभी भी गांव के लोगों के पास कोराना को लेकर सही ख़बर नहीं पहुंच पा रही है। उनके लिए कोराना सिर्फ एक शब्द है यह कितना भयावह है यह नहीं जानते। इसलिए उन्हें इस बीमारी की कोई समझ नहीं हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक इस बीमारी का ही नाम नहीं सुना, क्योंकि ऐसे लोग गांव में ही नहीं आते। कई-कई महीने अपने हार-खेतों में निवास करते हैं। इसलिए ऐसे लोग गांव के चार लोगों के साथ बतिया भी नहीं पाते और गांव से भी कोरोना वायरस बीमारी का उन्हें पता नहीं चल पाता है। इसलिए सरकार के साथ हम सभी की यह जिम्मेदारी है कि गांव का एक भी व्यक्ति कोरोना टीका से छूटे न पाए।
महोबा जिले के समाजसेवी सागर सिंह कहते हैं कि अगर मैं कबरई ब्लॉक के पहरा गांव और इससे सटे दूसरे गांवों की बात करूं तो यहां के लोगों में सर्दी-खांसी और बुखार की समस्या तो हो रही है,लोगों की मौतें भी हो रही हैं। लेकिन ये नहीं कह सकते हैं कि फलाने की मौत कोरोना वायरस से हुई और न ही ये कह सकते हैं कि मलेरिया,टायफाइड से हुई है। क्यों कि ऐसे लोगों की कोरोना जांच ही नहीं हुई है। ऐसा नहीं हैं कि लोग कोरोना से डर ही नहीं रहे हैं, इस बार का कोरोना गांव के लोगों को भी डरा रहा है। लेकिन फिर भी लोग अस्पतालों में जाने से कतरा रहे हैं, खासकर गांवों का गरीब वर्ग।
कबरई ब्लॉक के गांवों के हालात ये हैं कि लोग इस कोरोना काल में भी बाहर कमाने जा रहे हैं। पत्थर वाला इलाका है, यहां क्रशर प्लांट हैं। यहां के लोग खेती पर कम,काम-धंधे पर ज्यादा निर्भर हैं। इसलिए आसपास के गांवों के लोग कोरोना काल में भी रोजगार पाने के लिए शहरों में पलायन करने को मजबूर हैं। इसलिए हम ऐसे परिवारों की मदद के लिए आगे भी आ रहे हैं।
सागर सिंह आगे कहते हैं कि महोबा जिले में कोरोना केसेस कम हैं। इसलिए यहां वैक्सिनेशन का काम भी सुस्त दिखाई देता है। गांवों में तो चार से पांच डोज ही पहुंच रहे हैं। मुझे भी अभी वैक्सीन नहीं लगी है। हर गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं हैं कि लोगों को अपने गांव में ही टीका लग जाए।
जहां एक तरफ सरकार गांवों में सबकुछ ठीक होने की बात कह रहे हैं तो वहीं जमीनी सच्चाई कुछ और ही तस्वीरें बयां कर रही हैं। गांवों में कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए काउंसलर डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि गांवों में कोरोना को खत्म करना हैं तो गांव के लोगों को जागरूक करना होगा जिससे कि वह कोरोना जांच और वैक्सीनेशन के लिए आगे आए। गांव के लोगों को जागरुक करने के लिए पटवारी से लेकर ग्राम प्रधान के साथ गांव के प्रबुद्ध लोगों को आगे आकर जनजागरण करना होगा। वहीं सरकारों को गांव में कोरोना जांच और वैक्सिनेशन के काम में तेजी लानी होगी जिससे कि गांव में महामारी को फैलने से रोका जा सके।