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चंद्रयान-1 के जरिए आर्यभट्ट की खोज साकार

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नई दिल्ली। जाने-माने भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने ।500 साल पहले चाँद की दूरी तथा उसके आकार को सटीक तौर पर मापा था। आज पीएसएलवी सी-11 के जरिए चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण से आर्यभट्ट की खोज साकार होती दिख रही है।

चंद्रयान-1 का सफर इतना आसान भी नहीं रहा। चंद्रयान के सफर की शुरुआत उस समय हुई जब इंडियन अकादमी ऑफ साइंस की बैठक के दौरान वर्ष 1999 में चाँद पर भारतीय मिशन का प्रस्ताव किया गया। इसके बाद 15 अगस्त 2003 को लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चंद्रयान परियोजना की घोषणा की थी।

चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन विश्व का 68वाँ चंद्र अभियान है। पहला चंद्र अभियान सोवियत रूस ने दो जनवरी 1959 को भेजा था। इसके तीन महीने बाद ही अमेरिका ने तीन मार्च 1959 को अपने चंद्र अभियान को अमली जामा पहनाया। इन दोनों देशों ने अब तक 62 चंद्र अभियान भेजे हैं, जिसमें पहला मानव सहित चंद्र अभियान 20 जुलाई 1969 को भेजा गया था।

श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से युकेलिप्टस के झुरमुटों से हवा को चीरता पीएसएलवी सी-11 जब आकाश की ओर बढ़ा तो भारत सफलतापूर्वक चंद्र अभियान भेजने वाला विश्व का छठा देश बन गया। पीएसएलवी के प्रदर्शन और सफलता दर को देखते हुए चंद्रयान-1 के लिए इसके उन्नत संस्करण को चुना गया था।

चंद्रयान-1 के चाँद की कक्षा में 100 किलोमीटर नजदीक पहुँचने के बाद चंद्रयान से मून इंपैक्ट प्रोब बाहर आएगा, जो लगभग दो साल तक उससे जुड़ी तमाम जानकारियाँ उपलब्ध कराएगा। चाँद के लिए इस सफर में चंद्रयान लगभग चार लाख किलोमीटर की यात्रा तय करेगा।

साढ़े चार अरब वर्ष पुराने चाँद के लिए भेजा गया चंद्रयान घनाकार है, जिसका वजन प्रक्षेक्षण के समय ।304 किलोग्राम तथा चाँद की कक्षा में इसका वजन 590 किलोग्राम है।

जाने-माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल ने बताया चंद्रयान के दो साल के सफर में इसमें विशेष तौर पर लगाई गई सोलर पट्टी इसे अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करेगी। सोलर पट्टी से 700 वाट बिजली पैदा होगी, जबकि चंद्रग्रहण के दौरान लिथियम आयन बैटरी से ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी।

उन्होंने बताया कि आँकड़ा भेजने के लिए चंद्रयान पर 0.7 मीटर व्यास का एक्स बैंड लगा हुआ है। टेलीमेट्री चीजों का पता लगाने तथा निर्देश जारी करने की व्यवस्था एस-बैंड पर उपलब्ध है, जबकि वैज्ञानिक पे-लोड आँकड़ा भेजने की व्यवस्था एक्स बैंड पर उपलब्ध है।

चंद्रयान-1 पर 11 पे-लोड लगे हुए हैं, जिसमें क्षेत्र मापने वाली स्टिरियो कैमरा, हाइपर स्पेक्ट्रल इमैजिंग कैमरा, लुनर लेजर रेजिंग उपकरण, उच्च शक्ति वाला एक्स-रे स्पेटोमीटर, मून इंपैक्ट प्रोव जैसे उपकरण लगे हैं।

इसके अलावा रदरफोर्ड एपलेटन लैब ब्रिटेन और इसरो के गठजोड़ से चंद्रयान-1 एक्स रे स्पेक्टोमीटर, जर्मनी का नियर इंफ्रा रेड स्पेक्टोमीटर, स्वीडन का उपनाभिकीय अन्वेषक, बल्गारिया का रेडिएशन डोज मॉनिटर, अमेरिका के नासा का मिनिएचर सिन्थेटिक एपर्चर रडार तथा अमेरिका के मून मिनरोलाजी मैपर जैसे उपकरण लगे हुए हैं।

प्रो. यशपाल ने कहा कि चंद्रयान पर 10 गिगाबाइट का मून मिनरोलाजी मैपर खनिज तथा लवणों के बारे में जानकारी एकत्र करेगा। इस अभियान का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य ऊर्जा के विकल्पों की तलाश का है, जिसमें हिलीयम-3 तत्व की खोज का कार्य अहम होगा।

उन्होंने कहा कि चंद्रयान अपने अभियान के दौरान चंद्रमा कक्षा में दो वर्षो की यात्रा के दौरान चंद्रमा की सतह तथा इस उपग्रह पर जल की संभावना का पता लगाएगा।

जमीन पर चंद्रयान-1 पर डीप स्पेस स्टेशन (डीएसएन), स्पेसक्राफ्ट कंट्रोल सेंटर (एसएससी) तथा इंडियन स्पेश साइंस डाटा सेंटर (आईएसएसडीसी) नजर रखेगा।

उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-1 पर 7.6 करोड़ डॉलर की लागत आई है। इसमें से 1.1 करोड़ डॉलर पे-लोड के विकास में 1.7 करोड़ डॉलर अंतरिक्ष यान पर 2 करोड़ डॉलर, डीप स्पेस 2 करोड़ डालर पीएसएलवी वाहन के प्रक्षेपण तथा एक करोड़ डॉलर वैज्ञानिक आँकड़े बाह्य नेटवर्क तथा कार्यक्रम प्रबंध पर खर्च हुए।

श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से युकेलिप्टस के झुरमुटों के बीच से जब पीएसएलवी सी-11 का प्रक्षेपण किया गया तो उस समय जो बादल राकेट के धुएँ को रोक रहे थे, वही बाद में उससे गले मिलते प्रतीत होने लगे। (भाषा)

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