लंकाधिपति रावण की जन्म कुंडली में मात्र तीन ग्रह उच्च राशिगत थे। शास्त्रानुसार तीन ग्रह उच्च के होने पर जातक को राजयोग बनता है व उसे पराक्रमी बनाता है। कुंडली से यह सिद्ध होता है कि श्रीराम और रावण की कुंडली में राम को पंच उच्च ग्रही योग होने के कारण सशक्त रावण पर भी विजय प्राप्त हुई।
प्रत्येक वर्ष विजया दशमी के दिन रावण दहन का कार्यक्रम देश में मनाया जाता है। रावण को बुरा समझकर बुराई का अंत रावण दहन कर इतिश्री समझ लिया जाता है। लेकिन आज के युग में रावण आतंकवाद के रूप में जिंदा है। चहुंओर अराजकता ही तो रावणों की प्रवृत्ति है। जब तक रावण नहीं मरते तब तक बुराई का अंत नहीं हो सकता।
रावण कोई अनीतिज्ञ नहीं था। वह परम ज्ञानी, प्रकांड ज्योतिषी, देवज्ञ पुरुष था तभी तो अपनी व अपने सगे-संबंधियों की मृत्यु का कारण राम को चुनकर सभी को स्वर्ग की राह पर ले गया। तभी तो माता सीताजी का हरण किया था व जीतेजी सीताजी को नहीं ले जाने दिया। यही तो मुक्ति का मार्ग था।
आइए ऐसे महापुरुष की जन्मकुंडली पर दृष्टि डालें, जिसने संसार में एक अलग ही स्थान बनाया।
रावण प्रकांड विद्वान होने के साथ भविष्य दृष्टा भी था। रावण का जन्म लग्न तुला है व राशि भी तुला है। लग्न में पंचमेश व दशमेश की युति है।
यहां पंचमेश राजयोग बना रहा है, जो पंचमहापुरुष योग में से एक शशयोग बन रहा है। दशमेश चंद्र से युति होने से लक्ष्मीनारायण योग भी बनता है। अत: रावण का साम्राज्य चहुंओर था।
राम-रावण की राशि एक मानकर लोग टीका-टिप्पणी भी करते हैं। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि रावण की राशि तुला, लग्न भी तुला और राम की राशि कर्क और लग्न भी कर्क, जो एक-दूसरे से भिन्न है। चतुर्थ भाव जो कि जनता, भूमि और माता से संबंध रखता है उसमें सप्तमेश व धनेश मंगल उच्च का होने से रावण अथाह भूमि और सम्पति का मालिक था।
षष्ठ नाना-मामा के भाव में शुक्र व बुध है जो लग्नेश, अष्टमेश शुक्र का कारक है। धर्म-भाग्य भाव का स्वामी बुध नीच का होने से सीताजी का हरण कर कुटुम्बियों, पुत्रों, सगे-संबंधियों सहित राम के द्वारा उद्धार कराकर सभी को स्वर्ग का द्वार दिखाया।
सप्तम भाव में उच्च के सूर्य ने मंदोदरी को दृढ़ बनाया तभी तो वह बार-बार रावण से सीताजी को लौटाने की बात कहती रही। रावण के लग्न में उच्च के शनि ने बात मानने नहीं दी। दशम में उच्च का गुरु होने से रावण नीतिज्ञ, राजनीति में प्रवीण था। तभी भगवान शिव को प्रसन्न कर दस सिर वाला बना और दशानन कहलाया। दशानन का मतलब दस सिरों का ज्ञान पाना।
गुरु की धन भाव पर मित्र दृष्टि से महाधनी और बहुत सारे कुटुम्ब वाला बना वहीं षष्ठ भाव पर स्वदृष्टि से अपने कुल का प्रधान भी था। पंचम भाव पर शत्रु दृष्टि ने उसके पुत्रों को भी बलशाली बना दिया।
पराक्रमेश भाव का स्वामी उच्च का होने से धार्मिक, रामभक्त विभीषण व कुंभकर्ण जैसा वैज्ञानिक भाई हुआ। इसमें कुंभकर्ण भाई भक्त था। उसने भी समझाया था कि राम से बैर मत लो, सीताजी को वापस भेज दो, लेकिन रावण को अपने कुल को तारना था। इस कारण सीताजी को नहीं भेजा और युद्ध में सभी को भेजकर स्वयं भी राम के हाथों उद्धार पाया।