मुसीबत में हो फँसे तो ऑर्डर कर दो पिज्जा
एक बहुत मोटे पेटू पंडित थे। पितृपक्ष में एक यजमान ने उन्हें एक दिन इस शर्त पर न्यौता दिया कि उस दिन वे केवल उसी के यहाँ भोजन करेंगे। हाँ, दक्षिणा वे जितनी चाहे ले लें। पंडितजी मान गए। उस दिन उन्होंने यजमान के यहाँ छककर खाया। दक्षिणा लेकर जब घर जाने लगे तो यजमान ने कहा- और खा लो पंडितजी। वे बोले- भैया, अब तो पेट में दानेभर की भी जगह नहीं। और तोंद पर हाथ फेरते हुए विदा हो गए। रास्ते में दूसरा यजमान मिला। वह उनसे बोला-पंडितजी, खीर-पूरी की रसोई है। दक्षिणा भी खूब दूँगा। चलकर भोजन कर लें। खीर-पूरी का नाम सुनते ही पंडितजी शर्त-वर्त भूलकर उसके साथ चल दिए। जब वे उसके घर में से निकले, तभी पहला यजमान सामने पड़ गया।
एक बहुत मोटे पेटू पंडित थे। पितृपक्ष में एक यजमान ने उन्हें एक दिन इस शर्त पर न्यौता दिया कि उस दिन वे केवल उसी के यहाँ भोजन करेंगे। हाँ, दक्षिणा वे जितनी चाहे ले लें। पंडितजी मान गए। उस दिन उन्होंने यजमान के यहाँ छककर खाया।
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वह बोला- क्या हुआ पंडितजी, आपके पेट में तो दानेभर की जगह नहीं थी। आपने शर्त भी तोड़ दी। इस पर वे बोले- भैया, तुमने कभी राजा की सवारी निकलते देखी है। जब वह निकलती है तो ऐसी जगह भी रास्ता बन जाता है, जहाँ कि पाँव रखने की भी जगह नहीं होती। वैसे ही खीर-पूरी की सवारी को देखकर पेट में अपने आप जगह बन गई। रही शर्त की बात, तो पितृपक्ष में यह मान्य नहीं होती। उनकी बात सुनकर यजमान अपना-सा मुँह लेकर चला गया और पंडितजी पास ही पड़ी एक खटिया लेट गए। उनसे चलते जो नहीं बन रहा था।
दोस्तो, कहा जाता है कि बुभुक्षितः किं न करोति पापं। यानी भूखा आदमी कोई भी पाप कर सकता है। उसके पाप करने की वजह होती है भूख। लेकिन यहाँ तो खाया-पिया ही पाप कर रहा है। यह पाप नहीं तो और क्या है कि आप अपने शरीर की जरूरतों और पेट की क्षमता से ज्यादा खाकर मुटिया रहे हैं। इस बात की चिंता किए बिना कि बढ़ता मोटापा एक दिन आपके लिए घातक सिद्ध होगा।
इस तरह आप ज्यादा खा-खाकर अपनी ही जान के दुश्मन बन जाते हैं। यह भी तो पाप ही हुआ ना। इसके साथ ही पाप तो वे लोग भी करते हैं जो सब कुछ होते हुए भी समय पर भोजन नहीं करते, क्योंकि अपनी व्यस्तताओं के चलते उनके पास भोजन करने का समय ही नहीं होता। ऐसे लोग खाना खाने को समय की बर्बादी मानते हैं। जब पेट में चूहे कूद-कूदकर थक जाते हैं, तब वे खाना खाते हैं। और खाते भी हैं तो ऐसे जैसे कि गाय-भैंस घास-फूस खाती हैं। जल्दी-जल्दी, बिना चबाए हुए। मानो अभी तो खाओ, बाद में जुगाली कर लेंगे।
तो भैया, जुगाली करने की सुविधा तो केवल जानवरों के पास है। इंसानों को तो चबाना ही पड़ता है। ऐसे में शरीर को कष्ट दे-देकर खाना पाप करना ही हुआ ना। याद रखें कि खाने को चबाने की बजाय निगलने वालों को बीमारियाँ निगल लेती हैं। इसलिए यदि आप भी खाने के प्रति लापरवाह हैं तो समय रहते भोजन को अपनी दिनचर्या का एक अनिवार्य हिस्सा बनाकर समय पर और इत्मीनान से भोजन करें।
दूसरी ओर, आज दुनिया में फास्ट फूड की माँग जिस तेजी से बढ़ रही है, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितनी जल्दबाजी में हैं हम सब। आप विश्वास करें या नहीं, अकेले अमेरिकी रोज सौ एकड़ जमीन के बराबर पिज्जा खा जाते हैं। स्थिति यह है कि यदि आपको मुसीबत के समय किसी की सहायता की जरूरत है। ऐसे में आप पुलिस को फोन करने के साथ ही अगर एक पिज्जा ऑर्डर कर दें तो यकीनन आप तक पहुँचने में पिज्जा वाला बाजी मार लेगा।
अरे आप हँस रहे हैं। क्या हम गलत कह रहे हैं। नहीं ना। लेकिन फास्ट फूड की इसी बढ़ती खपत से बीमारियों के बढ़ने की गति भी फास्ट हो गई है। इसी के चलते आज आधा अमेरिका मोटापे की बीमारी से ग्रस्त है। डायटीशियन मानते हैं कि फास्ट फूड कभी पौष्टिक आहार नहीं हो सकता। इसलिए इसे वे घास-फूस की संज्ञा देते हैं।
और अंत में, आज 'फास्ट फूड डे' है। आज आप प्रण करें कि कभी-कभार स्वाद बदलने के लिए फास्ट फूड खाने को छोड़कर इसे रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा न खुद बनाएँगे, न अपनों को बनाने देंगे। तभी आपकी और आपके अपनों की लाइफ फास्ट स्पीड में बिना बीमारी के ब्रेक के आगे बढ़ेगी। तो हो जाए एक पिज्जा।