डीयू सिखाएगा पर्सनेलि‍टी डवलपमेंट के हुनर

Webdunia
- अनुपम कुमार

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दिल्ली विश्वविद्यालय अपने छात्रों को ग्‍लोबल लेवल की चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्सनेलि‍टी डवलपमेंट का हुनर सिखाएगा। इसके लिए विशेष तौर पर व्यक्तित्व विकास प्रोग्राम का कोर्स तैयार किया गया है। छात्रों के लिए इसमें अगले माह से दाखिले शुरू होंगे।

कोर्स का संचालन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ लौंग लर्निंग कर रहा है। आईएलएलएल के निदेशक प्रो. एके बख्शी ने बताया कि छात्रों को शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा व्यक्तित्व विकास पर भी आज विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इससे वैश्विक स्तर पर पैदा हो रही नित नई चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी। छात्रों को अपना मूल्यांकन करने और अपनी कमजोरियों को जानने का अवसर मिलेगा।

कोर्स में दाखिले की प्रक्रिया अगस्त माह में शुरू होगी। करीब 70 घंटे का यह कोर्स अक्तूबर में खत्म हो जाएगा। इसके बाद जनवरी से एक और बैच शुरू होगा। उन्होंने बताया कि इस कोर्स में नेतृत्व क्षमता, द्वंद्वों पर काबू पाने, प्रभावशाली कम्यूनिकेशन, मोटिवेशन और तनाव प्रबंधन जैसी चीजें शामिल हैं।

इसमें 35 से 40 सीटें होंगी। दाखिला दिल्ली विश्वविद्यालय और इससे संबंधित कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर मिलेगा। फीस 300 हजार रुपए रखी गई है। कोर्स की कक्षाएँ आईएलएलएल में होंगी। कोर्स के विशेषज्ञों की मानें तो व्यक्तित्व का विकास कई मनोवैज्ञानिक और चारित्रिक पहलुओं से जुड़ा है।

इसकी कई कड़ि‍याँ आपस में मिलकर किसी के व्यक्तित्व में निखार लाते हैं। व्यक्ति की छवि को दूसरे के सामने चुंबकीय यानी आकर्षक और प्रभावशाली बनाती हैं। इन क़िड़यों को जो़ड़ने और उसे अमल में लाने के गुर ही आमतौर पर छात्रों को एक कोर्स के रूप में संस्थान में बताई जाती है।

खुद और दूसरों को समझें
व्यक्तित्व विकास की यह महत्वपूर्ण कड़ी है। अपने को समझने से मतलब है अपनी जरूरतों को समझें। अपनी शक्तियों और कमजोरियों को जानें। अपनी क्षमताओं का आकलन करें। ऐसा करने से आपको अपनी सीमाएँ भी पता चलेंगी। साथ ही दूसरों को भी समझना, दूसरे की जरूरतों को समझना भी उतना ही जरूरी है ताकि दोनों के बीच बेहतर संबंध कायम हो सके।

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मोटिवेशन व लक्ष्य का निर्धारण
अपने गोल यानी जीवन के लक्ष्य को तय करना भी जरूरी है। लक्ष्य को तय करने और फिर उसे पाने के लिए दो तरह के मोटिवेशन की जरूरत है। एक अंदर और दूसरा बाहर से। ऐसा इसलिए ताकि तय लक्ष्य को पाया जा सके।

स्‍ट्रेस एंड टाइम मैनेजमेंट
तनाव पैदा होने के स्रोत कौन-कौन से हैं। वह कहाँ-कहाँ से आते हैं। यह खुद के अंदर, नौकरी, परिवार व समुदाय कई तरफ से पैदा होता है। इसका असर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों पर पड़ता है। मसलन स्टोमैके अल्सर, हार्ट अटैक, माइग्रेन, एलर्जी, टेम्परेचर, डायरिया व लूज मोशन जैसी चीजें कहीं न कहीं तनाव से जुड़ी से होती हैं।

इससे बचाव के उपाय बताए जाते हैं। तनाव कम करने के साथ भागदौ़ड़ भरी जिन्दगी में समय प्रबंधन का भी होना जरूरी है। अगर किसी को दिन में पच्चीस काम या कई बैठक करनी है तो उसे इसके लिए समय प्रबंधन की कला आनी जरूरी है। ऐसा इसलिए ताकि बाद में आंतरिक रूप से तनाव पैदा नहीं हो।

ग्रुप डि‍स्‍कशन और इंटरव्यू
व्यक्तित्व विकास के एक आयाम के रूप में समूह चर्चा व साक्षात्कार से निपटने की बोहर रणनीति भी बताई जाती है। इनमें सफल होने और प्रभावशाली बनने के लिए जरूरी है कि किसी विषय पर आपकी सोच स्पष्ट होनी चाहिए। दूसरों से कैसे बात करें और दूसरे की राय को किस तरह से आदर दें यह समूह चर्चा में विशेष तौर पर बताई जाती है। इस क़ड़ी में साक्षात्कार का सामना करने की कला भी सिखाई जाती है।

क्रि‍एटि‍वि‍टी और इनोवेशन
अपने अंदर रचनात्मकता का विकास या इनोवेशन लाने के लिए किन किन उपायों का किया जाना जरूरी है इस पर मनोवैज्ञानिक विशेष जोर देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि रचनात्मकता ही किसी व्यक्ति को दूसरे से अलग करता है।

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कम्युनिकेशन स्किल
कम्युनिकेशन किसी भी व्यक्ति की छवि को दूसरे सामने रखता है। यह संवाद दूसरे से कैसे हो। इसके दो रूप हैं। पहला औपचारिक और दूसरा अनौपचारिक संवाद। 30 फीसदी संवाद औपचारिक और 70 फीसदी अनौपचारिक संवाद होते हैं। संतुलित व्यक्तित्व के लिए दोनों में सामंजस्य होना जरूरी है। यह सामंजस्य कैसे स्थापित करे इसकी तरकीब प्रायौगिक तौर पर कोर्स में बताया जाता है।

संतुलन व सामजंस्य के रास्ते में कौन कौन सी बाधाएँ, बोलचाल में दूसरे का हावी होना, कर्कश आवाज जैसी कई चीजों के बीच संवाद को बेहतर ढंग से पेश करने की कला छात्रों को व्यक्तित्व विकास के तहत सिखाई जाती है।आज किसी संस्थान को मैनेजर ही नहीं, नेतृत्व क्षमता से उक्त व्यक्ति भी चाहिए। किसी व्यक्ति में नेतृत्व क्षमता कैसे पैदा हो। वह प्रबंधक सभी से कैसे अलग दिखे और बने इसका गुर भी सिखाया व बताया जाता है।

ऐसा करने के लिए नेता की क्या जिम्मेदारी होती है, उसकी क्या पहचान है इस चीज पर फोकस किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों की नजर में नेता इनोवेटिव यानी कुछ नया करने की राह दिखाने वाला होता है जबकि प्रबंधक उसे व्यवहार में लाता है। प्रबंधक उसे नियमों में बांधता है। नेता नए आइडिया लाता है उसे प्रयोग में लाने का काम प्रबंधक का होता है।

दो व्यक्तित्वों की सोच व काम करने की शैली अलग होती है। उसमें टकराव के बाद समन्वय की जरूरत प़ड़ती है। कंफ्लिक्ट मैनेजमेंट के तहत दो परस्पर विरोधी व्यक्तित्वों में सामंजस्य स्थापित करने और दोनों के साथ काम करने की कला सिखाई जाती है।

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