Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

ग्रामीण क्षेत्र के लिए अब तक क्या किया?

हमें फॉलो करें ग्रामीण क्षेत्र के लिए अब तक क्या किया?
, सोमवार, 29 फ़रवरी 2016 (07:40 IST)
वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि इस वर्ष के महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी स्कीम (एमजीएनआरइजीएस) पर खर्च का बजट अनुमान वर्तमान वित्तीय बजट में सबसे बड़ा होगा। योजना पर वास्तविक खर्च के मामले में वे योजनागत व्यय अनुमानों का पालन करेंगे हालांकि पहले ऐसा नहीं किया जाता रहा है।

विदित हो कि दिसंबर, 2015 तक केन्द्र सरकार ने इस क्षेत्र में वर्ष 2911-12 के बाद सबसे अधिक बजट शेयर में बढ़ोतरी की गई। हालांकि इस क्षेत्र की योजनाओं को लेकर होता यह रहा है कि पिछले वर्ष की तुलना में वास्तविक खर्च की मात्रा कम ही रही है। वास्तव में ग्राणीण क्षेत्र पर होने वाले व्यय में कृषि मंत्रालय, पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्रालयों का योजनागत व्यय भी शामिल किया जाने लगा है।    
 
ठीक इसी तरह की तस्वीर तब सामने आती है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की कल्याणकारी कार्यक्रमों की बात आती है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान चार बड़ी ग्रामीण कल्याणकारी योजनाओं के लिए होने वाले आवंटनों को सेंटर फॉर बजटरी गवर्नेंस एंड अकाउंटिबिलिटी (सीबीजीए) ने आंका। ये चार बड़ी योजनाएं केन्द्र सरकार के ग्रामीण क्षेत्र में लोककल्याणकारी व्यय का एक प्रमुख हिस्सा था। इनमें से एमजीएनआरइजीएस के खातों पर कुल व्यय करीब 43 फीसदी था। 
 
हालांकि इस मद पर होने वाला व्यय 12वीं योजना लक्ष्यों के अनुरूप हैं, लेकिन सभी चार प्रस्तावित लोक कल्याणकारी योजनाओं पर प्रस्तावित व्यय को पूरा करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
 
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के प्रस्तावित बजट में सभी चारों कल्याणकारी योजनाओं पर प्रस्तावित सरकारी व्यय का केवल 73 फीसदी है। यदि व्यय में कोई कभी आती है तो इससे चिंता पैदा होना स्वाभाविक है क्योंकि योजना आयोग ने जो व्यय स्वीकृ‍त किया है, वह ग्रामीण विकास मंत्रालय के लक्ष्यों से बहुत कम है। 
 
इसलिए हमें इस बात पर भी विचार करना होगा सरकार ने इस मद या क्षेत्र विशेष पर अब तक कितना पैसा खर्च किया है? और क्या इसके परिणाम घोषित लक्ष्यों के आसपास रहे? वित्तमंत्री जेटली ने हाल में कहा है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में मनरेगा पर होने वाला व्यय उनके बजट अनुमानों को भी पीछे छोड़ देगा? सीबीजीए ने अपने विश्लेषण में पूछा है कि कुल बजट के व्यय में ग्रामीण, कृषि क्षेत्र पर कुल कितना व्यय किया गया? किसी अकेले कार्यक्रम या योजना के आवंटन में एक कमी से दूसरी योजना, कार्यक्रम प्रभावित होते हैं।
 
इसलिए यह कहना समुचित होगा कि बजट में ग्रामीण, कृषि क्षेत्र के समूचे भाग को देखते हुए इस बात पर भी विचार किया जाए कि इस क्षेत्र में क्या पर्याप्त प्रोत्साहन उपलब्ध कराया गया है। इसे समझने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि सरकार के समूचे योजनागत व्यय में से ग्रामीण-कृषि क्षेत्र का कुल हिस्सा कितना है? विदित हो कि सरकार के कुछ योजनागत व्यय में कर्मचारियों का वेतन जैसा गैर-योजनागत व्यय भी शामिल होता है। इस कारण से वर्ष 2014-15 और वर्ष 2015-16 के आंकडों में योजनागत व्यय में तीन मंत्रालयों के अंतर्गत होने वाला व्यय में थोड़ी कमी आई है। 
 
इस तरह के परिणाम का एक कारण यह भी हो सकता है कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के कारण समूचे योजनागत व्यय के आकार में कमी आई है। इसका कारण है कि अब सरकार के सामने बंधे हुए बनाम गैर-बंधे हुए हस्तांतरण पर बहस है। विदित हो कि कुछ समय पहले तक भारत में बजटीय नीति तय करने वाले टीकाकारों का काम कम हो गया है। पूर्व के योजना आयोग में एक ऐसी योजना बनाई जाती थी जिसके प्रत्येक आवंटनों को पूरा करने के लिए एक निश्चित राशि तय की जाती थी। पांच वर्ष की अवधि में इन आवंटनों को पूरा व्यय करने का लक्ष्य रखा जाता था। 
 
लेकिन, 14वें वित्त आयोग ने केन्द्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी को दस फीसदी अंकों तक बढ़ा दिया है जिसके परिणामस्वरूप अपनी आय में कमी को पूरा करने के लिए केन्द्रीय बजट में सरकार ने केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित होने वाली बहुत सी योजनाओं में अपनी वित्तीय सहायता कम कर ली है। इनमें से बहुत सारी योजनाएं ग्रामीण और कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं।
 
वित्त आयोग की सिफारिशों के खिलाफ एक सदस्य, अभिजीत सेन, ने अपना मत रखा था। उनका तर्क था कि बैकवार्ड रीजन ग्रांट्‍स फंड्‍स और नॉर्मल सेंट्रल असिस्टेंस से चलने वाली योजनाओं, कार्यक्रमों को केन्द्रीय सहायता बंद होने के बाद राज्य सरकारें कह सकती हैं कि नई सहायता व्यवस्था के तहत उनके संसाधनों में भी कमी हो गई है और वे इन योजनाओं के लिए नुकसान उठाने को तैयार नहीं है। 
 
उनका यह भी कहना था कि बहुत से राज्य ऐसी योजनाओं को संयुक्त रूप से मदद करने में आनाकानी कर सकते हैं। इसका सीधा नतीजा यह होगा कि केन्द्र के उपलब्ध संसाधनों की मात्रा में कमी आना स्वाभाविक है। महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार के वित्तपोषण को कम नहीं किया गया है लेकिन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस पर इकॉनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में अपने एक लेख में पिंकी चक्रवर्ती ने लिखा है कि केन्द्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस)  में केन्द्र सरकार की शुद्ध मदद पिछले संशोधित व अनुमानित आंकड़ों (2014-15) के मुकाबले में वर्ष 2915-16 में करीब 67 हजार करोड़ रुपए रह गई थी।  
 
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए दो बातें कही जा सकती हैं। पहली बात,  पिछले वर्षों में सरकारों ने कृषि क्षेत्र को वास्तविक रूप से बड़ा प्रोत्साहन नहीं दिया हो, लेकिन इस बार यह राशि को अलग-अलग योजनाओं के बजटीय आवंटनों की तुलना में एक बड़ी राशि मुहैया करानी चाहिए। दूसरी बात, केन्द्र सरकार यह तर्क दे सकती है कि राज्यों को बढ़े हुए करों के प्रवाह के चलते उसके पास व्यय में बढ़ोतरी करने की गुंजाइश नहीं है।   
 
लेकिन इस बजट से कृषि क्षेत्र को लाभ होता है या नहीं, यह तभी जाना जा सकेगा जब राज्यों के बजटों का विस्तृत‍ विश्लेषण उपलब्ध होगा। लेकिन इस बात को लेकर बहस अवश्य की जा सकती है कि क्या जेटली को केवल केन्द्र सरकार द्वारा वित्तपोषित नई ग्रामीय योजनाओं को शुरू करना चाहिए?  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi