इस बार केन्द्र सरकार का बहुत जोर रोजगार बढ़ाने के अवसरों पर है और रोजगार के यह नए अवसर, छोटे-छोटे कारोबारों, स्टार्ट-अप्स और तेजी से बढ़ते छोटे और मध्यम दर्जे की इकाइयों से पैदा हो सकते हैं। हमें पता होना चाहिए कि भारत की आबादी का 62 फीसदी भाग वर्किंग एज (15 वर्ष से 55 वर्ष) के बीच का है। इतना ही नहीं, कुल जनसंख्या का 54 फीसदी से ज्यादा हिस्सा 25 वर्ष के कम उम्र का है। जनसंख्या की इस विशाल सम्पदा का लाभ लेकर हम भारत की जीडीपी को बढ़ा सकते हैं।
छोटे और मझोले उद्यमों (एसएमईज) में 40 फीसदी भारतीय श्रम शक्ति लगती है और यह देश की जीडीपी में केवल 17 फीसदी का योगदान करती है। इसके विपरीत, ताइवान, चीन और सिंगापुर में ऐसे कारखानों में देश की जनसंख्या का करीब 70 फीसदी श्रम लगता है और इनका अपने देश की जीडीपी में क्रमश: 85 प्रतिशत, 60 फीसदी और 50 फीसदी योगदान होता है। इसलिए बजट में स्टार्ट अप्स और एसएमईज को बढ़ाने का खासा जोर दिया जाना चाहिए।
इस दिशा में सरकार को चार उपाय करने चाहिए। स्टार्ट-अप्स और एसएमईज लगाने वालों को सरलता से फंड और पूंजी मिलनी चाहिए। भारत में इस तरह की सुविधाएं केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं, जिन्हें समूचे देश के दूरदराज के इलाकों तक फैलाने की जरूरत है। दूसरी बड़ी जरूरत है कि देश में कारोबार करने को अधिकाधिक आसान बनाया जाए। उद्यमियों की सारी चिंताओं को समाप्त कर उनका कार्यक्षेत्र और डिजीटल इंडिया को गांवों में पहुंचना चाहिए।
इस दिशा में सरकार का तीसरा प्रयास यह होना चाहिए कि बुनियादी सुविधाओं की निरंतर बेहतरी सुनिश्चित की जाए। अगर भारत को डिजिटल बिजनेस वर्ल्ड में अपनी साख बनानी है तो इसके लिए सबसे पहली जरूरत है कि सरकार बेहतर बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराए। बजट में सार्वभौमिक वाईफाई सुविधा, निरंतर बिजली की आपूर्ति, क्वालिटी ब्रॉडबैंड और इंडस्ट्रियल कनेक्टिविटी ऐसी हो ताकि हमारी उत्पादकता और क्षमता में निरंतर वृद्धि हो सके।
अंतिम प्रयास कार्यशक्ति को सक्षम और सुप्रशिक्षित होना चाहिए। भारत सरकार का अनुमान है कि मेक इन इंडिया के तहत 24 प्रमुख कार्यक्षेत्रों में भारत को दस करोड़ 97 लाख और तीस हजार प्रशिक्षित कर्मियों की जरूरत होगी जबकि भारत की कुछ श्रम शक्ति का केवल 4.69 फीसदी हिस्सा ही प्रशिक्षित है। भारत के मुकाबले ब्रिटेन में 68 फीसदी, जर्मनी में 75 फीसदी, अमेरिका में 52 फीसदी, जापान में 80 फीसदी और दक्षिण कोरिया में 96 फीसद श्रमशक्ति प्रशिक्षित है।
इस कमी को पूरा करना हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। इसी तरह से भारत में उद्यमिता को विकसित करने की जरूरत है। देश में प्रतिवर्ष अनुमानत: दो करोड़ 61 लाख कुशल श्रमिकों की जरूरत होगी जिसके लिए साधन सुविधाएं जुटाना कोई सरल काम नहीं है। आम बजट में सरकार को इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान होगा।