वर्ष 2011-12 के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गुरुवार को विधानसभा में पेश किए गए बजट पर मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली है। सत्तारूढ़ भाजपा ने जहाँ इसे संतुलित, विकासोन्मुखी और उत्साहजनक बताया है, वहीं विपक्षी दलों ने इसकी जमकर आलोचना की है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बजट को संतुलित, विकासोन्मुखी और जनकल्याण से जुड़ा हुआ बताते हुए कहा है कि इसमें किसानों का पूरा-पूरा ख्याल रखा गया है और गरीबों के लिए पचास प्रतिशत राशि खर्च करने का प्रावधान है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने कहा कि इसमें गरीबों का सम्मान हुआ है और इसने भारतीय राज्यों में एक नया इतिहास रच दिया है। भाजपा महासचिव नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा है कि यह सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय तथा जनहितैषी बजट है तथा इसमें अंत्योदय कल्याण के संकल्प को दिशा देने के लिए मजबूत कदम उठाए गए हैं।
कांग्रेस विधायक दल के उपनेता चौधरी राकेश सिंह ने कहा कि राज्य सरकार का प्रस्तावित बजट घोर निराशाजनक है। भाजपा को दोबारा सत्ता में आए डेढ़ साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन उसने चुनाव घोषणा पत्र में किसानों को पचास हजार रुपए तक के कृषि ऋण माफ करने का वादा अब तक पूरा नहीं किया है।
कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक एन.पी. प्रजापति ने राज्य सरकार के बजट को ‘बिना रस की मौसम्बी’ बताया है। उन्होंने कहा कि इसमें केन्द्र सरकार द्वारा दिया गया ‘फंड’ निकाल दिया जाए, तो राज्य सरकार का कुछ नहीं बचता है।
कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक अजय सिंह ‘राहुल’ ने इसे घोर निराशाजनक बताते हुए कहा है कि यह किसान, कर्मचारी, मजदूर और आम आदमी विरोधी बजट है। उन्होंने कहा कि उम्मीद थी कि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों के लिए सरकार पाँच-पाँच लाख रुपए के मुआवजे का ऐलान करेगी, लेकिन उसने नष्ट हुई फसल और कर्ज के बोझ से दबे किसान पर कोई रहम नहीं दिखाया है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने कहा है कि यह अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अल्पसंख्यकों के मामले में पूरी तरह दिशाहीन बजट है। इसमें दूरदर्शिता का नितांत अभाव दिखाई देता है।
माकपा राज्य सचिव बादल सरोज ने इसे ‘विडंबना का बजट’ बताते हुए कहा है कि उद्योग घरानों के अनुदान में 59 प्रतिशत की रिकॉर्ड बढ़ोतरी के ऐलान वाले बजट में कर्ज में डूबे किसानों के लिए कुछ भी नहीं है। सरकार ने किसान की मौत के फंदे को और कसने का काम किया है। आधा बजट गरीबों पर खर्च करने का दावा केवल ‘लफ्फाजी’ है। इस बारे में उसमें कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है।
भोपाल चैम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष कैलाश अग्रवाल ने इसे राजनीतिक बजट बताते हुए कहा कि इसमें प्रदेश की तरक्की के बारे में कुछ नहीं है। उद्योग-व्यापार जगत को इससे निराशा हुई है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कामर्स के राजेन्द्र कोठारी ने कहा कि इसमें आम उपभोक्ता को राहत देने की पहल का अभाव है। यह बजट निरामय और निराश करने वाला है। (भाषा)