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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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Buddha Jayanti 2023 : भगवान बुद्ध की प्रेरक कहानियां

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Stories : महात्मा गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनके जीवन से जुड़े प्रेरक उपदेश और कई शिक्षाप्रद कहानियां (Buddha Ki Kahaniya and Updaesh) हैं, जो आपकी जिंदगी बदलने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने हमेशा जीवन को सुखी और सफल बनाने को लेकर कई बातें कहीं, उन बातों को हमें भी अपनाना चाहिए।

यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ीं शिक्षाप्रद कहानियां। 
 
1 कहानी : परिश्रम 
 
एक बार भगवान बुद्ध अपने अनुयायियों के साथ किसी गांव में उपदेश देने जा रहे थे। उस गांव से पूर्व ही मार्ग में उन लोगों को जगह-जगह बहुत सारे गड्ढे़ खुदे हुए मिले। बुद्ध के एक शिष्य ने उन गड्ढों को देखकर जिज्ञासा प्रकट की, आखिर इस तरह गड्ढे़ का खुदे होने का तात्पर्य क्या है?
 
बुद्ध बोले, पानी की तलाश में किसी व्यक्ति ने इतनें गड्ढे़ खोदे है। यदि वह धैर्यपूर्वक एक ही स्थान पर गड्ढे़ खोदता तो उसे पानी अवश्य मिल जाता, पर वह थोडी देर गड्ढ़ा खोदता और पानी न मिलने पर दूसरा गड्ढ़ा खोदना शुरू कर देता। व्यक्ति को परिश्रम करने के साथ धैर्य भी रखना चाहिए।
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2 कहानी : चक्षुपाल
 
एक बार भगवान बुद्ध जेतवन विहार में रह रहे थे, भिक्षु चक्षुपाल भगवान से मिलने के लिए आए थे। उनके आगमन के साथ उनकी दिनचर्या, व्यवहार और गुणों की चर्चा भी हुई। भिक्षु चक्षुपाल अंधे थे। एक दिन विहार के कुछ भिक्षुओं ने कुछ मरे हुए कीड़ों को चक्षुपाल की कुटी के बाहर पाया और उन्होंने चक्षुपाल की निंदा करनी शुरू कर दी कि उन्होंने इन जीवित प्राणियों की हत्या की।
 
भगवान बुद्ध ने निंदा कर रहे उन भिक्षुओं को बुलाया और पूछा कि क्या तुमने भिक्षु को कीड़े मारते हुए देखा है। उन्होंने उत्तर दिया- नहीं। इस पर भगवान बुद्ध ने उन साधकों से कहा कि जैसे तुमने उन्हें कीड़ों को मारते हुए नहीं देखा वैसे ही चक्षुपाल ने भी उन्हें मरते हुए नहीं देखा और उन्होंने कीड़ों को जान बूझकर नहीं मारा है इसलिए उनकी भर्त्सना करना उचित नहीं है।
 
भिक्षुओं ने इसके बाद पूछा कि चक्षुपाल अंधे क्यों हैं? उन्होंने इस जन्म में अथवा पिछले जन्म में क्या पाप किए। भगवान बुद्ध ने चक्षुपाल के बारे में कहा कि वे पूर्व जन्म में एक चिकित्सक थे। एक अंधी स्त्री ने उनसे वादा किया था कि यदि वे उसकी आंखें ठीक कर देंगे तो वह और उसका परिवार उनके दास बन जाएंगे। स्त्री की आंखें ठीक हो गईं। पर उसने दासी बनने के भय से यह मानने से इंकार कर दिया।
 
चिकित्सक को तो पता था कि उस स्त्री की आंखें ठीक हो गई हैं। वह झूठ बोल रही है। उसे सबक सिखाने के लिए या बदला लेने के लिए चक्षुपाल ने दूसरी दवा दी, उस दवा से महिला फिर अंधी हो गई। वह कितना ही रोई-पीटी, लेकिन चक्षुपाल जरा भी नहीं पसीजा। इस पाप के फलस्वरूप अगले जन्म में चिकित्सक को अंधा बनना पड़ा।
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3 कहानी : दान 
 
भगवान बुद्ध का जब पाटलिपुत्र में शुभागमन हुआ, तो हर व्यक्ति अपनी-अपनी सांपत्तिक स्थिति के अनुसार उन्हें उपहार देने की योजना बनाने लगा।
 
राजा बिंबिसार ने भी कीमती हीरे, मोती और रत्न उन्हें पेश किए। बुद्धदेव ने सबको एक हाथ से सहर्ष स्वीकार किया। इसके बाद मंत्रियों, सेठों, साहूकारों ने अपने-अपने उपहार उन्हें अर्पित किए और बुद्धदेव ने उन सबको एक हाथ से स्वीकार कर लिया।
 
इतने में एक बुढ़िया लाठी टेकते वहां आई। बुद्धदेव को प्रणाम कर वह बोली, ' भगवन्‌, जिस समय आपके आने का समाचार मुझे मिला, उस समय मैं यह अनार खा रही थी। मेरे पास कोई दूसरी चीज न होने के कारण मैं इस अधखाए फल को ही ले आई हूं। यदि आप मेरी इस तुच्छ भेंट स्वीकार करें, तो मैं अहोभाग्य समझूंगी।' भगवान बुद्ध ने दोनों हाथ सामने कर वह फल ग्रहण किया।
 
राजा बिंबिसार ने जब यह देखा तो उन्होंने बुद्धदेव से कहा, 'भगवन्‌, क्षमा करें! एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। हम सबने आपको कीमती और बड़े-बड़े उपहार दिए जिन्हें आपने एक हाथ से ग्रहण किया लेकिन इस बुढ़िया द्वारा दिए गए छोटे एवं जूठे फल को आपने दोनों हाथों से ग्रहण किया, ऐसा क्यों?'
 
यह सुन बुद्धदेव मुस्कराए और बोले, 'राजन्‌! आप सबने अवश्य बहुमूल्य उपहार दिए हैं किंतु यह सब आपकी संपत्ति का दसवां हिस्सा भी नहीं है। आपने यह दान दीनों और गरीबों की भलाई के लिए नहीं किया है इसलिए आपका यह दान 'सात्विक दान' की श्रेणी में नहीं आ सकता। इसके विपरीत इस बुढ़िया ने अपने मुंह का कौर ही मुझे दे डाला है। भले ही यह बुढ़िया निर्धन है लेकिन इसे संपत्ति की कोई लालसा नहीं है। यही कारण है कि इसका दान मैंने खुले हृदय से, दोनों हाथों से स्वीकार किया है।'
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4 कहानी : खेती
 
एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक किसान के यहां पहुंचे। तथागत को भिक्षा के लिए आया देखकर किसान उपेक्षा से बोला, श्रमण मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं। तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए और तब खाना खाना चाहिए।
 
बुद्ध ने कहा- महाराज! मैं भी खेती ही करता हूं...।
 
इस पर किसान को जिज्ञासा हुई और वह बोला- मैं न तो तुम्हारे पास हल देखता हूं ना बैल और ना ही खेती का स्थल। तब आप कैसे कहते हैं कि आप भी खेती ही करते हो। आप कृपया अपनी खेती के संबंध में समझाइएं।
 
बुद्ध ने कहा- महाराज! मेरे पास श्रद्धा का बीज, तपस्या रूपी वर्षा और प्रजा रूपी जोत और हल है... पापभीरूता का दंड है, विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पेनी है।
 
मैं वचन और कर्म में संयत रहता हूं। मैं अपनी इस खेती को बेकार घास से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काट लेने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं। अप्रमाद मेरा बैल हे जो बाधाएं देखकर भी पीछे मुंह नहीं मोडता है। वह मुझे सीधा शांति धाम तक ले जाता है। इस प्रकार मैं अमृत की खेती करता हूं।

5 कहानी : आम्रपाली
 
एक बार भगवान बुद्ध विचरते हुए वैशाली के वन-विहार में आए। नगर में उनके पहुंचने की खबर मिनटों में फैल गई और उनके दर्शन करने के लिए लोग वहां आने लगे। नगर के बड़े-बड़े श्रेष्ठिजन भी उनके दर्शन के लिए पहुंचे। हर किसी की इच्छा थी कि तथागत उसका निमंत्रण स्वीकार करें और उसके घर भोजन करने के लिए पधारें। 
 
आम्रपाली वैशाली की सबसे सुंदर और प्रतिष्ठित गणिका थी। वह भी बुद्धदेव के तपस्वी जीवन को देखकर प्रभावित हो चुकी थी तथा उसे अपने घृणित जीवन से घृणा हो चुकी थी। बस क्या था, वह भी बुद्धदेव के पास निमंत्रण देने पहुच गई। उसने तथागत को निमंत्रण दिया और उन्होंने उसका निमंत्रण स्वीकार कर उसके घर हो भी आए। 

बस क्या था, वह भी बुद्धदेव के पास निमंत्रण देने पहुच गई। उसने तथागत को निमंत्रण दिया और उन्होंने उसका निमंत्रण स्वीकार कर उसके घर हो भी आए। 
 
जब उनके शिष्यों को इस बात का पता चला तो उन्होंने बुरा मान कर उनसे स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने एक गणिका के घर जाकर बड़ा ही अनुचित कार्य किया है। अपने शिष्यों की बात सुनकर तथागत उन सबसे बोले, 'श्रावकों! आप लोगों को आश्चर्य है कि मैंने गणिका के घर कैसे भोजन किया। उसका कारण यह है कि वह यद्यपि गणिका है किंतु उसने अपने को पश्चाताप की अग्नि में जलाकर निर्मल कर लिया है।
 
जिस धन को पाने के लिए मनुष्य मनौतियां करता है और न जाने क्या-क्या तरीके इस्तेमाल करता है, उसी को आम्रपाली ने तुच्छ मानकर लात मारी है और अपना घृणित जीवन त्याग दिया है। ऐसे में मैं उसका निमंत्रण कैसे अस्वीकार कर सकता था। आप लोग स्वयं सोचे कि क्या अब भी उसे हेय माना जाए?'
 
गौतम बुद्ध की बात सुनकर सभी शिष्यों को महसूस हुआ कि बुद्धदेव तो सही बात कर रहे हैं। इसलिए उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने तथागत से क्षमा मांगी। तथागत ने भी अपने शिष्यों को माफ कर दिया।
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