Ram Setu Review राम सेतु फिल्म समीक्षा: हे राम, क्यों बनाते हैं ऐसी फिल्म

समय ताम्रकर
Ram Setu movie review in Hindi राम सेतु का निर्माण प्रकृति ने किया था या फिर भगवान श्रीराम ने, इस पर काफी बहस हुई थी और बात अदालत तक भी पहुंची थी। रामायण के अनुसार राम सेतु (Ram Setu movie review) वो पुल है जिसके जरिये श्रीराम, श्रीलंका में रावण से युद्ध करने और अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए गए थे। फिल्म 'राम सेतु' (Ram Setu movie review) इस बात को साबित करने के लिए बनाई गई है कि इसका निर्माण श्रीराम ने ही करवाया था। 


 
यह एक गंभीर विषय है, जो बहुत सारी रिसर्च मांगता है। फिर सवाल ये उठता है कि इस विषय पर फीचर फिल्म बनाई जाए या डॉक्यूमेंट्री? निर्देशक और लेखक अभिषेक शर्मा ने बीच का रास्ता चुना। डॉक्यूमेंट्री जैसा ज्ञान भी फिल्म (Ram Setu movie review) में डाला और फीचर फिल्म जैसा बनाने के लिए थ्रिलर का रूप भी दे डाला। नतीजा न फिल्म (Ram Setu movie review) इधर की रही न उधर की और बीच में लटक गई। 
 
फिल्म (Ram Setu movie review) की शुरुआत में कानूनी भाषा में लंबा-चौड़ा पैरा है, जिसके जरिये फिल्ममेकर ने अपने हाथ-पैर-मुंह सभी बचा लिए। मनोरंजन के नाम पर छूट ली गई है और यही पर 'राम सेतु' (Ram Setu movie review) पर संशय के बादल मंडराने लगते हैं। 
 
फिल्म (Ram Setu movie review) की शुरुआत हॉलीवुडनुमा फिल्मों की तरह की गई है। आर्यन कुलश्रेष्ठा (अक्षय कुमार) अफगानिस्तान में है क्योंकि तालिबानियों ने बुद्ध की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया है और यह पुरातत्वविद्‍ उस मामले में मदद के लिए वहां पहुंचा है। इस पूरे सीक्वेंस की कोई जरूरत नहीं थी। 
 
चूंकि अक्षय कुमार ने एक  पुरातत्वविद्‍ का रोल निभाया है इसलिए उनके बाल बड़े और बिखरे हुए हैं, आंखों पर चश्मा और सफेद दाढ़ी है। इस लुक में भी उनको स्मार्ट दिखाया जा सकता था, लेकिन उनका लुक बेहद खराब है और पूरी फिल्म में अखरता है। 
 
बहरहाल, आर्यन नास्तिक है और केवल सबूतों के आधार पर किसी बात पर विश्वास करता है। एक उद्योगपति अपने फायदे के लिए राम सेतु (Ram Setu movie review) को तोड़ना चाहता है, लेकिन करोड़ों लोगों की आस्था इससे जुड़ी है। आर्यन इस मामले में रिपोर्ट सरकार को देता है कि राम सेतु (Ram Setu movie review) का निर्माण श्रीराम ने नहीं करवाया है। लोग भड़क जाते हैं और बचाव में सरकार आर्यन को सस्पेंड कर देती है। 
 
वही उद्योगपति आर्यन से संपर्क करता है और उससे आग्रह करता है कि वह राम सेतु (Ram Setu movie review) के मामले डिटेल्ड रिपोर्ट उसको दे। वह रिसर्च के लिए आधुनिक तकनीक और टीम आर्यन को उपलब्ध कराता है। 
 
आर्यन जब बारीकी से इस बार में अध्ययन करता है तो उसे कई नई बातें पता चलती हैं और उसका सुर बदल जाता है। अब विलेन की एंट्री होती है जो आर्यन के पीछे लग जाते हैं। इधर आर्यन को महज तीन दिन में अपनी बात साबित करनी है कि राम सेतु का निर्माण राम ने करवाया था।   

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अभिषेक शर्मा ने राम सेतु (Ram Setu movie review) पर फिल्म बना कर नाप से बड़ा जूता पहन लिया है और पहले कदम में ही औंधे मुंह गिर पड़े हैं। राम सेतु (Ram Setu movie review) को लेकर जो रिसर्च और तर्क उन्होंने अपनी फिल्म में प्रस्तुत किए हैं वो दर्शकों के लिए बाउंसर हैं। इसके लिए इतने लंबे-लंबे संवाद रखे हैं कि आपको नींद आने लगती है। 
 
जो जागे हुए और सुन रहे हैं उन्हें भी समझ नहीं आता कि फिल्ममेकर क्या कहना चाह रहे हैं। इतनी टेक्नीकल बातें की गई हैं जैसे दर्शक इस विषय में पीएचडी हों। 
 
राम सेतु को श्रीराम ने बनवाया था इसको साबित करने के लिए अक्षय कुमार का किरदार जिस तरह से सबूत जुटाता है वो भी बिलकुल पल्ले नहीं पड़ता कि वह क्या कर रहा है? क्यों कर रहा है? कैसे कर रहा है? कहने का मतलब ये कि फिल्म से दर्शक जुड़ ही नहीं पाता, समझ नहीं पाता और इंतजार करता रहता है कि फिल्म कब खत्म हो। 
 
राम सेतु (Ram Setu movie review) के लिए आर्यन और उसके दो-तीन साथी महज तीन दिन में सारे सबूत जुटा लेते हैं। क्या ये मजाक है? जिस आसानी से उसे सारी बातें पता चलती है, गूढ़ संकेतों और भाषाओं के वो अर्थ समझता है, सुरंग में घुस जाता है, पहाड़ों की खाक छान लेता है, उससे कठिन तो शहरों में होने वाली ट्रेजर हंट प्रतियोगिता होती है। जब सारे काम इतनी आसानी से हो रहे हों तो रोमांच कैसा? 
 
अभिषेक शर्मा ने स्क्रिप्ट ऐसी लिखी है कि जो भी राम सेतु (Ram Setu movie review) से संबंधित बातें हैं वो समझ नहीं आती। हीरो क्या कर रहा है ये वो ही जानता है। थ्रिल पैदा करने वाले तत्व बोरिंग है। राम सेतु देखने के बाद राम सेतु के बारे में न तो आपने ज्ञान में इजाफा होता है और न ही मनोरंजन। 
 
क्लाइमैक्स में कोर्ट रूम ड्रामा है जो बेहद ही उबाऊ है। ऐसा लगता है कि राम सेतु पर कोई रिसर्च पेपर पढ़ रहा हो। 
 
निर्देशक के रूप में अभिषेक शर्मा निराश करते हैं। पूरी फिल्म (Ram Setu movie review) बिखरी हुई लगती है। बात कहने का तरीका उन्हें नहीं आया। राम सेतु के इर्दगिर्द जो कहानी उन्होंने बुनी वो बहुत बुरी है। एक बढ़िया विषय को उन्होंने बरबाद कर डाला। 
 
अक्षय कुमार निराश करते हैं। हर किरदार को वे अक्षय कुमार बना देते हैं। उनका लुक आंखों को चुभता है। वे नुसरत भरुचा के पति बने हैं, लेकिन पिता लगते हैं। 
 
फिल्म (Ram Setu movie review) में हीरोइनों के जिम्मे कुछ नहीं आया। वे सिर्फ अजीब सवाल पूछती हैं या सॉरी कहती हैं या हीरो मुसीबत में हो तो जोर-जोर से चिल्लाती हैं। नुसरत ने तो फिर भी जो सीन मिले अच्छे से किए, लेकिन जैकलीन फर्नांडिस की घटिया एक्टिंग जारी है।
 
दक्षिण भारतीय कलाकार सत्यदेव का अभिनय उम्दा है और उनके किरदार को अंत में अच्छा ट्विस्ट दिया गया है। नासर जैसे दिग्गज कलाकार के हाथों कुछ नहीं आया। प्रवेश राणा के खलनायकी तेवर उम्दा हैं। 
 
फिल्म (Ram Setu movie review) का बैकग्राउंड म्यूजिक शोर भरा है। सिनेमाटोग्राफी में थोड़ा कमाल देखने को मिलता है। एडिटिंग बहुत खराब है। 
 
कुल मिलाकर 'राम सेतु' (Ram Setu movie review) फिल्म दिवाली के उस फुस्सी बम की तरह है जिसमें न प्रकाश है और न आवाज। 
 

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