राज़ी : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
सत्तर बरस से ज्यादा हो गए बंटवारे को, लेकिन अभी भी फिल्मेमकर्स तथा कहानीकारों के पास भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और संबंध को लेकर बहुत कुछ कहने को है। मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म 'राज़ी' हरिंदर सिक्का की किताब 'कॉलिंग सेहमत' पर आधारित है और इसमें भी इसी तनाव की आग में जूझती एक जासूस लड़की की कहानी है।  
 
फिल्म 1971 में सेट है जब ईस्ट पाकिस्तान में मुजीबुर रहमान की गतिविधियों के कारण भारत-पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। तब दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली सेहमत खान (आलिया भट्ट) को पाकिस्तान जासूस बनाकर भेजा जाता है। सेहमत के पिता हिदायत खान (रजित कपूर) उसकी शादी पाकिस्तानी आर्मी ऑफिसर इकबाल सईद (विक्की कौशल) से करा देते हैं जिसके परिवार के अन्य लोग भी पाकिस्तानी आर्मी में हाई रेंक ऑफिसर्स हैं।
 
शादी के पहले सेहमत को ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है कि खून देख चक्कर खाने वाली सेहमत वक्त आने पर किसी इंसान को मारने से भी नहीं चूकती। पाकिस्तान जाकर सेहमत अपना काम शुरू कर देती है।
 
सेहमत से एक भारतीय ऑफिसर पूछता है कि तुम यह सब करने के लिए क्यों राजी हुईं? तो वह इसका जवाब देती है कि वह मुल्क और खुद को अलग करके नहीं देखती। वह खुद को ही मुल्क मानती है। यह संवाद सेहमत के किरदार को इतने ठोस तरीके से परिभाषित करता है कि दर्शकों को यकीन हो जाता है कि यह लड़की देश के लिए कुछ भी कर सकती है। 
 
शुरुआत के कुछ मिनटों में भारत-पाक के तनावपूर्ण रिश्ते, सेहमत की ट्रेनिंग और उसकी शादी दिखाई गई है। इसके बाद फिल्म पूरी तरह से सेहमत पर शिफ्ट हो जाती है। सेहमत के लिए यह सब आसान नहीं था। वह एक परिवार का हिस्सा होकर उनकी ही जासूसी करती है। उसके परिवार में रिश्ते बन जाते हैं। लगाव पैदा हो जाता है। सेहमत जानती हैं कि उसका पति, ससुर, जेठ सभी अपने मुल्क (पाकिस्तान) के लिए काम कर रहे हैं और वह अपने मुल्क (भारत) के लिए, इसलिए उसे किसी की गलती नजर नहीं आती। मोहब्बत से ज्यादा मान वे देश को देती है, लेकिन कहीं ना कहीं उसके दिल पर चोट भी लगती है कि वह अपने परिवार के साथ विश्वासघात कर उन्हें मुसीबत में डाल रही है।  
 
सेहमत के दिमाग में चल रही इस उथलपुथल को निर्देशक मेघना गुलज़ार ने बेहतरीन तरीके से दर्शाया है। उन्होंने पाकिस्तानियों को ऐसे पेश नहीं किया कि वे भारत या भारतीयों के खिलाफ खूब जुबां चला रहे हों। इसलिए वे विलेन नहीं लगते और इससे दर्शक सेहमत की मानसिक स्थिति को गहराई के साथ समझते हैं। 
 
'राज़ी' बताती है कि सरहद पर सेना के जवान तो अपना काम बखूबी कर रहे हैं, लेकिन कई गुमनाम एजेंट्स ऐसे काम कर जाते हैं जिनको वाहवाही भी नहीं मिलती। सेहमत अपने देश के लिए तन-मन-धन तक न्यौछावर कर देती है। सेहमत का जब राज खुलता है तो उसका पति पूछता है कि क्या वह कभी 'सच' भी थी। उसका इशारा उन अंतरंग क्षणों की ओर था कि क्या वह बिस्तर पर भी ड्यूटी निभा रही थी? सेहमत के पास इसका कोई जवाब नहीं होता। 
 
सेहमत को आखिर में अहसास होता है कि उसका जंग में सब कुछ लूट गया और उसे कोई फायदा नहीं हुआ। वह अपने बेटे को भारतीय सेना का हिस्सा बनाती है जिसका पिता पाकिस्तान सेना में था। इस तरह बातें जहां सोचने पर मजबूर करती हैं, कई तरह के सवाल पैदा करती हैं, वहीं स्पाय ड्रामा पूरी तरह बांध कर रखता है। 
 
फिल्म की कहानी और प्रस्तुतिकरण इतना सशक्त है कि आप फिल्म में डूबे रहते हैं। सेहमत के खुफिया जानकारी जुटाने वाले सीन इतने बेहतरीन तरीके से फिल्माए गए हैं कि आप पलक भी नहीं झपक सकते। भवानी अय्यर और मेघना गुलजार द्वारा लिखा गया स्क्रीनप्ले कई टर्न्स और ट्विस्ट्स लिए हुए है और फिल्म सरपट गति से भागती है। 
 
निर्देशक के रूप में मेघना गुलजार की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि इस जासूसी ड्रामे को उन्होंने रियल रखने की कोशिश की है। आमतौर पर फिल्मों में जिस तरह से जासूस का ग्लैमराइज्ड वर्जन दिखाया जाता है उससे यह फिल्म कोसों दूर है। मेघना ने फिल्म में बेहतरीन तरीके से थ्रिल पैदा किया है जिसे हम उनकी पिछली फिल्म 'तलवार' में भी देख चुके हैं। थ्रिल के साथ-साथ उन्होंने सेहमत के किरदार से दर्शकों को शानदार तरीके से कनेक्ट किया है जो कि आसान बात नहीं थी। 
 
फिल्म में एक-दो बातें खटकती भी हैं जैसे इतने भरे-पूरे परिवार में सेहमत सारा काम बहुत आसानी से करती है। खुफिया जानकारियों वाली फाइल को घर के लोग बड़ी आसानी से टेबल पर ही रख देते हैं। कॉम्बेट ट्रेनिंग लेने वाली सेहमत स्टूल पर चढ़ने में लड़खड़ाती है। लेकिन फिल्म की पकड़ इतनी मजबूत है कि दर्शकों का ध्यान ग‍लतियों पर नहीं जाता। 
 
एक और सवाल उठता है कि इतने हाई रेंक आर्मी ऑफिसर्स अपने परिवार की भारतीय बहू पर शक क्यों नहीं करते? दरअसल सेहमत अपनी मासूमियत से सभी का दिल जीत लेती हैं और जब तक वे उस पर शक करते वह अपना काम कर चुकी थी। 
 
आलिया भट्ट कई फिल्मों में दिखा चुकी हैं कि वे कितनी बेहतरीन एक्ट्रेस हैं। 'राज़ी' में वे अपने स्तर को और ऊंचा उठाती हैं। एक कठिन भूमिका को उन्होंने चैलेंज की तरह लिया और शानदार तरीके से अभिनीत किया। उन्होंने अपने किरदार को उतनी ही मासूमियत और मैच्योरिटी दी जितनी की जरूरत थी। कई दृश्यों में उनका अभिनय लाजवाब है। 
 
विक्की कौशल, जयदीप अहलावत, रजत कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ ज़कारिया, सोनी राज़दान, अमृता खानविलकर सहित सारे कलाकारों का अभिनय बेजोड़ है। सिनेमाटोग्राफी और सम्पादन शानदार है।  
 
राज़ी को जरूर देखा जाना चाहिए। 
 
बैनर : जंगली पिक्चर्स, धर्मा प्रोडक्शन्स
निर्माता : विनीत जैन, करण जौहर, हीरू यश जौहर, अपूर्वा मेहता 
निर्देशक : मेघना गुलज़ार 
संगीत : शंकर-एहसान-लॉय
कलाकार : आलिया भट्ट, विक्की कौशल, जयदीप अहलावत, रजत कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ ज़कारिया, सोनी राज़दान, अमृता खानविलकर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 20 मिनट 
रेटिंग : 4/5 
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