फोन भूत फिल्म समीक्षा: कैटरीना कैफ, सिद्धांत-ईशान की फिल्म में चुटकुले को बना दिया किस्सा

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 4 नवंबर 2022 (15:42 IST)
Phone Bhoot movie review: फोन भूत के मेकर्स फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी ने 'फुकरे' नामक फिल्म भी बनाई है। उसी तरह के निकम्मे और निठल्ले किस्म के दो किरदार फोन भूत (Phone Bhoot movie review) में भी नजर आते हैं। चूंकि फिल्म जवानी के दहलीज पर कदम रख रहे युवाओं को ध्यान में रख कर बनाई गई है इसलिए ये कैरेक्टर्स भी कम उम्र के हैं जो ईशान खट्टर और सिद्धांत चतुर्वेदी ने अभिनीत किए हैं। हॉरर प्लस कॉमेडी इन दिनों फैशन में है और फोन भूत (Phone Bhoot movie review) के दोनों कैरेक्टर्स मेजर (सिद्धांत चतुर्वेदी) और गुल्लू (ईशान) की भूतों और चुड़ैलों में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी है। 

 
फोन भूत (Phone Bhoot movie review) के राइटर्स रवि शंकरन और जसविंदर सिंह बठ ने इन दोनों किरदारों पर खासी मेहनत की है। ये किरदार फोन भूत (Phone Bhoot movie review) की शुरुआत से ही दर्शकों को दिलचस्प लगते हैं। दोनों की केमिस्ट्री भी जोरदार दिखाई देती है। भूतों में दिलचस्पी लेने वाले मेजर और गुल्लू की मुलाकात भूतनी रागिनी (कैटरीना कैफ) से होती है जो दोनों के साथ एक बिजनेस डील करती है। 
 
भूतिया घर में फोन बूथ (Phone Bhoot movie review) बनाया जाता है जिस पर भूतों से परेशान लोगों के फोन आते हैं जिनकी समस्या मेजर-गुल्लू-रागिनी की टीम मिल कर सुलझाती है। बदले में पैसे मिलते हैं। रागिनी का इसमें क्या फायदा? दरअसल रागिनी को इन दोनों से एक काम करवाना है। ये काम क्या है? रागिनी भूत कैसे बनी? इन सवालों के इर्दगिर्द फिल्म घूमती है। 
 
निर्देशक गुरमीत सिंह और फोन भूत (Phone Bhoot movie review) के राइटर्स का उद्देश्य स्पष्ट है, उन्हें यंगस्टर्स के लिए एक फिल्म बनाना है और उसी को ध्यान में रख उन्होंने फोन भूत (Phone Bhoot movie review) डिजाइन की है। फिल्म (Phone Bhoot movie review) के संवाद और सीन भी उसी तरह लिखे गए हैं जो युवाओं को पसंद आएंगे। निश्चित रूप से कई दृश्य जोरदार हैं और खूब हंसाते भी हैं, लेकिन पूरी फिल्म के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। 
 
फोन भूत (Phone Bhoot movie review) की कमजोरी इसकी कहानी है। इस मनगढ़ंत कहानी को और मजेदार बनाया जा सकता था। फोकस 'फन' पर इतना ज्यादा है कि कहानी खो सी जाती है। मूल बात पर वैल्यू एडिशन भारी हो गए हैं। 'फन' की आड़ में कई सवाल दब गए। 
 
फोन भूत (Phone Bhoot movie review) में सत्तर और अस्सी के दशक में बनने वाली हॉरर फिल्मों का मजाक बनाते हुए मजे लिए गए हैं। जैसे चुड़ैल के पैर उलटे होते हैं तो मेजर और गुल्लू उसे सीधे करने की कोशिश करते हैं। तांत्रिक बाबा नया एप्प बनवाना चाहता है। चौकीदार है तो लालटेन पकड़ा ही मिलेगा। रांका नामक पात्र भी उस दौर में बनने वाली हॉरर फिल्मों से उठाया गया है। 
 
फोन भूत (Phone Bhoot movie review) में कुछ पंच और संवाद जोरदार हैं। जैसे कैटरीना कैफ एक कैरेक्टर से कहती है कि तुम्हारी हिंदी कमजोर है, एक जगह भूत कहता है कि हम वर्क फ्रॉम होम नहीं कर सकते हैं। लगे हाथ विज्ञापन भी कर दिए गए और इनके लिए स्क्रिप्ट में इस तरह जगह बनाई गई कि ये फिल्म का ही हिस्सा लगते हैं। 
 
फोन भूत (Phone Bhoot movie review) में जहां-जहां वाइसओवर आता है, मजेदार है। खासतौर पर जब 'मध्यांतर' होता है तो वहां पर जो चंद लाइनें आती हैं वो आपके चेहरे पर मुस्कान ला देती है। फिल्म के संवाद बढ़िया हैं। 


 
निर्देशक गुरमीत सिंह की यंगस्टर्स की पल्स पर पकड़ है। कहानी को उन्होंने उसी तरह प्रस्तुत भी किया है, लेकिन स्क्रिप्ट कई बार उनका साथ छोड़ देती है। कलाकारों के साथ-साथ उन्होंने अपनी टेक्नीशियन्स से भी अच्छा काम लिया है और उनके निर्देशकीय कौशल के कारण ही कुछ सीक्वेंस मजेदार बने हैं, जैसे एक भूत भागते-भागते लाहौर पहुंच जाता है और बैक ग्राउंड में 'गदर' का गाना सुनाई देता है। 
 
फोन भूत (Phone Bhoot movie review) के सारे कलाकारों का अभिनय उम्दा है। सिद्धांत और ईशान की बात की जाए तो ईशान बेहतर रहे हैं, हालांकि सिद्धांत ज्यादा पीछे नहीं रहे हैं। कैटरीना कैफ ने भी अपना काम अच्छे से किया है। जैकी श्रॉफ भी जमे हैं और कहते हैं मैं हीरो (जैकी की पहली फिल्म) हूं जो 1983 से अभी तक जमा हुआ हूं। 
 
के.यू मोहनन की सिनेमाटोग्राफी और मनन अश्विन मेहता की एडिटिंग तारीफ के काबिल है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी थीम के अनुरूप है। 
 
फोन भूत (Phone Bhoot movie review) में चुटकुले को किस्सा बना दिया गया है, इस वजह से मामला कुछ ऐसा हुआ है जैसे शरबत में पानी ज्यादा मिला दिया गया हो। 

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