मिशन मंगल: फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
मिशन मंगल की पहली स्लाइड ही थोड़ा डरा देती है जिसमें लिखा है यह फिल्म मंगल मिशन अभियान पर आधारित है, लेकिन मनोरंजन के लिए कल्पना का सहारा लिया गया है। अब यह मनोरंजन की आड़ में पतली गली कब हाईवे बन जाए कहा नहीं जा सकता। 
 
फिल्म मिशन मंगल बहुत जल्दी मनोरंजन के हाईवे पर आ जाती है और तुरंत समझ आ जाता है कि लेखक और निर्देशक का फोकस तो दर्शकों को एंटरटेन करना है और मिशन मंगल तो बस पुछल्ला है जो सिर्फ जोड़ दिया गया है। दु:ख इस बात का है कि मंगल पर यान भेजने की भारत की ऐतिहासिक सफलता को बहुत ही 'फिल्मी' तरीके से पेश किया गया है। 
 
नवंबर 2013 में मंगलयान लांच किया गया था और एक साल से भी कम समय में इस हल्के-फुल्के सैटेलाइट ने मंगल की ऑर्बिट में प्रवेश कर इतिहास बना दिया था। यूएस, चीन और रशिया ने इस प्रोजेक्ट्स पर करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन भारत ने केवल सात रुपये प्रति किलोमीटर की दर में यह काम कर दिखाया और वो भी पहली बार के प्रयास में। 
 
इस ऐतिहासिक सफलता पर जरूर फिल्म बनना चाहिए, लेकिन लेखक और निर्देशक में इतना माद्दा होना चाहिए कि वे इस विषय के साथ न्याय कर सकें। यदि ऐसा नहीं होगा तो 'मिशन मंगल' जैसी फिल्म ही सामने आएगी। 
 
राकेश धवन (अक्षय कुमार) का एक मिशन तारा शिंदे (विद्या बालन) के कारण असफल हो जाता है। 'मार्स डिपार्टमेंट' में उसका ट्रांसफर हो जाता है क्योंकि इस डिपार्टमेंट में कोई नहीं है। सभी का मानना है कि मार्स तक पहुंचना असंभव है। राकेश के डिपार्टमेंट में तारा भी आ जाती है। 
 
इसरो के डायरेक्टर को राकेश मिशन मार्स के लिए मना लेता है। बहुत कम बजट मिलता है। बी-ग्रेड टीम दी जाती है। सामने एक विलेन खड़ा कर दिया जाता है। एक्स नासा साइंटिस्ट रुपर्ट देसाई (दलीप ताहिल) का काम है इन अंडरडॉग्स की क्षमता पर हमेशा शक करना। इस कहानी के इर्दगिर्द बड़ी कामयाबी को दिखाया गया है। 
 
दरअसल निर्देशक जगन शक्ति और उनकी टीम इस बात से घबरा गई कि विषय थोड़ा टेढ़ा है। कहीं दर्शकों के लिए रॉकेट साइंस न बन जाए। लिहाजा फिल्म में मनोरंजन डालना चाहिए, लेकिन आटे में नमक डालने के बजाय नमक में उन्होंने आटा मिला दिया। 
 
आम जीवन में कोई इलेक्ट्रॉनिक आइटम ठीक से काम नहीं करता तो हम अवैज्ञानिक लोग उसे रिस्टार्ट कर लेते हैं और यह तरकीब कई बार काम भी कर जाती है, लेकिन मार्स भेजा गया यान सिग्नल नहीं भेज रहा हो तो फिल्म में दिखाए वैज्ञानिक सारा सिस्टम ऑफ कर ऑन करते हैं और सब कुछ ठीक हो जाता है तो इस बात पर सिर ही पीटा जा सकता है। यह उन मेहनती वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा को धूमिल करता है कि वे भी ऐसे अवैज्ञानिक तरीकों से काम करते हैं। 
 
फिल्म की लंबाई को बढ़ाने के लिए कुछ अनावश्यक बातें भी डाल दी गई हैं। जैसे मुस्लिम लड़की को कोई किराये से मकान नहीं देता। यह बात फिल्म में फिट नहीं बैठती। 
 
महिला सशक्तिकरण का यह मतलब भी नहीं है कि महिलाओं को पुरुष हीरो की तरह फाइट करते या गालियां बकते हुए दिखाया जाए। फिल्म में एक सीन में सोनाक्षी सिन्हा ट्रेन में गुंडों की पिटाई करती है और अक्षय कुमार देखते रहते हैं। अब इस तरह के दृश्यों का क्या मतलब? 
 
इस मिशन की सफलता के पीछे महिलाओं का बड़ा हाथ था, लेकिन यहां पर महिलाओं को 'टिपीकल' तरीके से पेश किया गया है और यह बात उभर कर सामने नहीं आती। 
 
शरमन जोशी का किरदार तो बेहूदा है। मंगल मिशन पर काम करने वाला वैज्ञानिक अपने कुंडली के मंगल से डरता है। ऐसा अंधविश्वासी भला वैज्ञानिक कैसे हो सकता है? 
 
मंगल यान किस तरीके से पृथ्‍वी से मंगल तक पहुंचेगा इस बात को आसानी से समझाया गया है और इसके लिए तारीफ की जा सकती है कि विज्ञान से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाला दर्शक भी बात को समझ सकता है। 
 
कमजोर स्क्रिप्ट के बावजूद निर्देशक जगन शक्ति ने अपना काम ठीक से किया है। उन्होंने दर्शकों को फिल्म से जोड़े रखा है। कुछ सीन उन्होंने अच्छे से फिल्माए हैं जैसे कि विद्या अपने साथियों के अंदर के वैज्ञानिकों को जगाने की कोशिश करती है। इसी तरह फिल्म के क्लाइमैक्स में उन्होंने अच्‍छा-खासा रोमांच पैदा किया है।  
 
अक्षय कुमार के साहस की तारीफ की जानी चाहिए कि एक बड़े स्टार होने के बावजूद उन्होंने 'मिशन मंगल' फिल्म की जिसमें हीरोइनों को ज्यादा प्रमुखता दी गई। हालांकि वे वैज्ञानिक कम और अक्षय ज्यादा लगते हैं। 
 
घर और ऑफिस में दोहरी जिम्मेदारी निभाने वाली महिला के रूप में विद्या बालन का अभिनय शानदार है। कलाकारों की भीड़ में उनकी चमक अलग ही नजर आती है। 
 
तापसी पन्नू और कीर्ति कुल्हारी में जितना टैलेंट हैं उतना मौका उन्हें फिल्म में नहीं मिला। सोनाक्षी सिन्हा और शरमन जोशी ने अपना काम ठीक से किया है। दलीप ताहिल कैरीकेचर लगे हैं और इसमें उनका दोष कम और निर्देशक का ज्यादा है। 
 
कुल मिलाकर 'मिशन मंगल' सब मंगल नहीं है।  
 
बैनर : केप ऑफ गुड फिल्म्स, फॉक्स स्टार स्टूडियोज़, होप प्रोडक्शन्स
निर्माता : आर बाल्की, अक्षय कुमार 
निर्देशक : जगन शक्ति 
संगीत : अमित त्रिवेदी 
कलाकार : अक्षय कुमार, विद्या बालन, तापसी पन्नू, सोनाक्षी सिन्हा, कीर्ति कुल्हारी, शरमन जोशी, नित्या मेनन, दलीप ताहिल, विक्रम गोखले 
सेंसर सर्टिफिकेट : यू* 2 घंटे 13 मिनट 
रेटिंग : 2/5 

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