कल्कि 2898 एडी फिल्म समीक्षा: अमिताभ बच्चन पड़े प्रभास पर भारी

समय ताम्रकर
गुरुवार, 27 जून 2024 (14:44 IST)
महाभारत का पात्र अश्वत्थामा और वर्ष 2898 के दौर को जोड़ना एक बेहतरीन आइडिया है जिस पर नाग अश्विन ने 'कल्कि 2898 एडी' फिल्म बनाई है। महाभारत के पात्र यूं भी लोगों के मन में रचे बसे हैं, जिसमें से अश्वत्थामा के इर्दगिर्द खासा रहस्य है। श्रीकृष्ण ने श्राप दिया था कि उसे कभी मौत नहीं आएगी और वह मौत के लिए तरसेगा। इस पर अश्वत्थामा प्रायश्चित की बात करता है तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान का कल्कि अवतार जब जन्म लेने वाला होगा तब अश्वत्थामा को उसकी रक्षा करनी होगी। 
 
इस आइडिए पर फिल्म बना कर निर्देशक नाग अश्विन ने दो तरह के दर्शक वर्ग को जोड़ने की कोशिश की है। एक तो युवा वर्ग है जिसे फ्यूचरिस्टिक मूवी देखने में मजा आता है कि 2898 के दौर में टेक्नोलॉजी किस स्तर तक पहुंच जाएगी और दूसरा उम्रदराज दर्शक वर्ग जिसे महाभारत और उसके पात्रों में बेहद रूचि है। 
 
फिल्म में वर्ष 2898 का काशी दिखाया गया है। गंगा निर्जल हो गई है, हवा में जहर घुल चुका है। गरीब लोगों की हालत बहुत बुरी है और एक सेब के पीछे वे एक-दूसरे को नोच लेते हैं तो दूसरी ओर अमीर वर्ग है जिनकी दुनिया रंगीन है लेकिन वहां गरीबों के लिए 'नो एंट्री' है।  
 
भैरव (प्रभास) एक बाउंटी हंटर है जिसका सपना है कि किसी तरह उसे अमीरों की दुनिया में एंट्री मिल जाए। सुमति (दीपिका पादुकोण) अमीरों की जेल से भाग खड़ी होती है। उस पर करोड़ों का इनाम है और भैरव को लगता है कि सुमति को पकड़ कर वह अपने सपने को पूरा कर सकता है, लेकिन राह में अश्वत्थामा (अमिताभ बच्चन) खड़ा हो जाता है। अब किसका क्या कनेक्शन है, इसके कुछ जवाब इस मूवी में मिलते हैं और कुछ के लिए अगले भाग का इंतजार करना होगा। 


 
फिल्म की स्टार कास्ट, बजट और स्पेशल इफेक्ट्स रिलीज के पहले ही फिल्म के प्रति दर्शकों की उम्मीद में इजाफा करते हैं और उम्मीद पहले हाफ में बुरी तरह धराशाई हो जाती है। फिल्म का पहला हाफ बेहद स्लो और बोरिंग है। नींद न आने की शिकायत करने वालों की समस्या भी दूर हो जाती है। ऐसा लगता है कि क्या चल रहा है, निर्देशक क्या दिखाना चाहता है, कहानी से कोई कनेक्शन ही नहीं बन पाता। कई तरह के सवाल खड़े होते हैं। 
 
नाग अश्विन ने कहानी के लिए बेस बनाने में बहुत ज्यादा समय लिया है। बिना कहानी आगे बढ़ाए उन्होंने एंटरटेनिंग सीक्वेंसेस के जरिये दर्शकों को उलझाने की कोशिश की है, लेकिन ये सीन इतने लंबे और उबाऊ हैं कि मनोरंजन दूर-दूर तक नहीं होता। यहां तक की प्रभास के स्टारडम का जादू भी नहीं चल पाता। 
 
यहां फ्यूचरिस्टिक फिल्म देखने का मजा भी नहीं मिलता क्योंकि शहर नए जमाने का नहीं बल्कि आज के दौर से 500 साल पुराना सा लगता है। चारों ओर भंगार नजर आता है। बीच-बीच में कुछ इंस्ट्रमेंट्स ऐसे नजर आते हैं जो नए दौर के लगते हैं, लेकिन ये खास असर नहीं छोड़ते। 
 
प्रभास और दीपिका को स्क्रीन पर लाने में नाग अश्विन ने बहुत वक्त लिया है और दर्शकों के धैर्य की परीक्षा ले ली है। 
 
लगभग सवा घंटे तक दर्शकों को यही लगता है कि वे कहां आ फंसे है और ये किस तरह की फिल्म है। इंटरवल होने के कुछ मिनटों पहले अश्वत्थामा बने बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की एंट्री होती है और इसके बाद फिल्म का स्तर रॉकेट की तरह ऊपर की ओर ओर जाता है। 
 
इंटरवल दर्शकों में यह फील जगाने में कामयाब होता है कि अब आगे कुछ धांसू होने वाला है। फिल्म का सेकंड हाफ लाजवाब है और दर्शकों को वो चीज देता है जिसके लिए उन्होंने टिकट खरीदा है। सेकंड हाफ में निर्देशक कहानी के बिखरे हुए डॉट्स कनेक्ट कर चौंकाते हैं। ड्रामे में जान आती है। एक्शन दृश्य रोमांच पैदा करते हैं। कई बढ़िया सीन देखने को मिलते हैं और अमिताभ और प्रभास के बीच की फाइटिंग लाजवाब है। 

 
अश्वत्थामा के किरदार के कारण फिल्म दर्शकों को कनेक्ट करती है। महाभारत के युद्ध को लेकर उसकी बातें और भगवान के अवतार को जन्म देने वाली मां की रक्षा के लिए उसकी कटिबद्धता रोमांच पैदा करती है। बूढ़े अश्वत्थामा की हजारों हाथियों वाली ताकत जोश जगाती है। 
 
सेकंड हाफ देख लगता ही नहीं कि इस मूवी को एक ही डायरेक्टर ने डायरेक्ट किया है। सेकंड हाफ में ब्लॉकबस्टर मूवी वाले सारे तत्व नजर आते हैं। नाग ने सेकंड हाफ में फिल्म को इतना तेज रखा है कि ज्यादा सोचने का समय नहीं मिलता। 
 
नाग अश्विन ने निर्देशन के साथ-साथ स्टोरी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग भी लिखे हैं। फिल्म देखते समय कुछ सवाल परेशान करते हैं, जैसे- दीपिका के किरदार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है। सुप्रीम (कमल हासन) की क्या इच्छा है? वह आखिर है कौन? सुमति के होने वाले बच्चे का पिता कौन है? महिलाओं को सीडिंग के जरिये कैसे प्रेग्नेंट किया जा रहा है? संतुष्ट करने वाले जवाब स्क्रीनप्ले के जरिये नहीं मिलते। संभव है कि दूसरे भाग में जवाब मिले क्योंकि दूसरे भाग के प्रति दिलचस्पी जगाने में नाग कामयाब रहे है। यदि आपने पहला पार्ट देखा है तो दूसरा भी जरूर देखेंगे। 
 
प्रभास के किरदार में ट्विस्ट है, इस रहस्य से परदा फिल्म के अंतिम क्षणों में उठता है और दिल यहां रोमांचित हो जाता है और दिमाग की इस बात को खारिज करता है कि ये कैसे संभव है? इस बात का खुलासा भी दूसरे भाग में ही होगा। 
 
निर्देशक के रूप में फर्स्ट हाफ के लिए नाग अश्विन के नंबर काटे जा सकते हैं, हालांकि दूसरे हाफ में उन्होंने खासी भरपाई की है। उन्होंने प्रस्तुतिकरण के लिए कई हॉलीवुड फिल्मों से आइडिए उधार लिए हैं, लेकिन इस बात की तारीफ की जा सकती है कि उन्होंने कई सीक्वेंसेस ऐसे रचे हैं जो हॉलीवुड मूवी को टक्कर देते हैं। 
 
एक साई-फाई फिल्म में इंडियन माइथोलॉजी को जोड़ने वाला आइडिया जबरदस्त है, हालांकि हम यह रणबीर कपूर की फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' में भी देख चुके हैं। राइटर के रूप में नाग फर्स्ट हाफ को एंटरटेनिंग बनाने में असफल रहे हैं। 
 
फिल्म के विज्युअल्स शानदार है और टेक्नीकल टीम की मेहनत इसमें झलकती है। 
 
लीड रोल में प्रभास औसत से ऊपर रहे। एक्शन सीक्वेंस में जमे, लेकिन कॉमिक सीन में कमजोर रहे। दीपिका पादुकोण के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं था और एक ही एक्सप्रेशन लिए वे नजर आईं। 
 
अमिताभ बच्चन ने अपने रोल में प्राण फूंक दिए और उनकी एंट्री के बाद ही फिल्म में भी जान आती है। दिशा पाटनी को मात्र एक ही एक्शन सीक्वेंस करने को मिला। 
 
कमल हासन का रोल शायद दूसरे भाग में ज्यादा दिखाई देगा। शाश्वत चटर्जी अच्छे कलाकार हैं, लेकिन जो रोल उन्हें मिला है उसमें मिसफिट लगे। 
 
मृणाल ठाकुर, विजय देवरकोंडा, दुलकर सलमान जैसे कई दक्षिण भारतीय दिग्गज कलाकारों ने छोटे-छोटे रोल किए हैं। 
 
रामगोपाल वर्मा और एसएस राजामौली कैमियो में दिखाई दिए। राजामौली और प्रभास की नोकझोक दक्षिण भारतीय दर्शकों को बेहद पसंद आएगी। इसी तरह प्रभास का संवाद बोलना कि मेरे फैंस रेबेल हैं, साउथ में तूफान मचा देगा। 
 
कल्कि 2898 एडी में बोरिंग फर्स्ट हाफ की कीमत चुकाने के लिए आप तैयार हों तभी सेकंड हाफ का मजा उठा सकते हैं। सेकंड पार्ट का इंतजार रहेगा। 

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