Jawan Movie Review शाहरुख खान के स्टारडम की लहर पर सवार जवान | फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
Jawan Movie Review: बॉलीवुड में अक्सर चर्चा चलती है कि हिंदी फिल्मों का स्टार और दक्षिण भारत के डायरेक्टर को मिल कर फिल्म बनाना चाहिए क्योंकि कमर्शियल फिल्म बनाने में साउथ फिल्ममेकर आगे हैं। वे पुरानी कहानी को भी इस तरह से पेश करते हैं कि दर्शक झूम उठते हैं। शाहरुख खान की कंपनी रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट ने साउथ फिल्ममेकर एटली के साथ हाथ मिलाया और 'जवान' के रूप में रिजल्ट सामने आया। हीरोइन नयनतारा, विलेन विजय सेतुपति सहित ज्यादातर क्रू मेंबर्स साउथ फिल्म इंडस्ट्री से हैं जिन्होंने बॉलीवुड के स्टार शाहरुख खान के साथ इस मूवी में काम किया है। 
 
लोग बातचीत करते हैं कि अरबो-खरबों रुपये बैंक से लोन लेकर नहीं चुकाने के बावजूद उद्योगपतियों का कुछ नहीं बिगड़ता, जबकि चंद हजार रुपये के लिए किसान को इतना मजबूर कर दिया जाता है कि वह आत्महत्या कर लेता है। स्वास्थ्य मंत्री बीमार होने पर कभी भी अपना इलाज क्यों सरकारी अस्पताल में नहीं करवाता? इन बातों के इर्दगिर्द 'जवान' की कहानी चुनी गई है। 
 
ये बातें नई नहीं हैं, कई फिल्मों के जरिये उठाई गई है, लेकिन एटली और एस रमनगिरीवासन ने स्क्रीनप्ले कुछ ऐसा लिखा है कि दोहराई गई बातें फिर अच्छी लगती है। स्क्रीनप्ले में रोमांस, इमोशन, बदला और एक्शन को इस तरह से जोड़ा गया है कि एक के बाद एक कर लगातार बढ़िया सीन आते रहते हैं जो दर्शकों का मनोरंजन करते रहते हैं।
 
पुलिस ऑफिसर आजाद (शाहरुख खान) समाज में फैले भ्रष्टाचार से तंग है क्योंकि शोषित लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। वह न्याय दिलाने के लिए गलत रास्ता जरूर चुनता है, लेकिन इसके लिए वह आम आदमी में लोकप्रिय हो जाता है। उसकी एक गैंग है जिसमें कई महिलाएं हैं जो आधुनिक तकनीक से लैस होकर किसी सैनिक की भांति लड़ती हैं। 

 
आजाद भेष बदल कर विक्रम राठौर का नाम लेकर यह काम करता है और पुलिस ऑफिसर नर्मदा (नयनतारा) को विक्रम को पकड़ने का जिम्मा दिया जाता है। विक्रम राठौर का नाम आजाद क्यों उपयोग करता है? आर्म्स डीलर काली गायकवाड़ (विजय सेतुपति) से विक्रम का क्या कनेक्शन है? जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है ये राज खुलते जाते हैं।
 
एटली ने फिल्म को तेजी से दौड़ाया है और किसी भी बात को ज्यादा खींचा नहीं है। उन्होंने सस्पेंस पर से परदा उठाने में ज्यादा देर नहीं लगाई है और एक के बाद एक प्रसंगों को पेश किया है। फिल्म देखते समय 'गब्बर इज़ बैक सहित कई फिल्में आपको याद आएंगी। अस्सी के दशक की फिल्मों या अमिताभ बच्चन जब अपने शिखर पर थे तब इसी तरह की कहानियां फिल्मों में हुआ करती थी, लेकिन निर्देशक एटली का ट्रीटमेंट और एक्ज़ीक्यूशन 'जवान' को अलग खड़ा करता है। 
 
किसानों की आत्महत्या वाला प्रसंग भावुक करता है, तो स्वास्थ्य मंत्री वाले प्रसंग में हंसी और गुस्सा साथ में आता है। आजाद की प्रेम कहानी में एक बच्ची का खूबसूरत उपयोग किया गया है। इस लव स्टोरी को और ज्यादा फुटेज दिए जाने थे क्योंकि इसमें जबरदस्त रोमांच की संभावना थी। 
 
इंटरवल के पहले एक विक्रम राठौर की एंट्री रोमांच पैदा कर देती है और विक्रम का एक्शन सीक्वेंस फिल्म का बेस्ट एक्शन सीक्वेंस है। बैकग्राउंड म्यूजिक और इस किरदार का एटीट्यूड देखने लायक है।
 
लड़कियों और महिलाओं में शाहरुख खान बेहद लोकप्रिय हैं, इसलिए शाहरुख खान की गैंग का हिस्सा लड़कियों को बना कर एटली ने फिल्म की अपील को बढ़ाया है। शाहरुख का एक पॉवरफुल सीन भी है जिसमे वे कहते हैं कि आप एक पेन खरीदते समय कई तरह के सवाल करते हैं तो वोट देते समय उम्मीदवार से भी पूछिए कि वो हमारे लिए क्या कर सकता है तभी उसे वोट दीजिए। 

 
निर्देशक के रूप में एटली इसलिए प्रभावित करते हैं कि दर्शकों को वे ज्यादा सोचने का समय नहीं देते हैं। तेजी से वे अपनी बात कहते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। सामान्य दृश्यों को भी उन्होंने लार्जर स्केल पर दिखाया है लेकिन ये सीन इतने एंटरटेनिंग है कि एटली द्वारा जरूरत से ज्यादा सिनेमैटिक लिबर्टी लेने वाली बात पीछे छूट जाती है। 
 
दक्षिण फिल्ममेकर मसाला फिल्म बनाने में क्यों आगे है, ये एटली के काम में नजर आता है। उन्होंने समय-समय पर इमोशन पैदा किया है, ठीक जगह गाने रखे हैं। फिल्म एक्शन पर सवार है लेकिन एटली 'मास मोमेंट्स' क्रिएट करने में भी सफल रहे हैं। इंटरवल के बाद फिल्म का ग्राफ कुछ मिनटों के लिए नीचे आता है, लेकिन गाड़ी को पटरी पर आने में ज्यादा देर नहीं लगती। 
 
शाहरुख खान फुल फॉर्म में नजर आए। उनके अलग-अलग लुक्स, एटीट्यूड, डायलॉग डिलीवरी उनके स्टारडम को उभारते हैं। शाहरुख के सारे प्लस पाइंट्स को निर्देशक एटली ने पेश किया है और पूरी फिल्म में शाहरुख का दबदबा नजर आता है।
 
नयनतारा बेहद खूबसूरत नजर आईं और शाहरुख के साथ उनकी केमिस्ट्री अच्छी लगती है। उनके किरदार के तीखे तेवर नयनारा के अभिनय में नजर आते हैं और एक्शन सीन भी उन्होंने सफाई के साथ किए। 
 
विजय सेतुपति विलेन के रूप में अपनी छाप छोड़ते हैं। वे प्यारे विलेन हैं लेकिन अपनी एक्टिंग के जरिये किरदार को वे इस तरह से पेश करते हैं कि दर्शक उन पर कोई रहम नहीं करना चाहते। उनकी डायलॉग डिलेवरी अलग ही किस्म की है। 
 
दीपिका पादुकोण और संजय दत्त स्पेशल अपियरेंस में फिल्म की स्टार वैल्यू में इजाफा करते हैं। दूसरे कलाकारों को ज्यादा अवसर नहीं मिले जिससे प्रियमणि, सान्या मल्होत्रा, सुनील ग्रोवर जैसे कलाकार भी साइडलाइन पर खड़े दिखाई देते हैं। 
 
अनिरुद्ध द्वारा संगीतबद्ध एक-दो गीत ठीक हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म की अपील को बढ़ाता है। सिनेमाटोग्राफी लाजवाब है। एडिटिंग शानदार है और प्रोडक्शन वैल्यू रिच है। टेक्नीकल डिपार्टमेंट्स का काम ऊंचे दर्जे का है।  
 
जिस मासी और पैन इंडिया सिनेमा की बात होती है उस अपील को जवान ज्यादातर समय उचित ठहराती है।  
 

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