भूत पुलिस : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
शनिवार, 11 सितम्बर 2021 (12:56 IST)
स्त्री के बाद हॉरर-कॉमेडी फिल्मों का चलन बढ़ा है और भूत पुलिस इसी जॉनर में अगली फिल्म है। हॉरर फिल्में तर्क के परे होती हैं। विज्ञान ये बातें नहीं मानता, लेकिन अंधविश्वास की घुसपैठ गहरी है। इसलिए हॉरर फिल्में मात्र मनोरंजन के लिए देखी जाती हैं। 'भूत पुलिस' भी मनोरंजन के लिए बनाई गई है जो दो नावों की सवारी करती है। एक तरफ यह भूत-प्रेत को मात्र वहम मानती है तो दूसरी ओर इस बात पर भी कायम रहती है कि इनका असित्तव है। 
 
कहानी दो तांत्रिक बाबाओं विभूति (सैफ अली खान) और चिरौंजी (अर्जुन कपूर) की है। ये गंदे-संदे तांत्रिक बाबा नहीं है जैसा कि फिल्मों में आमतौर पर दिखाया जाता है। ये बाबा लेदर जैकेट पहनते हैं, मोबाइल पर 'नागिन' देखते हैं, वर्कआउट करते हैं, फिट और हैंडसम नजर आते हैं। इनके पिता भी तांत्रिक थे जो तंत्र-मंत्र की एक किताब अपने पीछे छोड़ गए। बस ही इनका घर है, जिसमें सारी सुविधा मौजूद हैं। गमले तक लगे हुए हैं। 
 
सोच-विचार दोनों भाइयों की जुदा है। विभूति का मकसद पैसे और हवस है। दुनिया से मिली ठोकर के कारण वह चलता-पुर्जा हो गया है। वह जानता है कि जब तक अंधविश्वास रहेगा तब तक उसका मीटर डाउन रहेगा। इस बात से वह अंजान नहीं है कि वह ढोंगी बाबा है और भूत-प्रेत मात्र लोगों का वहम है। 
 
दूसरी ओर चिरौंजी को तंत्र-मंत्र पर विश्वास पर है। मासूमियत अभी भी उसमें कायम है। अपने पिता द्वारा छोड़ी गई किताब पर यकीन है। लालच और दूसरी बुराइयों से वह दूर है। सोच के रास्ते अलग होने के बाद भी दोनों भाइयों में खूब प्रेम है।
 
माया (यामी गौतम) एक दिन दोनों भाइयों को ढूंढते हुए पहुंचती है। उसका कहना कि जिस गांव में उसकी चाय की फैक्ट्री है वहां एक बुरी आत्मा का साया है जिससे गांव वाले दहशत में हैं। बरसो पहले विभूति और चिरौंजी के पिता ने इसी गांव को एक बुरी आत्मा से मुक्ति  दिलावाई थी इसलिए माया को दोनों भाइयों से उम्मीद है कि वे भी अपने पिता की तरह ऐसा कर सकेंगे। माया की बहन कनिका (जैकलीन फर्नांडिस) मॉडर्न किस्म की है, ठंड में छोटे कपड़े पहन कर घूमती है और भूत-प्रेत तंत्र-मंत्र परा जरा भी विश्वास नहीं है।  
 
विभूति और चिरौंजी उस गांव में पहुंचते हैं। विभूति मामले को लंबा खींचना चाहता है ताकि दोनों बहनों से खूब माल कमाया जाए, लेकिन चिरौंजी इस बुरी आत्मा को वश में कर गांव को भय मुक्त कराना चाहता है। क्या सचमुच में कोई आत्मा है? इसके इर्दगिर्द कहानी घूमती है। 
 
फिल्म की सेटिंग, आइडिया और विभूति-चिरोंजी के किरदार ध्यान आकर्षित करते हैं। दोनों तांत्रिकों का लुक, गेटअप, लाइफस्टाइल में अनोखी बात नजर आती है। सैफ और अर्जुन का भाईचारा भी फिल्म का प्लस पाइंट है। दोनों कलाकारों की बांडिंग नजर आती है जिससे फिल्म में रूचि बनी रहती है। 
 
फिल्म पिछड़ती है लेखन के क्षेत्र में। एक अच्छी कहानी को और मनोरंजक बनाया जा सकता था। कुछ पंच इसमें मिसिंग लगते हैं जिससे फिल्म कहीं-कहीं सपाट हो जाती है। 
 
निर्देशक और लेखक ने रहस्य को अंत तक बरकरार रखने की पूरी कोशिश की है, लेकिन होशियार दर्शक बहुत जल्दी ही इसे सूंघ लेते हैं। बुरी आत्मा की जो कहानी है वो दमदार नहीं है और मूल कहानी से इसका जोड़ मजबूत नहीं है। फिल्म में कुछ अच्छे वनलाइनर्स और सीन भी हैं जो हंसाते और डराते भी हैं। एक जगह सारे तांत्रिकों का इकट्ठा होने वाला सीन भी अच्छा है, लेकिन इसे और बेहतरीन किया जा सकता था। वहीं कुछ सीन बचकाने भी हैं, जैसे राजपाल यादव वाला सीन। 
 
फिल्म की कहानी में कॉमेडी और हॉरर की अच्‍छी-खासी संभावनाएं थीं, जिनका पूरा उपयोग नहीं हो पाया। निर्देशक पवन कृपलानी ने माहौल अच्छा बनाया और अर्जुन-सैफ के किरदार पर ध्यान भी दिया, लेकिन एक स्तर तक आकर उनकी गाड़ी भी रूक गई। आखिर में फिल्म को थोड़ा खींच भी दिया, वहीं कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं। 
 
सैफ अली खान कॉमेडी करते अच्छे लगते हैं। एक लंपट व्यक्ति के रोल में वे जमे हैं। अर्जुन कपूर में सुधार नजर आता है। यामी गौतम का अभिनय औसत रहा। जैकलीन फर्नांडिस एक बार फिर निराश करती हैं। जैमी लीवर, अमित मिस्त्री और जावेद जाफरी कुछ दृश्यों में हंसाते हैं। राजपाल यादव की कॉमेडी बहुत लाउड है। 
 
कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो महज टाइम पास करने के लिए देखी जाती हैं। भूत पुलिस भी ऐसी ही है। ज्यादा उम्मीद के साथ न देखी जाए तो ठीक-ठाक लग सकती है। 
 
निर्माता : रमेश तौरानी, अक्षय पुरी
निर्देशक : पवन कृपलानी 
कलाकार : सैफ अली खान, अर्जुन कपूर, जैकलीन फर्नांडिस, यामी गौतम 
* डिज्नी प्लस हॉट स्टार पर उपलब्ध 
* 16 वर्ष से ऊपर के व्यक्तियों के लिए * 2 घंटे 8 मिनट 
रेटिंग : 2.5/5 

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