Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

बंगाल का अकाल और ख़्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'धरती के लाल'

हमें फॉलो करें बंगाल का अकाल और ख़्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'धरती के लाल'
, गुरुवार, 12 अगस्त 2021 (09:51 IST)
अकाल पहले भी पड़ते थे। भारत का किसान पहले भी दुर्दिनों में जीता था। साहूकारों और ज़मींदारों का शोषण पहले भी हुआ करता था। हालात पहले भी खराब थे लेकिन अंग्रेजी साम्राज्यवाद के गुलाम बन जाने के बाद शोषण का स्तर इतना बढ़ गया कि किसान भीख माँगने और आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए। 'धरती के लाल' फिल्म ख़्वाजा अहमद अब्बास ने 1943 के बंगाल के अकाल को केंद्र में रखकर 1946 में इसीलिए बनाई थी ताकि किसानों की दुर्दशा से देश-दुनिया के बाकि हिस्सों में मौजूद खाते-पीते लोगों को बंगाल के किसानों की दुर्दशा और अकाल की सही वजहों की जानकारी मिल सके। 
 
ये मुद्दे उठे 'धरती के लाल' पर केंद्रित परिचर्चा में। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) ने अपने संस्थापक सदस्य ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्मों के तत्कालीन और वर्तमान संदर्भों के बीच सेतु बनाने के लिए पाँच कड़ियों में उनकी छह फिल्मों पर विशेषज्ञों के साथ ऑनलाइन चर्चा आयोजित की। इसकी पाँचवीं और अंतिम कड़ी में इप्टा की पहली फिल्म ‘धरती के लाल’ पर केंद्रित जया मेहता, विनीत तिवारी और सारिका श्रीवास्तव ने प्रस्तुति दी। 
 
10 अगस्त को यूट्यूब और फेसबुक पर प्रीमियर हुए इस कार्यक्रम का संचालन करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश (लखनऊ) ने अतिथि परिचय देने के बाद कहा कि ‘धरती के लाल’ इप्टा की पहली फिल्म थी। यह ख़्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनी और बलराज साहनी, शम्भु मित्रा, दमयंती साहनी, तृप्ति भादुड़ी मित्रा, अनवर मिर्ज़ा, उषा दत्त, हमीद बट्ट, नाना पलसीकर, जोहरा सहगल के फिल्म में अभिनय की भी पहली फिल्म थी। संगीत निर्देशन प्रसिद्ध सितारवादक रविशंकर ने तथा नृत्य-निर्देशन शांतिबर्द्धन ने किया था। हम उम्मीद करते हैं कि इप्टा की नई पीढ़ी अब्बास साहब की इस फिल्म से प्रेरणा लेकर और भी यथार्थपरक फ़िल्में बनाएगी। 
 
के.ए.अब्बास मेमोरियल ट्रस्ट की अध्यक्ष और प्रसिद्द लेखिका डॉ. सैय्यदा हमीद ने बताया कि इप्टा के महासचिव होने के नाते बिजन भट्टाचार्य का नाटक 'नबान्न' देखने के लिए जब अब्बास साहब 1943 गए तो वहाँ उन्होंने अकाल की वजह से पलायन करके कलकत्ता आए भीख माँगते किसानों और भूख की वजह से कचरे के ढेर से खाना तलाशते बच्चों सड़कों पर गरीबों की लाशों तथा उसके बरक्स शानदार होटलों में चलते अमीरों के उत्सवों और जश्नों को देखा जिससे विचलित होकर और इसी विषय पर बने नाटक 'नबान्न', 'अंतिम अभिलाषा' और कृष्ण चन्दर की कहानी 'अन्नदाता' से प्रेरित होकर 'धरती के लाल' फिल्म बनाने की योजना बनाई। 
 
अपनी प्रस्तुति में विनीत तिवारी ने फिल्म के तकनीकी पक्ष की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरह ख़्वाजा अहमद अब्बास ने फिल्म में सुख और दुःख के, त्रासदी और संघर्ष के और अंत में सामूहिक ताकत के जरिये विषमताओं पर काबू पाने के बंगाल के किसानों के महाख्यान को रचा। यह फिल्म भारत के फिल्म सिनेमा के इतिहास में यथार्थवाद की नींव डालने वाली फिल्म तो बनी ही साथ ही इस फिल्म ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा को सबसे पहली प्रसिद्धि दिलाई। निर्देशक होते हुए भी अब्बास साहब फिल्म में काम करने वाले अदना से अदना कर्मचारियों के साथ भी दोस्ताना रिश्ता रखते थे। पात्रों के चरित्रों में आने वाले मानवीय बदलावों को मार्मिकता से दर्शाने वाले बिनोदिनी और दयाल काका के फिल्म के दृश्य भी उन्होंने दिखलाए।
 
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ जया मेहता ने बंगाल के अकाल की पूर्व पीठिका बताते हुए सोलवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक दुनिया के सबसे समृद्ध भूभाग बंगाल के लोगों की बदहाली का भुखमरी की कगार तक पहुँचाने के लिए जिम्मेदार अंग्रेज शासन को ठहराया। तथ्यों और आंकड़ों के हवाले से उन्होंने बताया कि न केवल किसानों पर लगान छह गुना तक बढ़ा दिया गया था बल्कि धान की पैदावार को द्वितीय विश्वयुद्ध में लगने वाली फ़ौज के लिए इकट्ठा करके उन किसानों को ही अनाज से वंचित कर दिया गया था जिन्होंने अपने खून-पसीने से वो अनाज पैदा किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में बार-बार अकाल निर्मित होता रहा क्योंकि प्राकृतिक विपदा के समय भी बहुत क्रूरता के साथ टैक्स रेवेन्यू वसूल किया जाता था। ब्रिटिश शासनकाल द्वारा 1770 में बंगाल में पहली बार अकाल निर्मित किया गया, जिसमें तीन करोड़ की आबादी में से एक करोड़ लोग मौत के मुंह में समा गए। इसी अकाल की पृष्ठभूमि पर बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘आनंदमठ’ उपन्यास लिखा था। गोदामों में अनाज बेतहाशा भरा पड़ा था जो अंग्रेजों और उनके चाकरों के लिए सुरक्षित कर लिया गया था और किसानों के पास अपने ही अनाज को खरीदने लायक पाई भी नहीं छोड़ी थी। मेरी दृष्टि में यह फिल्म अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ एक सशक्त कलात्मक प्रतिरोध है।
 
सारिका श्रीवास्तव ने फिल्म में दिखाए पलायन के दृश्यों के बारे में बताया कि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण बंगाल में फिल्मांकन की अनुमति न मिलने से इसे महाराष्ट्र के धुलिया जिले में किसान सभा के सहयोग से फिल्माया गया। महाराष्ट्र के इन मजदूर-किसानों को बंगाली वेशभूषा का कोई ज्ञान और अभ्यास नहीं था इसलिए टीम के बंगाली कलाकार अलस्सुबह उठकर सभी को तैयार करने में लग जाते थे। फिल्म में पलायन करते वे लोग मेहनतकश और किसान लोग थे, हिदु-मुसलमान नहीं। फिल्म का अंत भी सकारात्मक आशावाद पर होता है और जिसमें सभी साझे की खेती करते हुए एकदूसरे के दुःख-सुख साझा करते हैं और विपत्तियों से मिलजुलकर पार पाते हैं। फिल्म में साझेदारी के साथ जीने का एक रास्ता दिखाया गया है।
 
प्रस्तुतीकरण के बाद उपस्थित साथियों में से रवि अतरोलिया (इंदौर), तपस्या शादान (बिहार), शशिभूषण (उज्जैन), तनवीर अख्तर (पटना), वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी (दिल्ली) ने महत्वपूर्ण बातें जोड़ीं। इस प्रस्तुतीकरण और चर्चा के दौरान पदमश्री ओडिसी नृत्यांगना और जोहरा सहगल की बेटी किरण सहगल, एनी राजा, अशिमा राय चौधरी, कृष्णा मजूमदार, कोनिनीका रे, नीलाक्षी सूर्यनारायण, मोहिनी गिरी, राजीव कुमार शुक्ल,स्वाति मौर्य, अटल तिवारी (दिल्ली), सुनीता कुमारी, संजय सिन्हा (पटना), ज्योत्स्ना रघुवंशी, विजय (आगरा), बेनेडिक्ट डामोर (झाबुआ), अहमद बद्र, अर्पिता, ज्योति-शेखर मलिक, मिथिलेस सिंह (झारखंड), उषा आठले, ऐश्वर्या,राजेंद्र गुप्त (मुंबई), दिव्या भट्ट (बंगलौर), रामदुलारी शर्मा, अमरसिंह, सुरेंद्र रघुवंशी (अशोकनगर), कृष्णा दुबे (गुना), हरनाम सिंह, असद अंसारी (मंदसौर) गीता दुबे (कोलकाता), नथमल शर्मा, लोकबाबू, मणिमय मुखर्जी, राजेश श्रीवास्तव, प्रितपाल सिंह, निसार अली (छत्तीसगढ़), अनिलरंजन भौमिक (इलाहबाद), शैलेन्द्र अवस्थी (जयपुर), सैय्यद शमशुद्दीन (कराची-पाकिस्तान), परशुराम तिवारी (झाँसी) जे पी तिवारी, सुरेश उपाध्याय, विवेक मेहता, अरविन्द पोरवाल, विजय दलाल, शिवाजी मोहिते, शबाना पारीख, सुनील चंद्रन (इंदौर), नानक शांडिल्य (हिमाचल प्रदेश), जमुना बीनी (अरुणाचल प्रदेश), डॉ आसिया पटेल, मेधा थत्ते (पुणे), सत्येंद्र भारिल (राजगढ़), सत्येंद्र कुमार शेंडे (सिवनी), राजनारायण बोहरे (दतिया), हिम्मत चंगवाल, थनसिंह (राजस्थान), नरेश चन्द्रकर (गुजरात), राकेश वानखेड़े (नासिक) सहित देश-विदेश से हजारों लोग शामिल हुए। 
 
उल्लेखनीय है कि अब तक इस श्रृंखला में फिल्म ‘राही’, ‘दो बूँद पानी’, ‘हिना’, ‘आवारा’ और ‘अनहोनी’ पर चर्चा हुई। 
-उषा वैरागकर आठले

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

KGF Chapter 2 : कब होगी रिलीज? क्या ओटीटी पर दिखाई जाएगी?