महज इतने रुपए लेकर मुंबई आए थे देव आनंद, कड़े संघर्ष के बाद इंडस्ट्री में बनाई विशिष्ट पहचान

WD Entertainment Desk
गुरुवार, 26 सितम्बर 2024 (12:04 IST)
लगभग छह दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले अभिनेता-फिल्मकार देव आनंद को फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 26 सितंबर 1923 को जन्मे धर्मदेव पिशोरीमल आनंद उर्फ देव आनंद ने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की। 
 
देव आनंद इसके आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है और यदि वह आगे पढ़ना चाहते है तो नौकरी कर लें। देव आनंद ने निश्चय किया कि यदि नौकरी ही करनी है तो क्यों ना फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए।
 
वर्ष 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। देव आनंद ने यहां पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समीप ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। उस कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे जो देवानंद की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिये संघर्ष कर रहे थे। जब काफी दिन यूं ही गुजर गए तो देव आनंद ने सोचा कि यदि उन्हें मुंबई में रहना है तो जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ेगी चाहे वह कैसी भी नौकरी क्यों न हो। 
 
अथक प्रयास के बाद उन्हें मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में लिपिक की नौकरी मिल गई। यहां उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था। मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में देव आनंद को 165 रुपए मासिक वेतन मिलता था जिसमें से 45 रुपए वह अपने परिवार के खर्च के लिये भेज देते थे। लगभग एक वर्ष तक मिलिट्री सेन्सर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चए गए जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जुड़े हुए थे। 
 
उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा मे शामिल कर लिया। इस बीच देव आनंद ने नाटकों में छोटे-मोटे रोल किये। वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म 'हम एक है' से बतौर अभिनेता देव आनंद ने अपने सिने करियर की शुरुआत की। वर्ष 1948 मे प्रदर्शित फिल्म ‘जिद्दी’ देव आनंद के फिल्मी करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की।
 
नवकेतन के बैनर तले देव आनंद ने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म 'अफसर' का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी। इसके बाद देव आनंद ने अपने बैनर तले वर्ष 1951 में ‘बाजी’ बनाई। गुरुदत्त के निर्देशन में बनी फिल्म 'बाजी' की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री मे एक अच्छे अभिनेता के रूप मे शुमार हो गए। फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देवानंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई।
 
देव आनंद ने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं लेकिन सुरैया की नानी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़ी परवान नहीं चढ़ सकी। वर्ष 1954 मे देव आनंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। देव आनंद प्रख्यात उपन्यासकार आर.के. नारायण से काफी प्रभावित रहा करते थे और उनके उपन्यास 'गाइड' पर फिल्म बनाना चाहते थे। 
 
आर.के. नारायणन की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने हॉलीवुड के सहयोग से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं मे फिल्म गाइड का निर्माण किया जो देव आनंद के सिने करियर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म में देव आनंद को उनके जबरदस्त अभिनय के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। 
 
बतौर निर्माता देव आनंद ने कई फिल्में बनाई। इन फिल्मों में वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म अफसर के अलावा हमसफर, टैक्सी ड्राइवर हाउस न. 44, फंटूश, कालापानी, काला बाजार, हमदोनों, तेरे मेरे सपने, गाइड और ज्वेल थीफ आदि कई फिल्में शामिल हैं। वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया हांलाकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 
 
इसके बाद वर्ष 1971 मे फिल्म 'हरे रामा हरे कष्णा' का भी निर्देशन किया जिसकी कामयाबी के बाद उन्होंने 'हीरा पन्ना, 'देश परदेस', 'लूटमार', 'स्वामी दादा', 'सच्चे का बोलबाला' और 'अव्वल नंबर' समेत कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया। देव आनंद को सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 
 
वर्ष 2001 में एक ओर जहां देव आनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2002 में हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। अपनी फिल्मों से दर्शकों के दिलों में खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार देव आनंद 3 दिसंबर 2011 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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