बॉबी (1973) : ऋषि-डिंपल की टीनएज स्टोरी पर बनी फिल्म जिसने भारतीय सिनेमा में लाई क्रांति | Blast from Past
बॉबी ने पूरे किए 50 साल, फिल्म ने दी नई पीढ़ी को आवाज
राज कपूर फिल्मों से कमाया पैसा फिल्मों में ही लगाते थे। 'मेरा नाम जोकर' उनके करियर की महंगी फिल्मों में से एक है जिसके लिए उन्होंने खूब परिश्रम भी किया। 1970 में रिलीज यह फिल्म बॉक्स ऑफिस फ्लॉप हो गई। राज कपूर आर्थिक परेशानियों से घिर गए। उन्हें एक सख्त हिट फिल्म की इसलिए जरूरत थी ताकि वे कर्ज चुका सके और फिल्ममेकर के रूप में खोई प्रतिष्ठा को फिर हासिल कर सके। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे किसी सुपरसितारे को साइन कर सके इसलिए उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर को बतौर हीरो चुन लिया। राज कपूर अक्सर पार्टियों में जाते थे और उन्होंने वहां पर उद्योगपति चुन्नीभाई कपाड़िया की बेटी डिम्पल को देखा था। उनके जेहन में डिम्पल का नाम था। राजकपूर ने जब डिम्पल को फिल्म ऑफर की तो ना का सवाल ही नहीं था। इस तरह ऋषि कपूर और डिम्पल को लेकर 'बॉबी' फिल्म अनाउंस की गई।
राज कपूर अक्सर आर्चीज कॉमिक्स पढ़ते थे और वहीं से उन्हें टीनएज लवस्टोरी बनाने का विचार आया। उस समय हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका अधिक उम्र के रहते थे। वे लड़के-लड़की की बजाय पुरुष-स्त्री ज्यादा लगते थे। 'बॉबी' टीनएज लव स्टोरी पर आधारित फिल्म है, जिसमें हीरो-हीरोइन जवानी के दहलीज पर कदम रखने वाले कलाकार थे।
बॉबी की कहानी ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखी थी। लड़का और लड़की, अलग-अलग धर्म के हैं, दोनों की पृष्ठभूमि अलग-अलग है। राज नामक लड़का अमीर माता-पिता की संतान है। माता-पिता को पैसे कमाने और पार्टी करने से फुर्सत नहीं है। बच्चे से ज्यादा उन्हें अपने सोशल स्टेटस की चिंता है। दूसरी ओर बॉबी के पिता अमीर नहीं हैं, लेकिन दिलदार हैं। बॉबी को पूरी आजादी के साथ पाला गया है। बॉबी बोल्ड और बिंदास है। राज थोड़ा शर्मीला है। दोनों एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो जाते हैं, लेकिन सोशल स्टेटस, अमीरी-गरीबी, धर्म जैसी बातें आड़े आ जाती हैं, लेकिन आखिर में प्यार की जीत होती है।
बॉबी की कहानी 50 साल बाद बिलकुल साधारण सी प्रतीत होती है, लेकिन यह ट्रेंड सेटर फिल्म रही है। 'बॉबी' की कामयाबी के बाद इससे मिलती-जुलती हजारों फिल्में बनी हैं और आज तक यह दौर जारी है। बॉबी की कहानी को घूमा-फिरा कर कई निर्माता-निर्देशकों ने बनाया और पैसा कमाया। इस फिल्म के बाद युवा नायक-नायिकाओं का चलन भी बढ़ा और नए कलाकारों के प्रति प्रोड्यूसर्स में विश्वास जागा। 1973 में रिलीज़ हुई राज कपूर की "बॉबी" एक ऐसी फिल्म है जिसने न केवल भारतीय फिल्म उद्योग में क्रांति ला दी बल्कि कहानी कहने का एक नया युग भी शुरू किया।
राज कपूर की यह फिल्म अपने आप में कई आधुनिकता लिए भी है:
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भले ही उन्होंने अपने बेटे को इस फिल्म के जरिये बतौर हीरो लांच किया, लेकिन फिल्म का नाम हीरोइन के नाम पर रखा।
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फिल्म में हीरोइन का रोल हीरो के मुकाबले बेहतर है।
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बॉबी के दौर तक ज्यादातर हिंदी फिल्मों में हीरोइनें छुईमुई की तरह लाज का आवरण ओढ़े दिखाई देती थी, लेकिन बॉबी बेहद बोल्ड और अपने फैसले खुद लेने वाली लड़की के रूप में नजर आईं।
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बॉबी फिल्म में एक संवाद भी बोलती है- 'बीसवीं सदी की लड़की हूं'। इस संवाद से ही पता चल जाता है कि महिलाएं अब पुरुषों की बराबरी पर हैं।
फिल्म में 'बॉबी' के किरदार पर खासी मेहनत की गई। बॉबी को एक उत्साही, स्वतंत्र विचारों वाली और आधुनिक युवा महिला के रूप में दर्शाया गया जो सामाजिक मानदंडों की सीमाओं को तोड़ती है। बॉबी का किरदार भारतीय महिलाओं की एक नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है जो परंपरा को चुनौती देने और अपना रास्ता बनाने से नहीं डरतीं।
बॉबी के किरदार के अलावा अन्य किरदारों को राज कपूर ने खूबसूरती के साथ उभारा जो कहानी को अलग रंग देते हैं:
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बॉबी का प्रेमी राज, जिसके लिए पैसों से ज्यादा अपने माता-पिता के समय का महत्व रहता है, जो दब्बू किस्म का है लेकिन बॉबी से दोस्ती के बाद उसकी शख्सियत बदलने लगती है।
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राज के पिता रामनाथ (प्राण) और सुषमा नाथ (सोनिया साहनी) जो समाज के उच्च वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिनके लिए हर बात स्टेटस सिंबल रहती है।
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बॉबी के पिता जैक ब्रैंगेंजा (प्रेमनाथ), जो हर हाल में खुश है और दिखावे में उसका जरा भी विश्वास नहीं है। मिसेज ब्रैगेंजा (दुर्गा खोटे) राज की परवरिश नौकरी नहीं बल्कि अपना बेटा मान कर करती हैं।
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छोटे से रोल में प्रेम चोपड़ा जो 'प्रेम नाम है मेरा... प्रेम चोपड़ा' बोल कर दर्शकों को दहला देते हैं कि यह बच्चों के बीच आकर न जाने अब क्या करेगा।
प्रेम चोपड़ा का नाम आया है तो यह किस्सा भी जान लीजिए। राज कपूर ने प्रेम चोपड़ा को यह फिल्म ऑफर की तो कहा छोटा सा रोल है। प्रेम तो इस बात से ही खुश थे कि राज कपूर के साथ काम करने का मौका मिल रहा है। जब उन्हें पता चला कि उनका महज एक ही संवाद है तो वे निराश हो गए कि यह कैसा रोल? लेकिन राज कपूर जैसी शख्सियत के आगे वे कुछ बोल नहीं पाए। राज कपूर ने उनसे कहा कि यह एक लाइन ही उन्हें अपार लोकप्रियता दिलाएगी और वैसा ही हुआ।
भारतीय सिनेमा के शोमैन कहे जाने वाले राज कपूर ने "बॉबी" का निर्देशन बहुत ही खूबसूरती और दूरदर्शिता के साथ किया। उनका निर्देशन उनकी पिछली फिल्मों से हटकर था और उन्होंने अधिक युवा और समकालीन कथा की ओर कदम बढ़ाया। राज कपूर की युवा प्रेम, विद्रोह और सामाजिक संघर्षों के सार को पकड़ने की क्षमता उल्लेखनीय थी। उन्होंने रोमांस और ड्रामा को बखूबी संतुलित किया, जिससे "बॉबी" एक आकर्षक सिनेमाई अनुभव बन गई।
हालांकि 'बॉबी' को लेकर कुछ समाचोलकों ने कहा भी राज कपूर ने अपने सिनेमा का व्यावसायी करण कर दिया, क्योंकि राज कपूर ने अपनी परंपरागत लीक से हटकर काम किया था। डिंपल के एक्सपोजर को लेकर भी सवाल उठाए गए। दरअसल टीनएजर को इस तरह के अंदाज में देख परंपरावादी चौंक गए थे।
फिल्म कई कई सीन राज कपूर की पकड़ को दर्शाते हैं। हर दृश्य के माध्यम से प्रेम कहानी के जरिये उन्होंने कुछ बात कहने की कोशिश की है। युवा प्रेमियों के प्यार का इजहार जहां गुदगुदाता है वहीं सामाजिक संघर्ष बदलते समय की ओर इंगित करता है।
ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया ने अपनी पहली भूमिकाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया जिसने उन्हें स्टारडम तक पहुंचा दिया। प्यार में डूबे एक युवक राज का ऋषि कपूर द्वारा निभाया गया किरदार बहुत ही प्यारा और प्रासंगिक था। डिंपल कपाड़िया के साथ उनकी केमिस्ट्री शानदार थी और इसने फिल्म की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके प्रदर्शन में मासूमियत और तीव्रता ने दर्शकों को उनकी प्रेम कहानी का दीवाना बना दिया।
बॉबी के रूप में डिंपल कपाड़िया की शुरुआत जबरदस्त थी। उनके स्वाभाविक अभिनय और विभिन्न प्रकार की भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता ने उन्हें तुरंत स्टार बना दिया। कपाड़िया का करिश्मा और स्क्रीन प्रेजेंस निर्विवाद थी और उन्होंने इस भूमिका से भारतीय सिनेमा पर एक अमिट छाप छोड़ी।
बॉबी के रिलीज होने के पहले ही डिंपल ने सुपरस्टार राजेश खन्ना से शादी कर सभी को चौंका दिया। डिंपल ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि बॉबी इतनी कामयाब होगी कि दर्शक उन्हें पचास साल बाद भी बॉबी के रूप में याद करेंगे।
प्राण, प्रेमनाथ और दुर्गा खोटे सहित सहायक कलाकारों ने अपने सराहनीय प्रदर्शन से फिल्म को गहराई प्रदान की। विशेष रूप से, प्राण ने एक जटिल चरित्र को बढ़िया अभिनय से जीवंत बना दिया।
राज कपूर ने अपने परंपरागत संगीत टीम को बदल कर नए लोगों के साथ काम किया। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल बतौर संगीतकार और आनंद बक्शी व विट्ठल भाई पटेल बतौर गीतकार फिल्म से जुड़े। फिल्म के गानों ने 'बॉबी' की सफलता में अहम भूमिका निभाई।
फिल्म का साउंडट्रैक एक सनसनी बन गया, जिसके गाने आज भी सुने और गुनगुनाए जाते हैं। फिल्म के सारे गाने पसंद किए गए। "मैं शायर तो नहीं," "झूठ बोले कौवा काटे," और "हम तुम एक कमरे में बंद हो" जैसे ट्रैक अभी भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।
लक्ष्मी-प्यारे के संगीत ने न केवल फिल्म को ऊंचा उठाया बल्कि पात्रों की भावनाओं को व्यक्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मधुर धुनों और काव्यात्मक गीतों ने प्रेम कहानी में गहराई पैदा कर दी जिससे यह दर्शकों के दिलों को छू गई।
28 सितंबर 1973 को बॉबी रिलीज हुई और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ऐतिहासिक सफलता हासिल की। 70 के दशक की 'शोले' के बाद यह दूसरी सबसे कामयाब फिल्म थी। फिल्म ने 11 करोड़ की कमाई भारत से की थी। सोवियत यूनियन में तो फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए और 19 करोड़ की कमाई की। यदि आज के दौर से तुलना की जाए तो बॉबी का कलेक्शन 1500 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा का होता।
फिल्म को कई पुरस्कार भी मिले। ऋषि कपूर (बेस्ट एक्टर), डिम्पल कपाड़िया (बेस्ट एक्ट्रेस), नरेन्द्र चंचल (बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर), ए रंगराज (बेस्ट आर्ट डायरेक्शन) और अलाउद्दीन खान कुरैशी (बेस्ट साउंड डिजाइन) का फिल्मफेअर पुरस्कार प्राप्त करने में सफल रहे।
"बॉबी" हिंदी फिल्म इतिहास का एक ऐसा सिनेमाई रत्न है जो कहानी कहने की शक्ति और सामाजिक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने की सिनेमा की क्षमता का प्रमाण है। अपने सशक्त महिला किरदारों, राज कपूर के दूरदर्शी निर्देशन, ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया के असाधारण अभिनय और अविस्मरणीय संगीत के साथ, यह फिल्म एक क्लासिक बनी हुई है जो दर्शकों का मनोरंजन करती रहती है।
इसने परंपराओं को तोड़ा, नई पीढ़ी को आवाज दी। "बॉबी" हमें याद दिलाती है कि प्यार की कोई सीमा नहीं होती है, और सच्चे प्यार के लिए लड़ना जरूरी है, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियां क्यों न हों।