हिन्दी फिल्म संगीत में मोहम्मद रफी का योगदान और महत्व बताने की आवश्यकता नहीं है। संगीत जगत में रफी का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। बेशक आज रफी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अमर आवाज हमें उनकी मौजूदगी का हमेशा अहसास कराती है। रफी की आवाज महज आवाज ही नहीं बल्कि एक जादू था, जो आज तक संगीत प्रेमियों के दिलो-दिमाग में रचा-बसा है। कई गायक उनकी नकल करके सफल हुए हैं और आज भी कई युवा गायक रफी की तरह गाने की कोशिश करते हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि रफी ने हर मूड के गाने बखूबी गाए और उनके हर गीत का अपना एक अलग महत्व है। वे अपने हर गाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते थे। रफी जब भी कोई गीत गाते तो वे उस चरित्र में अपने आप को ढाल लेते थे, जिस चरित्र पर वह गीत फिल्माया जाना होता था। चाहे वह 'देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी-बारी...' (कागज के फूल) हो या फिर जॉनी वाकर जैसे कॉमेडियन के लिए 'तेल मालिश...' (प्यासा) और 'ये है बॉम्बे मेरी जान...' (सीआईडी) हो, रफी ने हर गीत के साथ पूरा न्याय किया।