"फुकरे करने के पहले मैं खुद नहीं जानता था कि मैं कॉमेडी कर सकता हूं। मैंने दिल्ली में 'अंधा युग' जैसे सीरियस थिएटर किए हैं। अश्वत्थामा के किरदार को जीता आया हूं। मुझे तो पता ही नहीं था कि मैं कॉमेडी भी कर सकता हूं। 'फुकरे' जब बनी तो लगा चलो कुछ अलग कर रहा हूं। फिल्म रिलीज़ हुई तो मैंने सिनेमाहॉल में लोगों को मेरे किरदार पर हंसते-मुस्कुराते पाया। तब पहली बार लगा कि मैं तो लोगों हंसा भी सकता हूं।"
चूंचा के किरदार से लोगों के बीच लोकप्रिय हुए वरुण को आज भी समझ नहीं आया है कि वो ऐसा क्या कर रहे हैं जो लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। वरुण कहते हैं "मुझे हमेशा से लगता था कि कॉमेडी करना बहुत मुश्किल काम है। ऐसे कैसे कोई किसी को हंसा सकता है। आज के समय में जब हमारे अंदर धैर्य नहीं रहा है तो हम किसी को भी आसानी से रूला या या गुस्सा दिला सकते हैं, लेकिन हंसाना मुश्किल काम है। जब कोई रास्ते में मुझे देख स्माइल करता है या देख कर खुश हो जाता है तो बहुत अच्छा लगता है।"
हाल ही में फिल्म 'ख़ानदानी शफाखाना' में नजर आए वरुण शर्मा बताते हैं ''मुझे बाहर वाले और घर वाले कई बार पूछते हैं कि मैं टाइपकास्ट तो नहीं हो रहा हूं, लेकिन मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि मैं करियर के उस मकाम पर हूं जहां मैं लगातार कास्ट हो रहा हूं। यही बहुत बड़ी बात है। वैसे भी मेरी सोच ऐसी है कि जिस जॉनर ने मुझे करियर, नाम और शोहरत दी है उसे कहूं कि भाई तू रूक, मैं ज़रा दूसरी चीज़ ट्राय कर के आता हूं। काम बन गया तो ठीक, वरना कॉमेडी जॉनर तो है ही। ये मैं नहीं कर सकता।''
कई बार कॉमेडी में डबल मीनिंग शब्द आते हैं और कई बार किसी की मिमिक्री उस शख्स को नागवार हो जाती है। आपका क्या सोचना है? पूछने पर वरुण कहते हैं- ''मुझे लगता है कि अगर कोई सीन या कोई डायलॉग डबल मीनिंग है, लेकिन वो सीन की अहमियत बढ़ा रहा है तो ठीक है, लेकिन वो ज़बरन डाले गए हैं तो वो मुझे ठीक नहीं लगते। न तो बतौर एक्टर मैं पसंद करूंगा ना ही बतौर दर्शक मैं पसंद करूंगा। जहां तक बात मिमिक्री करने की है़ तो बेहतर है जिस शख्स की मिमिक्री कर रहे हैं उससे पहले बात ही कर ले। उन्हें एकदम से धक्का ना पहुंचे। उस शख्स को बता दें या परमिशन ले लें तो ज़्यादा अच्छा रहेगा।''
अपनी ज़िंदगी से खुश हैं? ''मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा कि है क्या हो रहा है। मैं कभी एक फिल्म के लिए यहां शूट कर रहा होता हूं तो कभी दूसरी फिल्म के लिए वहां शूट कर रहा होता हूं। इतना सारा काम है। वेब सीरिज करना चाहता हूँ, लेकिन समय नहीं है। पहले ज़िंदगी आसान थी। अब मैनेजर आ गए हैं, पीआर वाले आ गए हैं, डिजिटल टीम आ गई है। मेरे जीवन में इतने सारे लोग एक साथ आ गए हैं। जब ये सारी फ़िल्में और काम खत्म कर लूंगा तब सोचूंगा कि जिस जगह पर आ पहुंचा हूं वहां खुश हूं या नहीं?