“गोलमाल के पहले भाग से मैं जुड़ा हुआ हूं। जब भी गोलमाल का कोई भी पार्ट रिलीज़ होता है तो मुझे करियर में एक बहुत बड़ा बूस्ट मिल जाता है। सब अच्छा अच्छा होने लगता है। मुझे फिर पुराने दोस्त मिलते हैं। फिर गोआ जाना होता है। फिर से बहुत सारी मस्ती होती है। फिल्म सही समय पर शूट होना शुरू होती है, फिर सही समय पर खत्म होती है और बहुत ही अच्छे समय पर ये फिल्म रिलीज़ भी होती है। मुझे तो इसके रोल के लिए कई अवॉर्ड शोज़ में नॉमीनेशन भी मिलते हैं, बल्कि मुझे तो हर बार नॉमिनेट किया गया है। गोलमाल मेरे लिए पेंशन प्लान है।” ये कहना है तुषार कपूर का जो गोलमाल अगेन के साथ एक बार फिर से बड़े परदे पर नजर आने वाले हैं।
इन दिनों वैसे तुषार या तो गोलमाल की बातें करते हैं या फिर अपने बेटे लक्ष्य की। जब वेबदुनिया संवाददाता रूना आशीष ने तुषार से पूछा कि “क्या आपने करीना को मिस किया? इस पर तुषार का कहना है कि मैं करीना को कभी मिस नही करता हूं। मैं तो वैसे भी लक्ष्य की वजह से उससे हर दिन मिलता ही रहता हूं। हम हर कुछ दिनों में आपस में मिलते रहते हैं। वह तैमूर को ले कर आ जाती हैं और लक्ष्य के साथ मैं होता ही हूं।”
जब आप शूट कर रहे थे तो तब लक्ष्य को मिस किया होगा?
बिल्कुल नहीं। मैं तो उसे हर शूट में आपने साथ ले कर जाता था। समय मिलते ही मिल लेता था। शुरुआत में लगा कि कैसे मैनेज करूंगा? क्या मैं सुबह 6 बजे उठ कर उसके साथ खेलूं और फिर जिम करने जाऊं या क्या करूं? मुझे काम और अपना बच्चा दोनों मैनेज करना था। मैं सुबह लगभग 15 से 30 मिनिट तक उसके साथ रहता था फिर अपने काम पर चला जाता था। फिर शाम को 4.30 मैं घर आ जाता था।
मैं तो बिल्कुल पूरी तरह से पैरेंटिंग मे चला गया हूं। वह सुबह कब उठा? उसने सुबह क्या किया? क्या खाया? क्या पिया? दोपहर में क्या किया? मैं सारी बातों का ख्याल रखता हूं। मुझे मैसेजेस भी आते रहते हैं मोबाइल पर। शाम पौने आठ बजे उसके सोने का समय हो जाता है। उसके कमरे की लाइट्स ऑफ हो जाती हैं।
आपको अपने शुरुआती गोलमाल के दिन याद आते हैं?
बिलकुल। मुझे पहली बार गोलमाल तब मिली थी जब मैंने क्या कूल हैं हम की थी। उस फिल्म में तो बहुत सारे डायलॉग्स मैंने बोले थे, जो कि डबल मीनिंग वाले थे। गोलमाल मिली तो समझने में ही समय लग गया कि बिना बोले कोई कैसे कॉमेडी करेगा? सिर्फ मुंह या हाथ-पांव हिलाएगा? एक थिएटर पर्सन हैं, विकास, उनके साथ मैंने कुछ वर्कशॉप्स की। विकास ने मशहूर नाटक ऑल द बेस्ट में भी एक्टर्स की वर्कशॉप की थी। हम दोनों ने सोचा कि वह ऐसा एक किरदार होगा जो आवाज़ें निकाल सकता है अपने गले से, लेकिन कभी भी वह बोल नहीं सकता है। उस समय हमने किरदार कुछ ऐसे डिज़ाइन किया कि वो थोड़ा हायपर भी होगा और अपने हाथों और पावों के एक्सप्रेशन की मदद से वो अपनी बातें कह सकेगा।
हर बार लोगों को लगता है कि आप इस बार तो बोलेंगे ही, तो इस फिल्म में बोलेंगे या नहीं?
पूरी फिल्म में तो नहीं बोलूंगा, लेकिन थोड़ा सा बोलूंगा। इससे ज़्यादा कुछ मत पूछना। अब फिल्म देखना और मुझे बताना।