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अमिताभ बच्चन के एनर्जी लेवल को आप छू भी नहीं सकेंगे : सुजॉय घोष

हमें फॉलो करें अमिताभ बच्चन के एनर्जी लेवल को आप छू भी नहीं सकेंगे : सुजॉय घोष

रूना आशीष

लोगों का ये सोचना कि ये 'पिंक' का सीक्वल तो नहीं तो वे गलत भी नहीं सोच रहे हैं, क्योंकि फिल्म में मिस्टर बच्चन हैं, तापसी हैं, कोर्ट-कचहरी का बात है, क्लाएंट की बात है। (थोड़ा मस्तीभरे अंदाज में) मैंने ऐसा पहले सोचा होता तो शायद इस फिल्म का टाइटल भी मैं ऑरेंज या किसी रंग के नाम पर रख देता। फिर मेरी फिल्म को इस फिल्म से तौला जा रहा हो तो बहुत ही अच्छी बात है। लेकिन सच ये है कि मेरी जो कहानी है या जो मैं पर्दे पर दिखाना चाहता हूं, उन किरदारों में मिस्टर बच्चन और तापसी ही फिट बैठते हैं।

'झंकार बीट्स', 'कहानी' और 'कहानी 2' के निर्देशक सुजॉय घोष अपनी फिल्म 'बदला' से 'पिंक' की तुलना किए जाने पर खुश दिखाई देते हैं। फिल्म के बारे में 'वेबदुनिया' से बात करते हुए सुजॉय ने आगे बताया।

आप और बच्चन साहब में कभी एनर्जी लेवल को लेकर टकराव हुआ, क्योंकि आपकी फिल्में देखकर लगता है कि आप बहुत इंटेंस सोच वाले निर्देशक हैं?
मेरी बात छोड़ दीजिए, मैं तो मिस्टर बच्चन का बात करता हूं। उनके एनर्जी लेवल को तो आप छू भी नहीं सकेंगे। माउंट एवरेस्ट से ऊंचा है उनका एनर्जी लेवल। जब वे सेट पर हैं तो सिर्फ फिल्म के लिए हैं। वे फिल्म के अलावा कुछ सोचेंगे भी नहीं। वे 24 घंटे काम कर सकते हैं जबकि हम इस उम्र में भी 18 घंटे बाद थक जाते हैं। उनकी एक्टिंग की तो मैं बात भी नहीं कर सकता। वे जरूरत पड़ने पर 48 घंटे काम कर लेंगे। ऐसे में बाकी के जो लोग हैं सेट पर, तो हम लोगों को लगता है कि जब वे इतना कम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं? वे सेट के बाकी के लोगों को प्रेरणा देते हैं।

क्या बच्चन साहब को इस रोल के लिए राजी करना आसान या कठिन रहा?
किसी भी एक्टर को रोल के लिए राजी करना या समझाना और विश्वास दिलाना कि ये रोल इस तरह का है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है। पिछली फिल्म 'तीन' में मैं उनके साथ काम कर चुका हूं। लेकिन फिर भी फिल्म बनाने या निर्देशन करने से कठिन काम है एक्टर को ये बताना और कैरेक्टर की हर छोटी-बड़ी जानकारी देना कि कैसे कोई कैरेक्टर जन्म ले रहा है, वो कैसे आगे बढ़ रहा है और वो किस तरह से अपने किरदार को निभा रहा है। उनके फिल्म शुरू होने के पहले बहुत सारे सवाल होते हैं, जो मुझे उन बातों के जवाब दे देने के बाद खत्म हो जाते हैं। एक बार एक्टर को फिल्म समझ में आ जाए तो कोई भी रोल या फिल्म मुश्किल नहीं रह जाती है।

तापसी को लेने के पीछे क्या उनकी दमदार महिला किरदारों को निभाने वाली इमेज कारण रहा?
तापसी ने कई स्ट्रॉन्ग महिला किरदार निभाए हैं। मुझे 'मनमर्जियां' की रूमी भी बहुत पसंद आई। लेकिन जब मेरे सामने स्क्रिप्ट आई तभी से तापसी को लेना तय हो गया था। तापसी असल जिंदगी में भी बहुत मजबूत इरादों वाली हैं। कई बार वे किरदार के किसी रूप से सहमत नहीं होती हैं तो उन्हें बताना पड़ता है कि ये किरदार इस वजह से ऐसे पेश आया है। लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि तापसी अपने असल रूप को कभी किरदारों पर हावी नहीं होने देतीं। वह फिल्म में कैरेक्टर है, फिर वह कितना भी संवेदनशील हो या कमजोर ही क्यों न हो।
बदला एक स्पेनिश फिल्म पर आधारित है। कितना बदलाव किया है इसे भारतीय फिल्म बनाने के लिए?
मेरे लिए ये ही सबसे बड़ी चुनौती थी। मुझे लग रहा था कि जो फिल्म पहले से ही इतनी अच्छी बन चुकी है, उसमें मैं क्या नयापन लेकर आऊं? या कैसे इतनी बेहतरीन कहानी तो सिर्फ बताने के लिए बता दूं? ये तो ऐसा था कि ताजमहल के साथ कुछ तो करना था तो क्यों न लाल रंग भर दें। लेकिन फिर मुझे लगा कि इसमें कई जगहों पर गुंजाइश है कि मैं अपने तरीके से कहानी कह सकूं। भारतीयपन लाने के लिए पहले मैंने अपने आप से पूछा कि मैं भी तो भारतीय हूं तो क्या मुझे ये पसंद आएगी? फिर मैं अपनी मां की तरफ मुड़ता हूं और हर फिल्म मैं उसे दिखा देता हूं। फिल्म पसंद आए या न आए, कम से कम मां को कहानी समझ भी आ जाए तो भी बहुत हो जाता है मेरे लिए।

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