चीजें हमेशा ठीक वैसी ही नहीं होतीं, जैसी वह ऊपर से नजर आती हैं। जिंदगी भी वैसी नहीं होती, जैसी सतह पर दिखती है। चेहरा कितना भी मन का आईना क्यों न हो, वह हर सच तो नहीं बयाँ करता।
खूबसूरती और शोहरत के रेशमी लिबास अपने भीतर कौन-सा सच छिपाए हैं, कौन जानता है। जीवन कितने रूपों में आकर छल करता है, कौन जानता है। हिंदी फिल्मों का एक सदी का सौंदर्य रेखा, जिंदगी की अनगिनत रेखाओं से मिलकर रचा एक ताना-बाना है।
रेखा जब हिंदी फिल्मों में आई तो उसकी उम्र सिर्फ 13 साल थी। वह अभी बच्ची ही थी। उसे हिंदी बिल्कुल नहीं आती थी। दक्षिण के प्रख्यात अभिनेता जेमिनी गणेशन और अभिनेत्री पुष्पावल्ली की संतान रेखा
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माता-पिता के फिल्म स्टूडियो में ही खेलकर बड़ी हुई। लेकिन यह बहुत अकेला-सा बचपन था। फिल्मी चमक-दमक और ग्लैमर के बीच घिरी हुई बच्ची प्यार और दुलार ढूँढ रही थी, लेकिन जो उसे ताउम्र नहीं मिलनी थी।
रेखा स्वभावतः काफी शर्मीले स्वभाव की हैं और अपने बारे में कोई बात करना पसंद नहीं करतीं, लेकिन बहुत पहले किसी इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि मुझे पता नहीं, फादर का क्या मतलब होता है। इस शब्द के साथ मेरे दिमाग में चर्च वाले फादर की छवि उमड़ती है। पिता, यह शब्द मेरे लिए बिल्कुल बेमानी है। जब जेमिनी गणेशन की मृत्यु का समाचार आया था, उस समय रेखा राकेश रोशन की फिल्म ‘कोई मिल गया’ की शूटिंग कर रही थीं। उन्होंने बिल्कुल निस्पृह भाव से यह खबर सुनी और वापस शूटिंग में व्यस्त हो गईं। कोई भाव, कोई प्रतिक्रिया नहीं।
तो ऐसा था, रोमांस के बादशाह जेमिनी गणेशन के साथ नन्ही बच्ची रेखा का जीवन।
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नवीन निश्चल के साथ रेखा की पहली फिल्म आई - 'सावन-भादों'। फिल्म को भारी सफलता मिली, और हिंदी फिल्मों को एक नया चेहरा, जो खूबसूरती और ताजगी से भरा था, जिस चेहरे में अलग ही कशिश थी।
रेखा के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानने और उसे खुला आकाश देने का काम किया, ऋषिकेश मुखर्जी ने। फिल्म खूबसूरत में रेखा के अभिनय में जहाँ एक किस्म का चुलबुलापन और शरारत है, वहीं क्रमशः दृढ़ होती जाती परिपक्वता भी नजर आती है।
उसके बाद रेखा में बहुत बदलाव आया। उनका सौंदर्य और अभिनय की उड़ान, दोनों ही अपने शिखर पर थे। एक तरफ हिंदी सिनेमा के आकाश में रेखा की उड़ान और ऊँची होती जाती, वहीं निजी जिंदगी का आसमान अँधेरा और अकेला था।
रेखा अमिताभ से प्रेम करती थीं, लेकिन अमिताभ ने अपने घर-परिवार की सुरक्षित चारदीवारी में लौट जाना बेहतर समझा। दोनों ने साथ-साथ बहुत-सी फिल्में की थीं। उनकी जोड़ी ने 'मुकद्दर का सिकंदर', 'मि. नटवरलाल' और 'खून पसीना' जैसी हिट फिल्में दीं। 'सिलसिला' वह आखिरी फिल्म थी, जिसमें दोनों ने साथ काम किया था। उसके बाद फिर वे एक साथ कभी पर्दे पर नजर नहीं आए।
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सौम्य बंद्योपाध्याय ने अपनी पुस्तक 'अमिताभ बच्चन' में लिखा है कि पहले तो रेखा अमिताभ के बारे में बात करने को तैयार ही नहीं थीं, लेकिन जब बोलना शुरू किया तो उनकी आँखों की चमक और रोशनी देखते ही बनती थी। वह शर्मीली और अंतर्मुखी लड़की अचानक ही वाचाल हो उठी। वह इतने प्यार और उमंग से अमिताभ का जिक्र कर रही थीं और उनसे जुड़ी बातें बता रही थीं।
ऐसी ही एक और घटना है। कुछ साल पहले एक कार्यक्रम श्रद्धांजलि के दौरान जब लता 'सिलसिला' फिल्म का 'ये कहां आ गए हम' गीत गा रही थीं और अमिताभ गाने के संवाद बोल रहे थे - 'बेचैन ये हालात इधर भी हैं और उधर भी, तनहाई की एक रात इधर भी है और उधर भी.....' - सारे कैमरे अचानक रेखा के चेहरे पर जाकर टिक गए। उस समय उन आँखों में जो भाव था, अगर उस चेहरे को कोई पढ़ सकता तो जान जाता अमिताभ के प्रति रेखा का प्रेम किस कदर रोमानी और गहरा रहा होगा, जिसकी स्मृति आज भी धुँधली नहीं हुई थी।
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निजी जीवन का आसमान और-और संकुचित होता गया। अमिताभ ने रेखा को नहीं स्वीकारा। राज कपूर ने भी नरगिस को कहाँ स्वीकारा था। फिर रेखा ने उद्योगपति मुकेश अग्रवाल से विवाह किया, लेकिन जल्द ही उसकी आत्महत्या से फिर रेखा की जिंदगी में ढेरों विवाद उठ खड़े हुए। अकेलापन जस-का-तस था।
रेखा लगातार फिल्मों में काम करती रहीं। जिंदगी के पचास से अधिक वसंत देख चुकी रेखा 13 साल की उम्र से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं, और अब तो उन्हें लीजेंड का दर्जा दिया जाता है, उनके सौंदर्य और सदाबहार रूप के कारण उनकी तुलना मैडोना से की जाती है। उन्होंने सैकड़ों फिल्मों में काम किया।
'उमराव जान' में रेखा का सौंदर्य और अभिनय अपने चरम पर है, पर जिसकी जुस्तजू थी, वह तो वहाँ भी नहीं मिला। बेशक जिंदगी जरूर देखी और जी। वहाँ भी वह एक ऐसे दयार में खोया हुआ कुछ ढूँढ रही थी, जहाँ चारों ओर सिवाय गुबार के और कुछ नहीं था।