कोरोनावायरस के कारण लगभग सात महीने से बंद सिनेमाघरों को खोलने की इजाजत 15 अक्टोबर से दी गई, हालांकि निर्णय राज्य सरकार पर छोड़ा गया। कुछ प्रदेशों में सिनेमाघर खुले तो कुछ में अभी भी ताला लटका हुआ है। सिनेमाघर वालों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे दिखाए क्या? नई फिल्में रिलीज नहीं हो रही हैं। पुरानी फिल्मों को दर्शक नहीं मिलते। यही कारण है कि बहुत कम सिनेमाघर शुरू हुए। दिन भर में इक्का-दुक्का शो किए जा रहे हैं। मल्टीप्लेक्स वालों ने केवल एक स्क्रीन शुरू किया। सिंगल स्क्रीन वाले तो हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं।
शुभ मंगल ज्यादा सावधान, थप्पड़, भूत जैसी कुछ पुरानी फिल्मों को दिखाया गया। नई फिल्मों को तो दर्शकों के टोटे पड़ जाते हैं तो पुरानी फिल्मों को कौन देखेगा? इसलिए जो भी शो हुए वो दम से खाली रहे। कुछ फिल्मों के शो तो दर्शकों के अभाव में रद्द करना पड़े। सिनेमाघर वाले दुविधा में हैं। पहले तो मांग कर रहे थे कि सिनेमाघर खोलने की इजाजत मिले, जब इजाजत मिली तो वे ताला खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हैं।
कई तरह की समस्याएं हैं। नई फिल्में नहीं हैं। दर्शक पुरानी फिल्म देखना नहीं चाहते। सिनेमाघरों को आधी कैपेसिटी के साथ खोलने की इजाजत मिली है। सैनिटाइजेशन और सरकार की गाइडलाइडन को फॉलो करना हर किसी के बस की बात नहीं है। कई सिनेमाघरों की आमदनी बहुत कम है ऐसे में वे नए खर्चे का भार नहीं उठा सकते। दर्शक भी डरे हुए हैं। क्यों करोना वायरस का जोखिम उठा कर वे पुरानी फिल्मों को देखने के लिए जाएं? क्यों वे टिकट खरीद कर पैसा खर्च करें जबकि ये फिल्में विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध है।
यह स्थिति जल्दी सुलझती नहीं दिखाई देती है। नई फिल्में रिलीज होंगी तभी सिनेमाघर वालों को कुछ ऑक्सीजन मिलेगी। अभी तो खोलने के नाम पर ही दरवाजे खोल दिए हैं।