सुशांत सिंह राजपूत का बड़े बैनर्स ने किया था बॉयकॉट? क्यों सुबकते थे शेखर के कंधे पर?

समय ताम्रकर
सोमवार, 15 जून 2020 (19:29 IST)
सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की वजह पुलिस ढूंढ रही है और अब तक कुछ भी पुख्ता बात सामने नहीं आई है। महत्वपूर्ण बात यही पता चली है कि पिछले कुछ महीनों से वे डिप्रेशन में थे। 
 
फिल्म निर्देशक शेखर कपूर का यह ट्वीट इस बात को पुख्ता करता है जिसमें उन्होंने लिखा है कि मुझे पता था कि सुशांत कितने दर्द से गुजर रहे हैं। उन्हें कई लोगों ने इस कदर निराश किया कि शेखर के कंधे पर सिर रख कर सुशांत रोए हैं। 
 
गौरतलब है कि सुशांत को लेकर शेखर कपूर अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'पानी' बनाने वाले थे जिसकी स्क्रिप्ट उनके पास बरसों से तैयार है। यह फिल्म अब तक इसलिए नहीं बन पाई क्योंकि इसका बजट बहुत ज्यादा है। 
 
यशराज‍ फिल्म्स पैसा लगाने के लिए तैयार हो गया था। शेखर ने हीरो के रूप में सुशांत को चुना। सुशांत ने तैयारियां शुरू कर दी। यशराज फिल्म्स ने अपने निर्णय पर पुनर्विचार किया। 
 
शेखर कपूर ने जितनी अब तक फिल्में बनाई हैं उससे ज्यादा वे बंद कर चुके हैं। सुशांत सिंह राजपूत अच्छे कलाकार जरूर थे, लेकिन उनका स्टारडम इतना नहीं था कि कि उनकी लगाई पूंजी वापस आएगी। इस वजह से यह फिल्म संभवत: बंद कर दी गई। शायद इसीलिए शेखर के कंधे पर सुशांत सुबके होंगे। 
 
इसके साथ ही एक ओर खबर चल रही है कि बॉलीवुड के कई दिग्गज बैनर्स और फिल्म निर्माताओं ने सुशांत की फिल्मों पर पैसा लगाना बंद कर दिया। उनको लेकर कई फिल्में बंद हो गई क्योंकि प्रोड्यूसर्स ने सुशांत की पिछली फिल्मों का हश्र देख अपने हाथ वापस खींच लिए। 


 
इससे सुशांत हताश हो गए। उन्हें अपना करियर अंधकारमय नजर आने लगा। अब तक वे हर जगह सफल होते आए थे और इस असफलता से दो-दो हाथ नहीं कर पाए और उन्होंने 'ये दुनिया मेरे काम की नहीं' सोचते हुए छोड़ दी। 
 
ऐसा नहीं है कि सुशांत का करियर खत्म ही हो गया था। बॉलीवुड में लगातार नए प्रोड्यूसर्स आते रहते हैं और कोई न कोई तो सुशांत को लेकर फिल्म जरूर बनाता, लेकिन सुशांत ने कुछ ऊंचे ख्वाब बुन रखे होंगे जिन्हें साकार न होते देख उन्होंने गलत राह चुन ली। 
 
कंगना रनौट का कहना है कि बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद चलता है। कई खेमे बंटे हुए हैं। ये लोग अपने लोगों को काम दिलाते हैं। इनके कारण कई प्रतिभाहीन कलाकार(!) को लगातार काम मिलता रहता है क्योंकि वे किसी बड़े फिल्म स्टार या निर्देशक के बेटे/बेटी या रिश्तेदार हैं। 


 
कंगना का कहना सही भी है। आखिर किस क्षेत्र में भाई-भतीजावाद नहीं चलता। केवल फिल्म उद्योग को दोष देना भी ठीक नहीं है। बॉलीवुड भी इसका शिकार है। लेकिन प्रतिभाहीन लोगों को कुछ दिनों तक तो काम मिल जाता है, लेकिन उनका करियर जनता जनार्दन के निर्णय पर ही पनपता है। 
 
सुशांत सिंह राजपूत को यह शिकायत हो सकती थी कि उनसे कम प्रतिभाहीन लोगों को लगातार अवसर मिल रहे हैं और वे ज्यादा काबिल होने के बाद भी बेकार बैठे हैं, लेकिन ऐसा किस क्षेत्र में नहीं होता? 
 
सुशांत ने मुख्य भूमिकाओं वाली 10 फिल्में की। इनका निर्माण आदित्य चोपड़ा, करण जौहर, विधु विनोद चोपड़ा, अभिषेक कपूर, साजिद नाडियाडवाला जैसे निर्माताओं ने किया। 
 
उन्हें राजकुमार हिरानी, अभिषेक कपूर, दिबाकर बैनर्जी, नीरज पांडे, नितिश तिवारी जैसे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला। श्रद्धा कपूर, कृति सेनन, भूमि पेडणेकर, जैकलीन फर्नांडीज़,  परिणीति चोपड़ा, दिशा पाटनी, किआरा आडवाणी जैसी हीरोइनों के हीरो बने। कई लोगों को ऐसा मौका 50 फिल्म करने के बाद भी नहीं मिलता। 


 
सुशांत का इसे दुर्भाग्य कहा जा सकता है कि उनकी कुछ फिल्में नहीं चली। जो चली उसका श्रेय उन्हें नहीं मिला। अब फिल्म मिलने में परेशानी होने लगी थी। कोई भी निर्माता तभी किसी हीरो पर पैसा लगाने के लिए तैयार होता है जब उसे वापसी की संभावना नजर आए। इसलिए उन पर बड़े निर्माताओं द्वारा प्रतिबंधित करने की बात में दम नजर नहीं आता। 
 
सुशांत एक रफ पैच से गुजर रहे थे। संभव था कि एक-दो फिल्में स्थिति सुधार देती। बॉलीवुड में यूं भी स्थिति बनते-बिगड़ते देर नहीं लगती। आपकी पिछली फिल्म से ही आपका मूल्यांकन होता है। 
 
शाहिद कपूर का हमारे सामने उदाहरण है। उन्हें भी प्रतिभाशाली माना गया, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर उनकी फिल्में असफल होती रहीं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। डटे रहे। जैसी फिल्में मिली, उनमें वे काम करते रहे और आखिरकार कबीर सिंह के रूप में हिट फिल्म उनके हाथ लगी। सुशांत ने जितने गुणी निर्देशकों के साथ काम किया उनमें से एक के साथ भी शाहिद अब तक काम नहीं कर पाए। 


 
हर क्षेत्र में गलत लोग हैं। भाई-भतीजावाद है। रूकावटे हैं। प्रतिभाहीन लोग का बोलबाला है। लेकिन इससे क्या हार कर घर बैठ जाना चाहिए? सफलता मिले या न मिले ये अलग बात है, लेकिन कभी हार के डर से मैदान छोड़ना गलत है। 
 
भले ही आप सफल न हो पाए, लेकिन इस बात का संतोष जरूर रहता है कि हमने खूब संघर्ष किया। हो सकता था कि फिल्मों की कैंपबाजी या भाई-भतीजावाद के चक्रव्यूह को सुशांत तोड़ने में सफल रहते। जिस तरह से शाहरुख खान या अक्षय कुमार जैसे बाहरी कलाकारों ने ये कर दिखाया। 

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