अनुराग कश्यप की 'कैनेडी' - एक क्राइम ड्रामा की सटीक राजनीति

अजित राय
शुक्रवार, 26 मई 2023 (17:53 IST)
Kennedy Movie Review: भारतीय सिनेमा के लिए इससे बेहतर घटना कोई नहीं हो सकती कि 1994 के बाद अनुराग कश्यप की फिल्म 'कैनेडी' पिछले 29 वर्षों में पहली ऐसी फिल्म है जो कान फिल्म समारोह के ऑफिशियल सेलेक्शन के मिडनाइट स्क्रीनिंग खंड में ग्रैंड थिएटर लूमिएर में दिखाई गई। इससे पहले 1994 में शाजी एन करूण की मलयालम फिल्म 'स्वाहम' का प्रतियोगिता खंड में ग्रैंड थिएटर लूमिएर में प्रदर्शन हुआ था।
 
इतना ही नहीं अनुराग कश्यप और उनकी टीम को सचमुच में गाजे बाजे के साथ ऑफिशियल रेड कार्पेट दी गई। करीब साढ़े तीन हजार की क्षमता वाला ग्रैंड थिएटर लूमिएर आधी रात के साढ़े बारह बजे पूरी तरह दर्शकों से भर गया था। रेड कार्पेट शुरू होने से लेकर थिएटर में पहुंचने तक दर्शक अनुराग कश्यप के लिए लगातार तालियां बज रही थी। 
 
फिल्म के खत्म होने पर रात के तीन बजे दर्शकों ने खड़े होकर दस मिनट तक तालियां बजाकर उनका मान बढ़ाया। उसके बाद भी सुबह चार पांच बजे तक लोग ग्रैंड थिएटर लूमिएर के बाहर सड़कों पर अनुराग कश्यप, राहुल भट्ट, सनी लियोनी, मोहित टकलकर और फिल्म की टीम के साथ चर्चा करते रहें। बेशक आकर्षण का केंद्र सनी लियोनी भी थी। फिल्म सुधीर मिश्रा को समर्पित है क्योंकि मुख्य चरित्र उदय शेट्टी की यह कहानी उन्होंने ही सबसे पहले अनुराग कश्यप को सुनाई थी। थिएटर में फिल्म की अभूतपूर्व सफलता पर सबके सामने अनुराग कश्यप ने सुधीर मिश्रा के पैर छुए। 
 
उदय शेट्टी (राहुल भट्ट) एक पूर्व पुलिस अधिकारी है जो अब मुंबई पुलिस कमिश्नर राशिद खान (मोहित टकलकर) के लिए हत्याएं करता है। दुनिया की नजर में वह मर चुका है और उसका नया नाम है - कैनेडी। उसे सलीम नाम के माफिया डान की तलाश है जिसने उसकी पत्नी की कार में बम रखवा दिया था और विस्फोट में उसका बेटा मारा गया था। उसी के बाद उसकी पत्नी ने उससे सारे रिश्ते तोड़ लिए थे। 
 
हालांकि कैनेडी जब भी अकेला महसूस करता है, अपने फोन और लैपटॉप पर अपने घर का लाइव सीसीटीवी फुटेज देखता है। वह बिना किसी हिचक के लोगों की हत्याएं करता है और अक्सर चुप रहता है। एक लिफ्ट में मुंबई पुलिस कमिश्नर की जबरन बनी रखैल चार्ली (सनी लियोनी) उससे टकराती हैं जो हमेशा व्हिस्की पीती रहती है। लेकिन दोनों में कोई रिश्ता नहीं विकसित होता। फिल्म के अंत में कैनेडी सलीम और पुलिस कमिश्नर राशिद खान को मार कर आत्महत्या कर लेता है।
 
यह भी दिलचस्प है कि अनुराग कश्यप का नोआर क्राइम ड्रामा 'कैनेडी' (वे चाहते तो इसका नाम डोनाल्ड ट्रंप भी रख सकते थे) अंग्रेजी के मशहूर कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की एक लाइन से शुरू होती है कि 'हम कवि नौजवानों में खुशी से शुरू करते हैं पर जल्दी ही यह खुशी निराशा और पागलपन में बदल जाती है।' यहीं नहीं, हिंसा, हत्या और बदले की यह कहानी कविता, हिप हाप और रैप संगीत के सहारे आगे बढ़ती है। 
 
हम बीच बीच में एक कवि नुमा परफार्मर को देखते है जो ऊंचे विचारों वाली कविताएं गाता चलता है। कोविड युग की इस अपराध कथा में मुंबई का मटमैला माहौल है, भ्रष्ट व्यवस्था का दोहरा किंतु सच्ची छवियां है, एक एक चरित्र को करीने से गढ़ा गया है। सिलवेस्टर फोंसेका की सिनेमैटोग्राफी पटकथा को गहरा रंग प्रदान करती है जबकि तान्या छाबरिया और दीपक कट्टार का संपादन इतना सटीक है कि एक क्षण के लिए पलक झपकाना मुश्किल है। अनुराग कश्यप की पटकथा में इतना पैनापन है कि वह मूल कहानी से भटकाती नहीं है और जाहिर है कि राजनीतिक व्यंग्य तो उनकी शैली ही है। 
 
राहुल भट्ट (कैनेडी) और मोहित टकलकर (पुलिस कमिश्नर राशिद खान) का अभिनय बहुत उम्दा है हालांकि सनी लियोनी (चार्ली) साधारण है। अनुराग कश्यप ने किसी भी विषय पर अनावश्यक टिप्पणी से बचते हुए मूल कहानी और ट्रीटमेंट पर ही फोकस किया है। एक संवाद है कि यह देश कौन चलाता है? सरकार, नही। जो सरकार को पालते हैं, वे देश चलाते हैं।' उन्हें फिल्म में 'बड़े पापा' कहा गया है। एक दृश्य में सनी लियोनी राहुल भट्ट से कहती हैं कि अजीब है न, जिसने मेरे प्रेमी को मारा, मैं उसी से मदद मांग रही हूं।' फिल्म की टैगलाइन है- 'पांच रातों की पांच रातें।'
 
फिल्म जिस समय को सामने लाती है उसमें अंडरवर्ल्ड के खत्म होने के बाद का कोविड काल है जिसमें पुलिस ही अब हफ्ता वसूली करती है, राजनीतिक हत्याएं करवाती है और बिजनेस करने वालों को धमकियां दिलवाती है। यह एक तरह से अंडरवर्ल्ड की प्रशासनिक शिफ्टिंग है जिसमें राजनेता सबसे ऊंचे पायदान पर है। फिल्म में बार बार टेलीविजन मीडिया में एंकरों का कैरिकेचर दिखाया गया है। मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक भरी गाड़ी, इंस्पेक्टर वाझे, पुलिस कमिश्नर परमजीत सिंह और महाराष्ट्र के गृहमंत्री तक वसूली का पैसा पहुंचाने के टारगेट की खबरें अभी ताजी है जिनकी छवियां फिल्म में देखी जा सकती है। 
 
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक का किस्सा भी हमें याद होगा। इन सबके बीच हमारे हत्यारे नायक का एक इमोशनल ट्वीस्ट भी फिल्म को अंत तक थामें रहता है, उसे पूरी तरह बेदखल कर चुकी उसकी पत्नी और उससे प्यार करने वाली उसकी बेटी अदिति। एक दृश्य में वह बैंक जाकर अपनी बेटी के खाते में सोलह लाख रुपए जमा करवाना चाहता है। बैंक के इनकार करने पर वह यह रकम सनी लियोनी को देकर कहता है कि इसे वह उसकी बेटी अदिति तक पहुंचा दे। 
 
कैनेडी आत्महत्या करने से पहले अपनी बेटी अदिति को वाट्सऐप मैसेज तो भेजता है पर उसका काल नही उठाता। दुनिया को बताया गया है कि कैनेडी मर चुका है। पर उसकी बेटी को सच का इलहाम है कि वह जिंदा है। मरने से पहले कैनेडी अपने अपराधों का इकबालिया बयान इंटरनेट पर अपलोड करता है और अपनी बेटी को याद करते हुए आत्महत्या कर लेता है।
 

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