विद्या के खान होने का राज

दीपक असीम
विद्या बालन के नाम के आगे "डर्टी पिक्चर" के बाद खान लग गया। यानी ऐसी हीरोइन, जो अपने दम पर फिल्म हिट करा सकती है। मगर ये खिताब विद्या को रातोरात नहीं मिला। विद्या बालन फिल्म में हैं, इसका मतलब कि फिल्म कुछ हटकर है, कुछ अलग है।

दर्शकों को गारंटी होती है कि विद्या बालन की फिल्म दमदार होगी। ऐसा इसलिए हुआ कि विद्या ने किसी भी ऐसी फिल्म में काम नहीं किया, जिसमें काम करने के लिए उनके दिल ने उन्हें इजाजत नहीं दी। वे चुन-चुनकर ऐसी फिल्में करती हैं, जिनमें महिला का किरदार भी दमदार हो। दमदार नहीं भी हो, तो उसमें अभिनय करने की गुंजाइश हो। बेबी डॉल बनकर पेड़ों के इर्द-गिर्द थिरकना विद्या के बस का नहीं है।

जरा उन फिल्मों पर नजर डालिए जो विद्या बालन ने की हैं- "गुरु" में उनका रोल छोटा था, मगर उसमें अभिनय की गुंजाइश थी। मणिरत्नम की फिल्म थी। विद्या ने की। "नो वन किल्ड जेसिका" में भी उनका रोल कम था, मगर उन्होंने इसलिए की क्योंकि उन्हें उसमें अभिनय की गुंजाइश दिखी।

" थैंक्यू" और "दम मारो दम" में भी उनकी भूमिका छोटी-सी थी। "पा" में अमिताभ की माँ की भूमिका तो बड़े साहस का काम था, पर उन्होंने वो भी आराम से की। बीच में वे कुछ भटकी थीं, पर बाद में वे फिर अपने पसंदीदा सिनेमा के जोन में आ गईं। इस बीच दर्शकों के अवचेतन में ये बात घर कर गई कि विद्या का मतलब है बेहतर सिनेमा। छोटे रोलों से विद्या को कोई परहेज नहीं। मगर वे चाहती हैं कि रोल उनके पसंद का हो और उनकी छवि के अनुरूप हो।

" पा" के दौरान बाल्कि ने विद्या से कहा था कि विद्या तुम जन्मजात औरत हो। इससे बचो नहीं, इसे एंजाय करो। सो विद्या कभी दूसरी तरह के कपड़ों में नहीं दिखतीं। वे कभी जीरो फिगर के चक्कर में भी नहीं पड़ीं। वे जैसी हैं, वैसी हैं। वे अपने काम और सिनेमा को लेकर कितनी गहरी समझ रखती हैं, ये बात उनके इंटरव्यू वगैरह देखकर पता चलती है।

उन्हें खान का खिताब दिया गया है और इस लिहाज से वे सबसे ज्यादा नजदीक हैं, आमिर खान के। सिनेमा की समझ और रोल चुनने में सावधानी को देखते हुए विद्या को लेडी आमिर खान कहा जा सकता है। अपनी फिल्मों को अलग-अलग तरीकों से प्रमोट करने की जो आग आमिर में है, वही विद्या में भी है।

पैसे और अपने स्टेटस के प्रति लापरवाही आमिर में भी हैं और विद्या में भी। आमिर खान अपनी पसंद के सिनेमा में कम पैसा लेकर भी काम कर सकते हैं। विद्या ने भी फिल्म "कहानी" के लिए सुजॉय घोष से अपना मार्केट रेट नहीं लिया। जो लिया-दिया वो गुप्त है। हीरोइनों जैसे नखरे भी विद्या ने नहीं दिखाए।

कोलकाता की भीड़ भरी गलियों में उन्होंने अपने कपड़े कार में बदले हैं, क्योंकि वेनिटी वैन का खर्च सुजॉय घोष बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। काम अच्छा हो, तो विद्या हर बात में समझौता कर सकती हैं। वे आमिर, सलमान और शाहरुख के साथ फिल्म करना चाहती तो हैं, पर उनकी पहली शर्त अच्छी स्क्रिप्ट ही है।

शाहरुख से बढ़कर उनके लिए अच्छी स्क्रिप्ट का महत्व है। "रॉ. वन" यदि करीना की बजाय विद्या को ऑफर की गई होती तो वे ठुकरा देतीं। वे ऐसी फिल्म नहीं करतीं, जिसमें उनके करने को कुछ न हो। यही विद्या के खान होने का राज है।
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