राजेश खन्ना ने कई फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी की है। अपनी संवाद अदायगी, अदाओं और अभिनय के जरिये लोगों का दिल जीता। श्रेष्ठ पांच फिल्म चुनना वाकई मुश्किल काम है और यह बहस का विषय भी है।
आनंद (1971)
‘‘बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां है जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता।’’ जिंदादिली की नई परिभाषा आनंद फिल्म ने गढ़ी। राजेश खन्ना का जब भी जिक्र होगा, आनंद के बिना अधूरा रहेगा। एक ही फिल्म यह बताने के लिए काफी है कि वे कितने बेहतरीन अदाकार थे।
हृषिकेश मुखर्जी की इस क्लासिक फिल्म में कैंसर (लिम्फोसर्कोमा ऑफ इंटेस्टाइन) पीड़ित किरदार को जिस ढंग से राजेश ने जिया, वह भावी पीढ़ी के कलाकारों के लिए उदाहरण बन गया।
इस फिल्म में अपनी जिंदगी के आखिरी पलों में मुंबई आने वाले आनंद सहगल की मुलाकात डाक्टर भास्कर बनर्जी (अमिताभ बच्चन) से होती है। आनंद से मिलकर भास्कर जिंदगी के नए मायने सीखता है और आनंद की मौत के बाद अंत में कहने को मजबूर हो जाता है कि ‘आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं।’’
सुपरस्टार राजेश खन्ना के करियर की यह यकीनन सर्वश्रेष्ठ फिल्म है, जिसमें उनकी संवाद अदायगी, मर्मस्पर्शी अभिनय और बेहतरीन गीत संगीत ने इसे भारतीय सिनेमा की अनमोल धरोहर बना दिया। गुरू कुर्ते पहनने वाला आनंद समंदर के किनारे जब ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय’ गाता है तो दर्शकों को उसकी पीड़ा का अहसास होता है।
अगले ही पल वह एक अजनबी (जॉनी वाकर) के कंधे पर हाथ रखकर कहता है,‘‘ कैसे हो मुरारी लाल, पहचाना कि नहीं।’’ आनंद के किरदार के इतने रंगों को राजेश खन्ना ने जिस खूबी से जिया कि दर्शक मंत्रमुग्ध रह गए।
आनंद ने सिखाया कि मौत तो आनी है, लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकते। जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए। जिंदगी जितनी जियो, दिल खोलकर जियो। हिन्दी सिनेमा का यह आनंद भले ही अब हमारे बीच नहीं हो, लेकिन उसका यह किरदार कभी नहीं मरेगा।
आराधना (1969)
राजेश खन्ना के करियर की पहली सुपरहिट फिल्म। इस फिल्म ने उन्हें रातोंरात सुपरस्टार बना दिया। रोमांस को राजेश खन्ना ने एक नए तरीके से सिल्वर स्क्रीन पर व्यक्त किया और युवा पीढ़ी उनकी दीवानी हो गई।
एअरफोर्स ऑफिसर अरुण वर्मा और सूरज के दोहरे किरदार उन्होंने इस तरह निभाए कि दर्शक दंग रह गए। आराधना एक कमर्शियल फिल्म है जिसमें भरपूर मनोरंजन है। रोमांस, खुशी, गम, हिट म्युजिक और राजेश खन्ना-शर्मिला टैगोर के दमदार अभिनय से इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार सफलता हासिल की।
मेरे सपनों की रानी का फिल्मांकन आज भी याद किया जाता है, जिसमें जीप पर बैठे राजेश खन्ना ट्रेन में बैठी शर्मिला के लिए गाना गाते हैं। राजेश के साथ कई फिल्म कर चुकी शर्मिला का कहना है कि आराधना में राजेश से बेहतर रोल और कोई नहीं कर सकता था।
नमक हराम (1973)
राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की एक और साथ की गई फिल्म। यह दो दोस्तों की कहानी है जिसमें एक अमीर है और एक गरीब। अमीर दोस्त की कंपनी को बचाने के लिए गरीब दोस्तों मजदूरों के बीच जाकर रहने लगता है ताकि वह उनकी एकता को तोड़ सके, लेकिन वहां जाकर उसे मालूम पड़ता है कि मजदूर सही हैं और उसका अमीर दोस्त गलत। वह दोस्त की बजाय मजदूरों का साथ देता है।
राजेश खन्ना ने सोनू नामक गरीब दोस्त की भूमिका इतने प्रभावी ढंग से निभाई कि फिल्म देखने के बाद उनका अभिनय ही याद रहता है। ऋषिकेश मुखर्जी ने आनंद के बाद राजेश खन्ना के साथ ‘नमक हराम’ के रूप में एक और यादगार फिल्म दी। दीये जलते हैं फूल खिलते हैं, नदिया से दरिया दरिया से सागर, मैं शायर बदनाम जैसे गीत आज भी लोकप्रिय हैं।
बावर्ची (1972)
रघु नामक बावर्ची के रोल में राजेश खन्ना ने ऐसी जान डाल दी थी कि वे हंसाते-हंसाते रुला देते हैं। उनके हास्य में करुणा थी। रघु परिवार के उन सदस्यों के बीच की दूरियों को पाटता है जो छोटे-छोटे कारणों से दूर हैं। वह बावर्ची बनकर घरों में नौकरी करता है और परिवार के सदस्यों को जोड़ने का काम करता है। राजेश खन्ना का अभिनय इतना सहज और सरल था कि लगता ही नहीं था कि वे अभिनय कर रहे हैं।
अमर प्रेम (1972)
पुष्पा और आनंद बाबू के निश्चल प्रेम को निर्देशक शक्ति सामंत ने ‘अमर प्रेम’ में बेहतरीन तरीके से दिखाया था। शादी से नाखुश, तनहा इंसान की तड़प को जो राजेश खन्ना ने अपने दमदार अभिनय से पेश किया। इस फिल्म की कहानी में दर्द था, वेदना थी। आमतौर पर दु:खों से भरी फिल्म देखना दर्शक पसंद नहीं करते हैं, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म सुपरहिट रही।
इन फिल्मों के अलावा इत्तेफाक, आपकी कसम, सफर, सच्चा झूठा, रोटी, कटी पतंग, दाग जैसी कई यादगार फिल्में राजेश खन्ना ने दी हैं।