आज की फिल्मों के भाई-बहन

दीपक असीम
पुलिस इतनी बेवकूफ नहीं होती जितनी फिल्मों में दिखाई जाती है। सो भेस बदलकर बहन से राखी बँधाने के लिए आने वाले कई फरार अपराधी, राखी के दिन पकड़ाए हैं, पकड़ाते रहते हैं। राखी बँधवा कर बहन की रक्षा तो वे क्या करेंगे उलटे बहन ही भाई की जमानत का इंतजाम करती है। जेल में बंद कई भाइयों को बहनें राखी बाँधने जाती हैं और एक टुकड़ा मीठा भाई को खिलाने के लिए उन्हें कई का मुँह मीठा करना पड़ता है। पुरानी फिल्मों में हीरो की एक अदा यह होती थी कि पुलिस से छिपकर रक्षाबंधन के दिन बहन से राखी बँधाने जरूर जाता था। पुलिस भी खड़ी रहती थी कि आज तो भाई जरूर आएगा। भाई आता था, पर कभी चेहरे पर मस्सा लगा लेता था, तो कभी दाढ़ी। चमत्कार यह कि दर्शक पहचान लेते थे, पर माँजायी बहन नहीं पहचान पाती थी। कई फरार गुंडों ने अपना आदर्श इस तरह के सीन को बनाया और राखी से पहले उनकी कलाई पर हथकड़ी सज गई।

यह शिकायत की जाती है और वाजिब ही की जाती है कि आजकल राखी के वैसे गीत नहीं बन रहे जिनमें भाई-बहन के प्यार को पूरी शिद्दत से उकेरा जाता। हालात यह हैं कि अब भाई-बहन का रिश्ता बदल गया है। भाई-बहन अब ज्यादा दोस्ताना हैं, सहज हैं। एक विज्ञापन में बताया जा रहा है कि बहन बचपन से अपने भाई की हिफाजत करती आई है। एक अन्य विज्ञापन में बड़ी बहन के बॉयफ्रेंड का फोन भाई न सिर्फ उठाता है, बल्कि बहन को देता भी है। एक खुलापन समाज में आया है और ये धारणा जरा पतली हुई है कि बहन की रक्षा का दायित्व भाई पर है।

दुनिया के किसी और समाज में बहन अपने भाई को राखी नहीं बाँधती। फिर भी समय आने पर भाई अपनी बहन की रक्षा करते ही हैं, बल्कि उनके बीच ये खयाल भी नहीं रहता। जो मदद करने की हालत में हो, वो मदद करता है। भाई संकट में हो तो बहन रक्षा करती है और बहन को जरूरत हो, तो भाई मदद करता है। दोनों बराबर हैं। कभी ऐसा भी होता है कि जिस बहन से राखी बँधाकर रक्षा का संकल्प भाई लेता है, अक्सर उसे सबसे बड़ा नुकसान भी वही भाई पहुँचा देता है। पिता की संपत्ति में से बहन को अक्सर कुछ नहीं दिया जाता। कभी-कभी भाई अपनी बहन की हत्या तक कर डालते हैं। बहन की गलती सिर्फ यह होती है कि वो किसी से प्यार कर बैठती है। रक्षा का वचन देने वाले भाई से उसकी रक्षा कोई नहीं कर पाता।

समाज के जिस वर्ग को फिल्मों में दिखाया जा रहा है, वहाँ भाई-बहन का संबंध पूरी तरह बदल चुका है। यह स्थिति महिलाओं के लिए हानिकारक भी है और कुछ असम्मानजनक जैसी भी कि वे अपनी रक्षा के लिए किसी को धागा बाँधें और कोई इनकी रक्षा का वादा करे। लड़कियों को अब इतना खतरा भी नहीं है। अगर है तो दूर होना चाहिए।

फिल्मों में राखी के गीत अब नहीं आ रहे। लोगों के पास वक्त कम हुआ है। फिल्में छोटी बन रही हैं। एडिटिंग बहुत टाइट होती है। भाई-बहन के प्यार को स्टेबलिश करने के लिए आज का कोई निर्देशक गाना नहीं रखेगा। न ही उनके बीच प्यार-स्नेह वगैरह दिखाने के लिए राखी का त्योहार फिल्माएगा।

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