सहस्रबाहु अर्जुन की जयंती, जानें 5 अनसुनी बातें

WD Feature Desk
शुक्रवार, 8 नवंबर 2024 (10:17 IST)
Sahasrarjun jayanti : आज राजराजेश्वर सहस्रबाहु अर्जुन की जयंती मनाई जा रही है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सहस्रबाहु जयंती मनाई जाती है। वर्ष 2024 में 08 नवंबर, शुक्रवार को महाराज सहस्रबाहु की जयंती मनाई जा रही है। आइए जानते हैं यहां उनके बारे में...

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Highlights 
  • सहस्रार्जुन के गुरु कौन थे?
  • सहस्रबाहु अर्जुन की जयंती 8 नवंबर को।
  • सहस्रबाहु अर्जुन ने भगवान दत्तात्रेय से मांगा था वरदान।
किसके अवतार थे सहस्रबाहु: महाभारत, वेद ग्रंथों तथा कई पुराणों में सहस्रबाहु की कई कथाएं पाई जाती हैं। भागवत पुराण में सहस्रबाहु की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है। उन्होंने भगवान की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए और चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण की। 
 
चंद्रवंशी क्षत्रियों में हैहय वंश सर्वश्रेष्ठ उच्च कुल का क्षत्रिय माना गया है। चन्द्र वंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। उनका जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। उनका जन्म नाम एकवीर तथा सहस्रार्जुन भी है। वे भगवान दत्तात्रेय के भक्त थे और दत्तात्रेय की उपासना करने पर उन्हें सहस्र भुजाओं का वरदान मिला था, इसीलिए उन्हें सहस्रबाहु अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है। 
 
पौराणिक ग्रंथों-पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा एवं सामाजिक उत्थान के लिए मनाई जाती है। 
 
सहस्रबाहु महिष्मती (महेश्वर) नगर के राजा थे : शास्त्रों के अनुसार पुराने समय में सहस्रबाहु अर्जुन नर्मदा नदी के किनारे बसे महिष्मती नगर के राजा थे। इन्ही के पूर्वज थे महिष्मंत, जिन्होंने नर्मदा के किनारे महिष्मति (अब महेश्वर) नामक नगर बसाया। सहस्रबाहु ने जब जमदग्नि यानि परशुराम के पिता से सौरभी गाय, जो कामधेनु की बेटी थी, उसको जबरदस्ती छीन लिया था, जिसके कारण परशुराम ने क्रोध में आकर सहस्रार्जुन के सभी हाथ काट कर उनका अंत किया था।
 
सहस्रबाहु की कुलदेवी कौन हैं : आपको बता दें कि हैहयवंशी राजाओं की कुल देवी मां दुर्गा देवी है तथा देवता शिव जी तथा नदी नर्मदा, ध्वज नील और शस्त्र कटार और पीपल वृक्ष पूजा है।
 
रावण और सहस्रबाहु की युद्ध कथा : एक बार नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती/ महेश्वर नरेश यानि हजार बाहों वाले सहस्रबाहु अर्जुन और दस सिर वाले लंकापति रावण युद्धरत थे। दरअसल हुआ यह था कि जब सहस्रबाहु अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा में अठखेलियां कर रहे थे, तो उन्होंने अपनी एक पत्नी के कहने पर अपने हाथ फैलाकर नर्मदा के बहाव को रोक दिया था।
 
इससे नर्मदा का जल इधर-उधर से बहने लगा। कुछ ही दूरी पर शिव जी की उपासना में लीन रावण की पूजन सामग्री इससे बह गई। इसका कारण पता चलने पर क्रोधित रावण सहस्रबाहु को दंड देने के लिए उनके पास पहुंचा और दोनों में युद्ध शुरू हो गया और अंततः सहस्रबाहु के एक तगड़े प्रहार से रावण अचेत होकर धरती पर गिर पड़ा। और उसे बंदी बना लिया गया। इस तरह सहस्रबाहु अर्जुन ने त्रिलोक विजेता दशानन रावण को धूल चटा दी थी। बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया। इसके बाद रावण ने सहस्रार्जुन से मित्रता की और लंका की ओर प्रस्थान किया।
 
कैसे मनाते हैं सहस्रबाहु जयंती : हर साल सहस्रबाहु महाराज की जयंती पर इनके भक्त दीपावली की तरह ही दीये जलाकर दीपोत्सव मनाते हैं तथा उनकी वीरता और महिमा का गुणगाण करते है। वर्तमान में भी मध्य प्रदेश में इंदौर के पास नर्मदा तट पर महेश्वर नामक स्थान पर सहस्रबाहु का प्राचीन मंदिर बसा हुआ है। भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न करके उनसे हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान मिलने के कारण ही कार्त्तवीर्याजुन को सहस्रार्जुन या सहस्रबाहु अर्जुन कहा गया है।
 
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